किसानों की कब्रगाह भी है कर्नाटक
कर्नाटक का गुलबर्गा जि़ला। छोटे से $कस्बे जाबार्गी में दो चुनावी रैलियों की अचानक याद आ गई मुझे। बीजेपी के जगदीश शेट्टार और कांग्रेस के राहुल गांधी। शेट्टार की रैली जाबार्गी में हुई थी, राहुल की वेल्लारी के हासनपेट में। दोनों की रैलियां खचाखच भरी है। मैंने आसपास अपनी गहरी नज़ऱ से देखा था, क्या यह भीड़ खरीदी हुई है, लोगों के चेहरे से कुछ पता नहीं लगता। शायद हां, या नहीं।
हर चेहरा पसीने से लिथड़ा है किसी चेहरे पर कुछ नहीं लिखा है। दोनों ने जनता से वोट मांगी, भावनात्मक अपीलें की थीं, जनता ने जवाब हुंकारे से दिया था। लेकिन मैं जब देहात का दौरा करने लगा था तो एक अजीब सा निराशा भाव था हरतरफ । अपने दौरे में उत्तरी कर्नाटक के जिस भी जि़ले में गया, चुनावी भागदौड़ के बीच हर जगह एक फुसफुसाहट चाय दुकानों पर सुनने को मिली। कन्नड़ समझ में नहीं आती थी, लेकिन स्वर अनुतानों से पता चल जाता था कि खुशी की बातें तो हैं नहीं। कारवाड़, बीजापुर, गुलबर्गा, बीदर…हर तरफ सूखा था। किसानों की आत्महत्या के किस्से भी थे।
बीजापुर के एक गाँव नंदीयाला गया। इस गाँव में पिछले साल एक किसान लिंगप्पा ओनप्पा ने आत्महत्या की थी। उसके घर जाता हूं, दिखता है भविष्य की चिंता से लदा चेहरा। रेणुका लिंगप्पा का चेहरा। रेणुका लिंगप्पा की विधवा हैं। अब उनपर अपने तीन बच्चों समेत सात लोगों का परिवार पालने की जिम्मेदारी आन पड़ी है। पिछले बरस इनके पति लिंगप्पा ने कर्ज के भंवर में फंसकर और बार-बार के बैंक के तकाज़ों से आजिज आकर आत्महत्या का रास्ता चुन लिया।
लिंगप्पा ने खेती के काम के लिए स्थानीय साहूकारों और महाजनों और बैंक से कर्ज लिया था, लेकिन ये कर्ज लाइलाज मर्ज की तरह बढ़ता गया। बीजापुर के बासोअन्ना बागेबाड़ी में आत्महत्या कर चुके चार किसानों के नाम हमारे सामने आए। इस तालुके के मुल्लाला गांव शांतप्पा गुरप्पा ओगार पर महज 31 हजार रुपए का कर्ज था।
नंदीयाला वाले लिंगप्पा पर साहूकारों और बैंको का कुल कर्ज आठ लाख था। इंगलेश्वरा गांव के बसप्पा शिवप्पा इकन्नगुत्ती और नागूर गांव के परमानंद श्रीशैल हरिजना को भी मौत की राह चुननी पड़ी।
नंदीयाला वाले लिंगप्पा पर साहूकारों और बैंको का कुल कर्ज आठ लाख था। इंगलेश्वरा गांव के बसप्पा शिवप्पा इकन्नगुत्ती और नागूर गांव के परमानंद श्रीशैल हरिजना को भी मौत की राह चुननी पड़ी।
पूरे बीजापुर जि़ले में 2012 अप्रैल से 2013 अप्रैल तक 13 किसानों ने आत्महत्या की राह पकड़ ली। पूरे कर्नाटक में यह आंकड़ा इस साल (साल 2013 में) 187 तो 2011 में 242 आत्महत्याओं का रहा था। 2013 में, बीदर में 14, हासन मे दस, चित्रदुर्ग में बारह किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। गुलबर्गा, कोडागू, रामनगरम, बेलगाम कोलार, चामराजनगर, हवेरी जैसे जिलों से भी किसान आत्महत्याओं की खबरें के लिए कुख्यात हो चुके हैं। खेती की बढ़ती लागत और उत्तरी कर्नाटक का सूखा किसानों की जान का दुश्मन बन गया है। पिछले वित्त वर्ष में कुल बोई गई फसलों का 16 फीसद अनियमित बारिश की भेंट चढ़ गया। और कर्नाटक सरकार ने सूबे के 28 जिलों के 157 तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया था। लेकिन राहत कार्यों में देरी ने समस्या को बढ़ाया ही।
किसानों की आत्महत्या कर्नाटक में नया मसला नहीं है। पिछले दस साल में 2886 किसानों ने अपनी जान दी है। पिछले दशक में बारह ऐसे जिले हैं जिनमें सौ से ज्यादा किसान आत्महत्याएं हुई हैं, ये हैं बीदर, 234 हासन 316, हवेरी 131, मांड्या 114, चिकमंगलूर 221, तुमकुर 146, बेलगाम 205, शिमोगा 170 दावनगेरे 136, चित्रदुर्ग 205 गुलबर्गा 118, और बीजापुर 149 लेकिन किसानों की आत्महत्याएं अब आम घटना की तरह ली जाने लगी हैं और विकास की अंधी दौड़ में हाशिए पर पड़े गरीब किसानों की जान की कीमत अखबार में सिंगल कॉलम की खबर से ज्यादा नहीं रही हैं।
उत्तरी कर्नाटक में पानी बड़ी समस्या है, खेतों के लिए भी और नेताओं के आंखों के लिए भी। दोनों के लिए किसान मामूली हो गए हैं।
लेखक पेशे से पत्रकार हैं ग्रामीण विकास और विस्थापन जैसे मुद्दों पर लिखते हैं।
लेखक पेशे से पत्रकार हैं ग्रामीण विकास और विस्थापन जैसे मुद्दों पर लिखते हैं।
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