म. प्र. सरकार ने ‘लैंड बैंक- 2014’ में प्रदेश में लगभग 300 छेत्र चिन्हित किए है, जिसमें फ़िलहाल, लगभग, 65 हजार हेक्टर (1.5 लाख एकड़) जमीन उधोगों को देने के लिए की आरक्षित की गई है; इसमें अधिकांश जमीन आज भी राजस्व रिकार्ड में चरनोई आदि नाम से दर्ज है | यह जमीन, जिला और तहसील मुख्यालयों से जुड़े गाँवों की हाई-वे और प्रमुख मार्गों से लगी होने के करण बेशकीमती है| श्रमिक आदिवासी संगठन के मंगलसिंग और किसान आदिवासी संगठन के फागराम और सजप के प्रदेश अध्यक्ष राजेन्द्र गढ़वा ने कहा कि एक-तरफ भूमिहीन दलित और आदिवासी जमीन को तरस रहे है, सरकार के पास विस्थापितों को देने के लिए जमीन नहीं है|
‘लैंड बैंक- 2014’ की इन जमीनों मोटा-मोटा विवरण इस प्रकार है: 186 औधोगिक छेत्र मे, 6222 हेक्टर; 45 आधोगिक विकास केन्द्रों में, 8774 हेक्टर; इन्वेस्टर कोरिडोर: भोपाल इंदौर – 197 कि. मी.; भोपाल-बीना- 136 कि. मी.; जबलपुर-कटनी-सतना-सिंगरौली- 370 कि. मी.; मुरैना- ग्वालियर- शिवपुरी-गुना – 260 कि. मी. में कुल मिलाकर 16,634 हेक्टर जमीन; स्मार्ट सिटी के लिए 497 हेक्टर; और इसके आलावा, सभी जिलों में ओधोगिक प्रयोजन के लिए कुल 25,497 हेक्टर जमीन|
‘लैंड बैंक- 2014 में आरक्षित यह सारी जमीन इन प्रावधानों का खुला उल्लंघन है: पहला, म. प्र. राजस्व पुस्तक परिपत्र खंड 4, क्रमांक 1 – इसके अनुसार इन सार्वजानिक उपयोग की जमीनों को नजूल या सरकारी की मिलकियत में शामिल नहीं किया जा सकता| दूसरा, नीलेंद्र प्रताप सिंग विरुद्ध म. प्र सरकार मामलें में उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार गाँव में 2% चरोखर जमीन बची रहना जरुरी है| तीसरा, चरोखर जमीनों के मद परिवर्तन के प्रक्रिया धारा 237 म. प्र. भू राजस्व सहिंता में वर्णित है| चौथा, म. प्र. पंचायत राज अधिनियम के अनुसार कलेक्टर को इस हेतु संबंधित ग्राम-सभा की मंजूरी लेना जरुरी है, जो किसी भी मामले में नहीं ली गई है|
अगर हम म. प्र, सरकार के ‘कमिश्नर लैंड रिकार्ड्स’ की वेब साईट पर पर प्रदेश के सभी जिलों के नगरीय छेत्रों ‘लैंड बैंक’ की जमीनों की वि तालिका (देखे http://landrecords.mp.gov.in/landbank.htm ) में इन जमीनों की नोईयत देखें तो समझ आएगा: असल में यह सब सार्वजनिक जमीन है; जैसे: चरनोई, खलिहान, श्मशान, तालाब, कदीम, पारतल, आबादी, पहाड़ और ना जाने क्या-क्या नाम से दर्ज है| मुग़लों से लेकर अंग्रेजों के समय तक, जो जमीन समुदाय के अनेक तरह के उपयोग के लिए नियत थी, जैसे: चराई; आबादी; तालाब; कुम्हार की मिट्टी आदि उन्हें गाँव के ‘बाजुल उर्ज’ (राजस्व रिकार्ड) में दर्ज कर दिया जाता था | और, म. प्र. राजस्व सहिंता के खड 4, क्रमांक 1 के अनुसार सिर्फ ऐसी जमीन को नजूल या सरकार की मिलकियत में शामिल किया जा सकता है जो : A- किसी गाँव के खाते में शामिल ना हो; बी- बंजर, झाडीदार जंगल, पहाड़ियों, और चट्टानों, नदियों, ग्राम वन या शासकीय वन ना हो; क—ग्राम की सड़कों, गोठान, चराई भूमि, आबादी या चारागाह के रूप में अभिलिखित ना हो; D- ग्राम निस्तार या किसी भी सार्वजानिक प्रयोजन के लिए आरक्षित ना हो| याने, इन सारी जमीनों को नजूल या सरकारी मिल्कियत की जमीन में नहीं बदला जा सकता|
यह जमीन गाँव के विकास के लिए उपयोग की जाना चाहिए| एकतरफ सरकार गाय बचाने की बात करती है, और दूसरी तरफ चारागाह की सारी जमीन पूंजीपतियों को लुटाने पर अमादा है| इस दोहरे मापदंड की पोल खोलना जरुरी है|
लैंड बैंक लिंक
अनुराग मोदी , समाजवादी जन परिषद, कोठी बाज़ार, बैतूल (म. प्र.) sasbetul@yahoo.com 09425041624
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