Sunday, November 1, 2015

छत्तीसगढ़ ने पूरा किया 15 साल का सफर, लेकिन बाकी है मंजिल का मिल जाना

छत्तीसगढ़ ने पूरा किया 15 साल का सफर, लेकिन बाकी है मंजिल का मिल जाना







rajkumar soni 



Posted:IST   Updated:ISTRaipur : Chhattisgarh accomplished 15-year journey, but the rest of the floor to get
छत्तीसगढ़ ने 15 साल का सफर पूरा कर लिया है, प्रदेश में राजनीतिक स्थिरता बनी रही लेकिन विकास में कहीं आगे तो कहीं पीछे भी रह गए।
रायपुर. बात नवम्बर 2000 से कुछ पहले की है। जब यह साफ होने लगा था छत्तीसगढ़ देश का 26वां राज्य घोषित कर दिया जाएगा। तब यह सवाल भी उठ रहा था कि अगर राज्य बना तो इसका फायदा किसको मिलेगा।
दिल्ली-भोपाल के चैनलों की दस्तक होने लगी थी और राजनेता यह बताने में लग गए थे कि सर्वाधिक आबादी आदिवासियों की है इसलिए सबसे ज्यादा लाभ के हकदार इसी तबके के लोग होंगे। मगर अन्य तबकों को भी इसलिए निराश नहीं होना पड़ेगा, क्योंकि राज्य प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर है।
कहा जा रहा था कि जब खनिज का उपयोग स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाएगा तो हर हाथ के पास काम होगा। कई तरह सामाजिक- राजनीतिक सभा- सम्मेलनों के बाद देखते-देखते ही राज्य बन गया और विधायकों की संख्या के आधार पर कांग्रेस की सरकार बन गई। वर्ष 2004 में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला।

अजीत जोगी बने पहले सीएम
आईएएस रहे अजीत जोगी प्रदेश के पहले सीएम बनाए गए। उन्होंने सबसे पहले किसानों से धान खरीदने की घोषणा की और कारखानों को आक्सीजन देने का काम किया। उन्होंने फसल चक्रपरिवर्तन कार्यक्रम चलाकर संदेश दिया किया कि अगर अमीर धरती के गरीब लोग चाहे तो अपनी किस्मत बदल सकते हैं। गरीबों की तकदीर तो नहीं बदली अलबत्ता तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रमों से उन पर तानाशाह सीएम होने का ठप्पा जरूर लग गया।
अंबरीश कुमार, जो उन दिनों एक दैनिक के संपादक थे कहते हैं, सरकार की शुरूआत बहुत बढिय़ा थी। बाद में उन्हें नौकरशाहों के भरोसे चलने वाला सीएम कहा जाने लगा। बची-खुची कसर उनके पुत्र अमित जोगी ने पूरी कर दी। तमाम तरह के राजनीतिक अंर्तविरोधों के बावजूद जोगी शासनकाल की सबसे अच्छी बात यह थी कि 1 नवम्बर 2000 को राज्य पर जो 8 हजार करोड़ का कर्ज था वह कुछ दिनों में ही रिजर्व बैंक को लौटा दिया गया।
पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव कहते हैं, हमें पता था कि लोग हमें कंजूस बोलेंगे, लेकिन हम एक गरीब-आदिवासी राज्य में फिजूलखर्ची को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं थे। वर्ष 2004 में जब राज्य की सत्ता का चेहरा बदला तो एक बार फिर यह कहा जाने लगा कि अब सब कुछ ठीक-ठाक हो जाएगा।
कांग्रेस शासन की तुलना में भाजपा सरकार ने नई राजधानी बनाने, हर जिले में बड़े शासकीय भवनों के निर्माण और कुछ इलाकों में सड़कों का जाल बिछाने में पर्याप्त ध्यान दिया लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि सरकार योजनाओं को धरातल पर पहुंचाने में नाकाम रही है।
बाहर आएं खूनी प्रदेश की पहचान से
छत्तीसगढ़ का एक बड़ा और खौफनाक सच माओवाद भी है। एक दशक में जिस ढंग से माओवाद ने पूरे प्रदेश को अपनी गिरफ्त में लिया है उसके बाद छत्तीसगढ़ की इमेज एक खूनी प्रदेश के रुप में बनी है। माओवाद मामलों के जानकार अजय साहनी कहते हैं- जब माओवादी पड़ोसी राज्यों से छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर रहे थे तब उन्हें पनपने का पूरा मौका दिया गया।
माओवाद के खात्मे के लिए कभी कोई कांक्रीट नीति नहीं बनाई गई। सरकार कभी कहती रही कि माओवादियों को घुसकर मारेंगे तो कभी कहती है गले लगाने को तैयार है। केंद्र ने वन अधिकार कानून लागू किया तो आदिवासियों को पट्टा देने में तंगदिली दिखाई गई। आदिवासियों को कभी कुछ अपना समझकर नहीं दिया गया।
विकास हुआ, लेकिन ज्यादा की जरूरत
ऐसा भी नहीं है कि भाजपा शासनकाल में रेखांकित करने लायक कुछ भी नहीं हुआ हो।� इसे किस्मत कहिए या यहां के आवाम की तासीर... 15 साल में महज एक बार जब जोगी ने भाजपा के विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया था और दूसरी बार जब आदिवासी नेता बलीराम कश्यप को मुख्यमंत्री बनाने की कवायद हुई थी, के अलावा कभी राजनीतिक अस्थिरता नहीं आई।
छत्तीसगढ़ का अभी झंझावतों के दौर से गुजरना थमा नहीं है। सारे झंझावत घरेलू है, जिनसे निपटने और कहीं-कही समेटने की गुंजाइश अभी बाकी है। एक नया राज्य 15 साल पहले अपने सफर में निकला था... उसकी मंजिल अभी आनी बाकी है।
बंद हो खनिज संपदा की लूट
एक संस्था ने पड़ताल में माना है कि खनिज संपदा लूट में छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं। खनिज मामलों के जानकार आलोक शुक्ला कहते हैं, सरकार कार्पोरेट सेक्टर को ही फायदा पहुंचाने की नीयत से काम कर रही है। आदिवासी बहुल राज्य में यह सवाल उठा है कि आदिवासियों की संख्या घट रही है।
सर्व आदिवासी समाज के महासचिव बीएस रावटे कहते हैं, बस्तर के एक लाख से ज्यादा आदिवासी इसलिए इधर-उधर हो गए। छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है, लेकिन अब कटोरे में भी सूराख हो चला है। कृषि विशेषज्ञ संकेत ठाकुर और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम बंघोपाध्याय मानते हैं कि सरकार ने ठोस उपाय नहीं किए। प्रदेश में मानव तस्करी, हाथी-मानव संघर्ष की समस्या तो मौजूद है ही। भ्रष्टाचार भी बड़ी चुनौती है।
(स्टेट ब्यूरो चीफ राजकुमार सोनी )
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