Wednesday, May 6, 2015

छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम पार्ट-2

छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम पार्ट-2

Wednesday, May 6, 2015
[छत्तीसगढ़ खबर ]
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सलवा जुडूम
रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ में सलवा जुड़िम पार्ट-2 शुरु होने के संकेत मिल रहें है.नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के बस्तर में फिर से सलवा जुडूम अभियान चलाए जाने के संकेत मिले हैं. सलवा जुडूम पार्ट-2 का नेतृत्व दिवंगत कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा सम्हालेंगे.
पहले सलवा जुडूम का नेतृत्व कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा ने किया था और राज्य सरकार ने इसमें मदद की थी. दो साल पूर्व महेंद्र का निधन झीरम घाटी में नक्सली हमले में हो गया था.
सलवा जुडूम पार्ट-2 के संबंध में अंतिम निर्णय 25 मई को आयोजित बैठक में लिया जाएगा. छविंद्र कर्मा की मानें तो जनजागरण के अभाव में बस्तर में नक्सली समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. गांवों में उनका दबदबा बढ़ा है तो झीरम घाटी की घटना के बाद उनका दुस्साहस भी बढ़ चुका है.
समझा जा रहा है कि 25 मई को झीरम घाटी में नक्सली हमले में शहीद महेंद्र कर्मा की पुण्यतिथि में आयोजित सभा में सलवा जुडूम-2 की रूपरेखा तय होगी. छविंद्र कर्मा के अलावा जुडूम आंदोलन से जुड़े सुखदेव ताती, चैतराम अटामी आदि भी इससे जुड़ चुके हैं.
सलवा जुडूम एक आदिवासी शब्द है, जिसका अर्थ होता है- ‘शांति का कारवां’. कम्युनिस्ट नेता रहे महेंद्र कर्मा ने कांग्रेस में आने के ‍बाद सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत की. इस अभियान में ग्रा‍मीणों की फोर्स तैयार करना था, जो माओवादियों के खिलाफ लड़ सके. ग्रामीण आदिवासियों को हथियार देकर उन्हें स्पेशल पुलिस ऑफिसर, एसपीओ बनाया गया.
उल्लेखनीय है कि साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ और केंद्र सरकार को आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त करने और उन्हें माओवादियों के खिलाफ हथियारों से लैस करने से रोक दिया था. न्यायालय ने इस कदम को असंवैधानिक करार दिया था.
आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारी, एसपीओ नियुक्त करने और उन्हें हथियारों से लैस करने से छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र को मना करते हुए अदालत ने कहा था कि आदिवासी युवकों को एसपीओ नियुक्त करना असंवैधानिक है. पीठ ने कहा था कि माओवादियों से लड़ने के लिए आदिवासियों की शैक्षणिक योग्यता और प्रशिक्षण सहित पात्रता मानदंड संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है.
कई सामाजिक आंदोलनों के नेता आरोप लगाते रहें हैं कि दरअसल, टाटा के कारखाने बनाने के लिये सलवा जुड़ुम की आड़ में उन्हें जमीन मुहैया कराने की कोशिश की गई थी.

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