मोदी सरकार की डाओ [डाओ केमिकल] से सांठगांठ?
Tuesday, May 26, 2015
[सीजीखबर ]
भोपाल | एजेंसी: मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर भोपाल गैस पीड़ित आरोप लगा रहें हैं कि डाओ केमिकल्स को सरकार का समर्थन प्राप्त है.मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 वर्ष पूर्व 1984 में हुए यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी के शिकार लोगों की लड़ाई लड़ रहे संगठनों का आरोप है कि केंद्र सरकार गुपचुप तरीके से डाओ केमिकल का समर्थन कर रही है. मोदी सरकार के एक वर्ष पूरे होने पर गैस पीड़ितों के पांच संगठनों ने एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में मंगलवार को केंद्र की सरकार को जमकर कोसा. गैस पीड़ित संगठनों का कहना है कि केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार को एक साल हो गया है, मगर उसने गैस पीड़ितों के इंसाफ और पुनर्वास के लिए कोई काम नहीं किया है.
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि मोदी सरकार का साल अपराधी अमरीकी कंपनियों को जानबूझकर ढील देने और पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास की तरफ लापरवाही बरतने का साल रहा है.
पिछले एक साल में मोदी सरकार द्वारा यूनियन कार्बाइड के मालिक डाओ केमिकल्स को पहुंचाए गए फायदे को लेकर गैस पीड़ित संगठनों में खासा गुस्सा है. भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा है कि डाओ केमिकल की भारतीय शाखा डाओ एग्रो साइंस के खिलाफ मौजूदा सबूत को सीबीआई ने जानबूझकर दबा दिया, जिससे कंपनी के खिलाफ रिश्वत देने का आपराधिक मामला सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा खारिज कर दिया गया.
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नबाव खां का कहना है कि गैस कांड पर भोपाल जिला अदालत से जारी आपराधिक प्रकरण में डाओ केमिकल को हाजिर कराने में पिछले एक साल में केंद्र सरकार दो बार विफल रही है.
नबाव ने कहा, “लगता है, प्रधानमंत्री मोदी अमरीकी कंपनियों को यह संदेश भेज रहे हैं कि भारत के कानूनों की अवहेलना करते हुए भी वे भारत में व्यापार कर सकती हैं.”
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा का आरोप है कि डाओ केमिकल को एनडीए सरकार द्वारा दिए जा रहे गुपचुप समर्थन की वजह से ही सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा भोपाल कारखाने के अंदर और आस-पास के प्रदूषण की वैज्ञानिक जांच को करने से मना कर दिया.
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जांच होने पर यह पता चलता है कि डाओ कंपनी को कितना हर्जाना देना है. साथ ही इसके बाद भोपाल में जहर सफाई का काम शुरू हो सकता था, परंतु पर्यावरण मंत्री ने इस संभावना को ही खत्म कर दिया है.
भोपाल गैस पीड़ितों के संगठनों ने कहा कि एक तरफ राजग सरकार अमरीकी कंपनियों को समर्थन दे रही है और दूसरी तरफ पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास में लापरवाही बरत रही है. सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी समिति ने गैस पीड़ितों, खाकर विधवाओं के लिए अस्पतालों में अच्छे डाक्टरों, अच्छी दवाएं और सही इलाज की व्यवस्था का निर्देश बार-बार दिया है, फिर भी पिछले एक साल में इसमें कोई बेहतरी नहीं हई है.
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