लौह अयस्क के अकूत भंडार ��"र धुर मा��"वादी क्षेत्र रावघाट के 45 गांवों के लोगों की जिंदगियां ऐसी जकड़ी हुई है कि यहां लगी फोर्स की इजाजत के बगैर परिंदा भी पर नहीं मार सकता।
दुर्ग/भिलाई. क्या आप आजाद देश के अपने राज्य में किसी ऐसे क्षेत्र की कल्पना कर सकते हैं, जहां आमजन के जाने की मनाही और वहां रहने वाले लोगों की जिंदगी नजरबंद हो। लौह अयस्क के अकूत भंडार और धुर माओवादी क्षेत्र रावघाट के 45 गांवों के लोगों की जिंदगियां ऐसी जकड़ी हुई है कि यहां लगी फोर्स की इजाजत के बगैर परिंदा भी पर नहीं मार सकता। नतीजा, गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली से कोसों दूर हैं।
जंगलों में बसे इन गांवों के लोग तो इस बात से भी अनजान हैं कि उन्हें लौह अयस्क खनन से पहले हटा दिया जाएगा। सरकारी व्यवस्था ऐसी है कि ग्रामीणों को उनकी जमीं से जब बेदखल किया जाएगा तो उनकी आवाज भी जंगलों में ही दम तोड़ देंगी, क्योंकि ये गांव अब तक राजस्व ग्राम का दर्जा भी हासिल नहीं कर सके हैं।
पत्रिका टीम की पड़ताल में पूरे मंजर का खुलासा करती रपट-रावघाट के दायरे में आने वाले 45 गांवों में से 27 कांकेर जिले और 18 नारायणपुर जिले में आते हैं, जहां प्रशासन की पहुंच शून्य है। प्रशासनिक गतिविधियों और शासन की योजनाओं को अंतागढ़ और नारायणपुर तक ही समेट दिया गया है। यह ऐसा इलाका है, जिसे अतिसंवेदनशील घोषित कर सुरक्षा बलों के हवाले कर दिया गया है।
तारकोल गांव के करीब पहुंचे तो हमें पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों ने आगे बढऩे से रोक दिया। हमने हाट बाजार में कोरगांव, अजरेल, सूपगांव, परलभाट, खडग़ांव, रावडोंगरी समेत आठ गांव से आए लोगों से उनका हाल जानने की कोशिश की, लेकिन वे इतने सहमे और डरे हुए दिखे कि अपना नाम भी बताने से बचते रहे।
बाजार आने के लिए सुरक्षा बलों की अनुमति और जांच से होकर गुजरना पड़ता है तो अंदर माओवादियों को बताना पड़ता है। मालूम हुआ, जंगल में रहने वाले ग्रामीणों को डेढ़ से दो किलोमीटर दूर से पहाड़ी नालों या झरनों से पानी लाना पड़ता है। अन्य सुविधाओं की बात कर तो उनके साथ मजाक करने जैसा है।
अब कोई नहीं करता हक की बात
पहले यहां के वनवासियों की सुध लेने जनमुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता पहुंचते थे। उनका आना-जाना भी बंद हो गया है। मोर्चा के अध्यक्ष जीतगुहा नियोगी का कहते हैं, वनवासियों के हित की बात करो तो विकास विरोधी कहा जाता है। रावघाट के वनवासी पैरामिलिट्री फोर्स के हवाले हैं, जो उन्हें दवाई और कपड़े दे देते हैं, जिससे कुछ होने वाला नहीं। वनवासियों को मुख्यधारा से जोड़कर ही विकास के लिए सोचने की जरुरत है।
बेदखल किए जाने पर आवाज भी दबी रह जाएगी
कांकेर कलक्टर शम्मी आबिदी भी मानती हैं, लौह अयस्क के खनन के दौरान विस्थापित किए जाने के बाद इन ग्रामीणों को मुआवजा मिलना मुश्किल होगा, क्योंकि ये वनग्राम राजस्व रिकॉर्ड में नहीं हैं। वे कहती हैं, ये गांव रावघाट की दुर्गम पहाडिय़ों और कठोर चट्टानों के बीच बसे हैं, जहां बोर के लिए गाड़ी नहीं जा सकती। इन गांवों में स्कूल, राशन की दुकानें और अस्पताल भी नहीं हैं।
नारायणपुर कलक्टर टामनसिंह सोनवानी कहते हैं, स्वास्थ्य कैंप� व कुपोषित बच्चों के लिए कैंप करवाते हैं, जो नारायणपुर में लगता है। रावघाट परियोजना के प्रभारी और भानुप्रतापुर पश्चिम वन मंडलाधिकारी बीएस ठाकुर ने कहा, अब कोई वनग्राम रहा नहीं, इसलिए वन विभाग की ओर से इन गांवों में कोई काम नहीं है।
रेल लाइन बिछाने के लिए पेड़ों की कटाई का काम ही देख रहे हैं। दल्लीराजहरा से रावघाट तक बिछाई जा रही रेल लाइन का काम चार साल से देख रहे इंजीनियर अजीत जैन कहते हैं, ट्रेन चलेगी तो क्षेत्र में विकास के द्वार खुलेंगे। उन्होंने कहा, यह काम 2013 में पूरा हो जाना था।
25 किमी चलकर लाते हैं राशन
राशन के लिए 20 से 25 किमी पैदल चलना पड़ता है। तोडाकी या बाजार हाट वाले गांवों में राशन की दुकानें खोली गई हैं। पैरामिलिट्री फोर्स की सुरक्षा में वहां अनाज पहुंचाया जाता है। कांकेर के खाद्य अधिकारी जीआर ठाकुर ने माना, वे रावघाट के दायरे में आने वाले सुदूर गांवों में कभी नहीं गए। वे बताते हैं, पीडीएस की यहीं व्यवस्था है। उन्हें अनाज मिलता है या नहीं, कितना मिलता है, इसकी मॉनिटरिंग नहीं होती।
(रावघाट से पुनीत कौशिक की रिपोर्ट
No comments:
Post a Comment