Friday, May 15, 2015

बेतुका और हास्यास्पद विश्वास कि ईश्वर ने मंदिर तो बचा लिया जबकि हजारों लोगों की जान ले ली

बेतुका और हास्यास्पद विश्वास कि ईश्वर ने मंदिर तो बचा लिया जबकि हजारों लोगों की जान ले ली 
पशुपतिनाथ मंदिर, नेपाल
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मैं आज फिर नेपाल के भूकंप के बारे में लिखना चाहता हूँ। सिर्फ इसलिए नहीं कि अभी भी वहाँ ज़रूरतमंदों के पास मदद नहीं पहुँच सकी है बल्कि इसलिए भी कि कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि जिस दिन भूकंप आया था, एक अलौकिक चमत्कार भी हुआ था: काठमांडू का मुख्य मंदिर, पशुपतिनाथ मंदिर ध्वस्त नहीं हुआ। मैं समझता हूँ कि इसे चमत्कार कहना या उससे बढ़कर 'ईश्वरीय शक्ति का प्रमाण' कहना बेहूदा और हास्यास्पद है!
भारतीय दृश्य मीडिया इसे बार-बार दिखा रहा है और बहुत से धार्मिक लोग सोशल मीडिया पर इस पर टिप्पणियाँ लिख रहे हैं और इस समाचार और संबंधित चित्रों को मित्रों के साथ साझा कर रहे हैं: सारा शहर तहस-नहस हो गया सिर्फ मंदिर अब भी खड़ा है! ईश्वर ने मंदिर को बचा लिया, वह इतना पवित्र था कि इतना भयंकर भूकंप भी उसका कुछ बिगाड़ न सका!
यही 2013 में भी हुआ था, जब उत्तरी भारत में भयंकर बाढ़ आई थी। हिमालय क्षेत्र में हजारों लोग मारे गए और न जाने कितने मकान तबाहो बरबाद हो गए! केदारनाथ नामक तीर्थस्थान में सारे मकान ध्वस्त हो गए मगर केदारनाथ मंदिर बचा रह गया।
मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि आप ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हैं, आपकी आस्था आपको मुबारक, आप रोज़ प्रार्थना करें, आराधना करें या तीर्थ यात्रा करें-मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मैं आपको एक मित्रतापूर्ण सलाह देना चाहता हूँ कि इस तरह की बात न कहें कि ‘ईश्वर का घर ध्वस्त नहीं किया जा सकता’ क्योंकि उससे आप असंवेदनशील नज़र आते हैं और ईमानदारी से कहा जाए तो, मूर्ख भी!
अगर वास्तव में आप विश्वास करते हैं कि धरती पर घटित होने वाला सब कुछ ईश्वर ही करता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह भूकंप लेकर आया, वह बाढ़ लेकर आया, हजारों लोगों को मौत के मुँह में धकेला, लाखों-करोड़ों लोगों को कष्ट उठाने पर मजबूर किया-और किसी स्वार्थी व्यक्ति की तरह अपना घर बचा लिया? और फिर उन सैकड़ों मंदिरों के बारे में आपका क्या कहना है, जो पूरी तरह नेस्तनाबूद हो गए और जिनमें आराधना करने वाले सामान्य लोग और पुरोहित मारे गए? सैकड़ों नहीं, हजारों देवी-देवता, उनकी छोटी-छोटी मूर्तियाँ, जो ईश्वर के रूप में पूजी जाती थीं, टूट-फूट गईं, ध्वस्त हो गईं, मलबे में समा गईं! या फिर, क्या उनके लिए कोई दूसरा ईश्वर जिम्मेदार है? कमजोर ईश्वर, जो अपने घर की रक्षा नहीं कर सके?
लेकिन नहीं, आपके लिए यह बहुत ही शुभसूचक (मंगलकारी) घटना है कि मंदिर भूकंप के बावजूद खड़ा है-इसलिए नहीं कि हो सकता है, उसकी नींव मजबूत रही हो या उसका निर्माण बेहतर ढंग से किया गया हो, जैसा कि किया जाना संभव था क्योंकि उनके पास अधिक आर्थिक संसाधन होते हैं? निश्चित ही, उन गरीब ग्रामीणों से बहुत ज़्यादा, जिनके घर ध्वस्त हो गए और जो थोड़ी बहुत सरकारी या अंतर्राष्ट्रीय मदद का अब भी इंतज़ार कर रहे हैं!
मेरे खयाल से अगर आप ऐसी बातें कहते हैं तो अपनी ही आस्थाओं का मज़ाक उड़ा रहे होते हैं। अगर ईश्वर का अस्तित्व मान भी लिया जाए तो क्यों आपके ईश्वर के पास इतनी शक्ति नहीं है कि अपने सभी घरों की रक्षा कर ले, नेपाल के सभी मंदिरों को ध्वस्त होने से बचा ले? और इसके बाद भी यह प्रश्न बरकरार रहता है: उसने इन लोगों पर इतनी बड़ी आफत क्यों ढाई? उन्हें इतने कष्ट उठाने के लिए मजबूर क्यों किया? और इस प्रश्न का उत्तर देते हुए ‘कर्म सिद्धान्त’ का तर्क इस्तेमाल न करें-मैं पहले ही इस हास्यास्पद विचार पर लिख चुका हूँ! जी नहीं, मेरे विचार से ऐसा कोई ईश्वर नहीं है जो भूकंप लाता है और फिर सिर्फ एक इमारत को बचा लेता है क्योंकि उसके मुताबिक वह महत्वपूर्ण है!
लेकिन जब कि हम इस विषय पर बात कर रहे हैं, मैंने यह भी सुना है कि वहाँ एक वेश्यालय भी था, और उस पर भी एक खरौंच तक नहीं आई... अब आप इस पर जो चाहे, सोचते रहें!


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