क्या कश्मीर से भी हटेगा अफ़्सपा?
- 1 घंटा पहले
त्रिपुरा से सेना को विशेषाधिकार देने वाला क़ानून, अफ़्सपा, हटाए जाने के बाद अब भारत प्रशासित कश्मीर में भी इसे हटाने की माँग तेज़ हो गई है.
मुख्यधारा की कुछ राजनीतिक पार्टियाँ कश्मीर से अफ़्सपा हटाने की मांग कर रही हैं.
अलगाववादी संगठनों ने भी त्रिपुरा की तरह कश्मीर से भी अफ़्सपा हटाने की मांग कर राजनीतिक पार्टियों को मुश्किल में डाल दिया है.
भाजपा के साथ राज्य में गठबंधन सरकार चला रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने कहा है कि राज्य में सुरक्षा हालात बेहतर हुए हैं. अफ़्सपा जैसे क़ानून हटाए जाने चाहिए ताक़ि ज़मीन पर भी यह बदलाव दिखे.
'कश्मीरियों की आवाज़ सुनें'
पीडीपी के प्रवक्ता डॉक्टर महबूब बेग़ ने कहा, "ये तथ्य स्वीकार किया जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के लोग ही इस राज्य के हितों के सबसे बड़े रक्षक हैं. लोकतांत्रिक तरीक़े से उठाई गईं उनकी जायज़ मांगों को सुना जाना चाहिए ताक़ि विश्वास की कमी पूरी हो और वे ख़ुद को अलग ना मानें."
उन्होंने कहा कि प्रांत के लोकतांत्रिक संस्थानों के विकास के लिए यह ज़रूरी हैं कि उनमें 'संरक्षणात्मक हिरासत' की भावना ना हो.
बेग ने कहा कि लोगों को सुरक्षा के मुद्दे पर राहत देने के लिए अस्फ़पा हटाया जाना अहम है.
हालांकि भाजपा का कहना है कि वह राष्ट्रीय हित के मामलों में किसी को समझौता नहीं करने देगी.
नेशनल कॉन्फ़्रेंस भी हटाने के पक्ष में
जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दल नेशनल कांफ़्रेंस का कहना है कि प्रांत के शांत हिस्सों से अफ़्सपा हटाए जाने का यही सही वक़्त है.
पार्टी नेता नासिर असलम वानी ने कहा, "जम्मू-कश्मीर के अधिकतर इलाक़ों में हालात सामान्य हो गए हैं. कई इलाक़े ऐसे हैं जहाँ सुरक्षा बलों की कोई भूमिका ही नहीं है. ऐसे इलाक़ों से जल्द से जल्द अफ़्सपा हटना चाहिए."
उन्होंने कहा कि अपनी सरकार के दौरान उनकी पार्टी लगातार इसकी माँग करती रही थी और सेना के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका.
कांग्रेस का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को राहत दी जानी चाहिए लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा की क़ीमत पर नहीं.
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, "ऐसा क़ानून होना चाहिए जो कश्मीर में सैन्य बलों के संचालन में मदद करे, साथ ही कश्मीर के लोगों को भी राहत मिलनी चाहिए."
'पूरी आज़ादी से हल'
हुर्रियत कांफ़्रेंस ने त्रिपुरा के फ़ैसले का स्वागत करते हुए इसे जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए आँख खोलने वाला बताया है.
मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने कहा, "त्रिपुरा का अफ़्सपा हटाना एक साहसी फ़ैसला है. ये जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए आँख खोलने वाला है. हालांकि यहाँ सरकार की क़ानून हटाने की कोई इच्छा नहीं है."
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने कहा, "यह भारतीय क़ब्ज़े का ही एक नतीजा है. पूरी आज़ादी इस सबको ख़त्म कर देगी."
क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर सरकार भी प्रांत में क़ानून को बेअसर कर सकती है अगर वो इस संबंध में अपना गजट नोटिफ़िकेशन वापस ले ले.
जम्मू-कश्मीर सरकार ने छह जुलाई 1990 को नोटिफ़िेकेशन जारी किया था जिसमें प्रांत के कुछ इलाक़ों को हिंसा प्रभावित घोषित किया गया था जिसके बाद वहाँ अफ़्सपा लागू हो गया था. साल 2000 में जारी एक नोटिफ़िकेशन में जम्मू को भी हिंसा प्रभावित घोषित कर दिया गया था.
हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील जफ़र अहमद शाह कहते हैं कि यदि राज्य सरकार की मंत्री परिषद राज्यपाल के पास इस नोटिफ़िकेशन को हटाने का प्रस्ताव भेजती है तो राज्यपाल को उसे मानना होगा.
'राज्य सरकार चाहे तो हटा ले'
राज्य के महाधिवक्ता रेयाज़ जान कहते हैं कि नोटिफ़िकेशन वापस लेने का अधिकार उसी के पास होता है जो उसे जारी करता है. अगर सरकार ने नोटिफ़िकेशन जारी किया है तो वो उसे वापस भी ले सकती है.
हालांकि सेना की पंद्रहवी कोर के कमांडिंग ऑफ़िसर लेफ़्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा कहते हैं, "जहाँ तक कश्मीर का सवाल है, राज्य और केंद्र सरकार अफ़्सपा के मुद्दे पर विचार कर रही हैं. इसे वापस लेने का फ़ैसला भी वे ही ले सकती हैं."
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