[कमल शुक्ला द्वारा ]
-साथियों युद्ध का इतिहास , मानव सभ्यता के शुरुवात से है | हर समय ताकतवरों द्वारा कमजोरों को दबाने के लिए , अपना गुलाम बनाए रखने के लिए , हर प्रकार की सत्ता के लिए , जमीन के लिए , जंगल के लिए , जल के लिए युद्ध होते रहें हैं | मामा चाहे कंस हो या शकुनि हो याकि कल्लू हो , हर समय मामा होते आयें हैं | हमारा काम सच्चाई को सामने लाने का है , इसी सच्चाई से ही ईतिहास की सही बुनियाद बनेगी | अब- तक का इतिहास सत्ता पक्ष के चाटुकारों द्वारा बनाया गया है i भड़वों से इतिहास लिखाने की परम्परा पहले ख़त्म करनी होगी , तब बहुसंख्यक शोषित वर्ग का सम्मान लौटेगा और वह मजबूती से मुट्ठीभर शोषकों के खिलाफ उठ खड़ा होगा | अब तक हुए युद्धों के इतिहास में इसीलिए कमजोर पक्ष पराजित होते रहा , क्योंकि इतिहास गलत रहा , और बहुसंख्यक कमजोर पक्ष हमेशा इतिहास के भ्रमजाल में फंसकर आपस में ही उलझते रहा | सचाई यह भी कि हमेशा जनता को ही जनता के खिलाफ खड़ाकर अब-तक का परिणाम मुट्ठी भर बड़े लोगों के पक्ष में होते आया |
इन सारी बातों के बाद भी बस्तर के उन कलमकारों को जो सच्चाई उजागर करने के लिए अब भी पूरी निडरता के साथ और अपने बिके हुए संस्थानों के दबाव के बावजूद अपनी जान और रोजी-रोटी की कीमत पर सच्चाई सामने लाने के लिए डटें हुए हैं -- मेरा सलाम !! साथ ही देश और देश से बाहर पूरी दुनिया के पत्रकारों और लेखकों को मै सलाम करता हूँ , जो सचाई जानने और बताने के ईमानदार प्रयास में लगे हुए हैं | उनके इस प्रयास में अप्रत्यक्ष ही सही बस्तर के उन गुमनाम साथियों को भी सलाम जो उनके लिए गाईड और पथ-प्रदर्शक का काम कर रहें हैं और कल्लू मामा के निशाने पर आ गए हैं |मगर इस सच्चाई के साथ कि सच के लिए " भीतर " तो घुसना होगा , केवल बाहर से झांककर सच की गहराई नापी नहीं जा सकती | सच को भीतर से बाहर लाने के प्रयास को रोकने की हर " कल्लुरियत " ( जैसे धोखे के लिए जयचंदी ) कोशिश असफल साबित होगी इस आशा के साथ |
"कल्लुरियत " के शिकार जवान " |
" कल्लुरियत " के शिकार मासूम |
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