Wednesday, May 6, 2015

संघर्ष की तस्वीर हुई थोड़ी और साफ़, किसानों ने भू-हड़प बिल के खिलाफ छेड़ी निर्णायक जंग


पिछले कई महीनों से ज़मीन अधिग्रहण अध्यादेश के मुद्दे मोदी सरकार के खिलाफ चल रही लड़ाई का स्वरुप आज दिल्ली के जंतर मंतर पर कुछ और साफ़ हो गया, जहां देश भर से आए किसानों ने मई की चिलचिलाती धूप में अपने पसीने से आंदोलन की लकीर खींच दी।

किसान और ज़मीन के मुद्दे पर एक तरफ राजनीतिक गलियारों में दिशाहीन दलीलें और दूसरी तरफ किसानों की तकदीर को अन्ना हज़ारे सरीखे मौसमी नेतृत्व के भरोसे छोड़ देने की कोशिशें चलती रही हैं, लेकिन किसानों की अपनी जोरदार आवाज ने यह साफ़ कर दिया है कि ऊपरी नेतृत्व और राजनीतिक रहनुमाई का मुँह देखे बगैर जमीन और जीविका बचाने के लिए आर-पार की लड़ाई अब भारत के गाँव और किसान लड़ने वाले हैं।

दो सौ से ज़्यादा किसान संगठनों, स्थानीय भू-अधिग्रहण विरोधी आन्दोलनों, वामपंथी किसान सभाओं और देशव्यापी कार्यकर्ता नेटवर्कों ने आज एक साथ आकर मोदी सरकार के निरंकुश और कारपोरेट-प्रेमी कानून के खिलाफ आख़िरी लड़ाई की शुरुआत की। भूअधिग्रहण क़ानून को किसान-विरोधी और जनविरोधी बताते हुए वक्ताओं ने इस क़ानून की पूर्ण समाप्ति तक देश भर में संघर्ष चलाते रहने की घोषणा की।

“अच्छे दिनों” के गाजे-बाजे के साथ केंद्र पर काबिज हुई मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही इस देश के आम मेहनतकश जनता के साथ दो बड़े धोखे किए। पहला धोखा किया उसने इस देश के मजदूरों के साथ। श्रम कानूनों में संशोधन कर न्यूनतम मजदूरी से लेकर हड़ताल करने तक के उसके तमाम हकों को ले जाकर उसने पूंजीपतियों के कदमों में डाल दिया और उन्हें उनके श्रम की लूट की खुली छूट दे दी।
दूसरा बड़ा धोखा किया उसने इस देश के किसानों के साथ जब वह 31 दिसंबर 2014 को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में संशोधन अध्यादेश लेकर आई। हालांकि 2013 का कानून 1894 के भूमि अधिग्रहण के औपनिवेशिक कानून से सिर्फ इस मामले में जुदा था कि वह भूमि संरक्षण से ज्यादा मुआवजा केंद्रित था। यह अध्यादेश तीन मुख्य बिंदुओँ- सामाजिक प्रभाव, आम सहमति तथा 5 साल तक भूमि का इस्तेमाल न हो पाने की दशा में भू-स्वामि को भूमि वापस कर दिए जाना- में संशोधन करता है। यह भू हड़प अध्यादेश कॉर्पोरेट मालिकों के पूर्ण मुनाफे को सुनिश्चित करता है। इस अध्यादेश ने देशी-विदेशी पूंजीपतियों को यह छूट दे दी है कि अब जिस भी जमीन पर उनका दिल आ जाए वह जमीन बिना किसी पूर्व-सूचना के सरकार के जरिए कब्जा कर सकते हैं।

इन दोनों ही धोखों ने सरकार की मंशा को जनता के सामने स्पष्ट कर दिया है। यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाला दिन आम जनता और जनांदोलनों के लिए अत्यंत ही चुनौतीपूर्ण होने वाला है। देशी-विदेशी पूंजीपति को मुनाफे लिए नए-नए क्षेत्रों और सस्ते श्रम की जरूरत है और भारत सरकार इसे किसी भी कीमत पर उसे मुहैय्या कराने के लिए उतारू है। और इसकी कीमत चुकाएगा इस देश का आम मजदूर-किसान।

भूमि अध्यादेश के बाद पूरे देश में जैसे किसान विद्रोहों की आग सी लग गई। जगह-जगह पर अध्यादेश की प्रतियां जलाई गईँ। 24 फरवरी को देश की राजधानी में किसानों का एक विशाल जन प्रदर्शन हुआ। ऐसा लग रहा था कि जैसे पूरा देश इस अध्यादेश के विरोध में एक सूत्र में बंध सा गया था लेकिन इस देश की मीडिया से यह विरोध पूरी तरह से गायब था वजह कॉर्पोरेट दबाव। इन तमाम विरोधों की वजह से यह अध्यादेश राज्य सभा में पास न हो सका तब मोदी सरकार मामूली सुधारों के साथ एक बार फिर 3 अप्रैल को भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ले आई। उसकी यह जल्दबाजी उसकी पूंजीपतियों के प्रति उसकी वफादारी का पक्का सबूत है।

देश के तमाम मेहनतकश किसान, मज़दूर, कर्मचारी, लघुउद्यमी, छोटे व्यापारी, दस्तकारों, मछुवारे, रेहड़ी व पटरी वाले और इनके सर्मथक प्रगतिशील तबकों के लिए यह एक अति चुनौतीपूर्ण दौर है। अब शासकीय कुचक्र के खिलाफ संघर्ष के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, जनसंघर्षों के लंबे समय से जुड़े हुए संगठन ऐसी परिस्थिति में स्वाभाविक रूप से करीब आ रहे हैं, और सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसी क्रम में 2 अप्रैल को कांस्टिट्यूशन क्‍लब में जमीन के मसले पर आंदोलन चलाने वाली कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों, आंदोलनों, जन संगठनों, किसान सभाओं और संघर्षरत समूहों ने मिलकर यह तय किया था कि यदि सरकार भूमि अधिग्रहण पर नया अध्‍यादेश लाती है तो उसकी प्रति 6 अप्रैल को पूरे देश में जलाई जाएगी। देश भर से पांच करोड़ लोगों के दस्‍तखत इसके खिलाफ इकट्ठा किए जाएंगे। 9 अप्रैल को विजयवाड़ा, 10 अप्रैल को भुवनेश्वर और 11 अप्रैल को पटना में राज्‍य स्‍तरीय आंदोलन होंगे। आंदोलनों द्वारा देश भर में ज़मीन वापसी का अभियान चलाया जाएगा और 5 मई को दिल्‍ली में संसद मार्ग पर भूमि अध्रिकार संघर्ष रैली होगी। जमीन के मसले पर संघर्ष चलाने के लिए इस आंदोलन को नाम दिया गया है ''भूमि अधिकार संघर्ष आंदोलन''।  इस जनविरोधी व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए यह पहली कड़ी है।
भूमि अधिकार आंदोलन की विज्ञप्ति
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