बस्तर में उद्योगों के खिलाफ सड़क पर उतर आए आदिवासी
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जगदलपुर। बस्तर में उद्योगों की स्थापना के लिए हुए एमओयू को निरस्त करने तथा पोलावरम व बोधघाट परियोजना पर चल रही सारी कार्यवाई बंद करने आदि चार सूत्रीय मांगो को लेकर दस दिनों से बस्तर में जारी आदिवासी महासभा की पदयात्रा गुरुवार को शहर में विशाल रैली के साथ समाप्त हो गई।
अपनी मांगो को बुलंद करते रैली शहर के विभिन्न मुख्य मार्गो से गुजरी। रैली में शामिल होने पहुंचे लोगों ने जमकर नारेबाजी भी की। रैली में काफी संख्या महिलाएं भी थी। सबसे ज्यादा ग्रामीण डिलमिली व लोहंडीगुड़ा क्षेत्र से पहुंचे थे। रैली का नेतृत्व महासभा के संभागीय संयोजक व सीपीआई के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने किया।
रैली के आमसभा में तब्दील होने के पूर्व महासभा के नेता रैली लेकर कमिश्नर कार्यालय पहुंचे और प्रधानमंत्री के नाम पर संबोधित मांगों से जुड़ा ज्ञापन सौंपा। रैली के बाद शहर के मध्य हाता मैदान में हुई जनसभा को संबोधित करते महासभा के संभागीय संयोजक व सीपीआई के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने ऐलान किया कि यदि मांगे नहीं मानी जाती हैं तो महासभा बड़ा आंदोलन छेड़ेगी। चरणबद्घ आंदोलन में हिस्सा बस्तर बंद के आयोजन का भी होगा जो एक दो दिन नहीं बल्कि मांगे माने जाने तक भी चल सकता है।
श्री कुंजाम ने कहा कि उद्योगों के आने से बस्तर में सबसे ज्यादा विस्थापन की मार आदिवासी समुदाय को सहनी पड़ेगी। विकास के नाम पर विनाश की स्थिति पैदा होगी। आदिवासियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थितियां प्रभावित होंगी। उन्होंने कहा कि सरकारी कंपनी एनएमडीसी ने नगरनार में स्टील प्लांट लगाना शुरू किया जिसका विरोध आदिवासी महासभा ने नहीं किया।
महासभा को उम्मींद थी कि इस स्टील प्लांट में स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा पर ऐसा हुआ नहीं। बैलाडीला में स्थिति इससे अलग नही है। इससे आने वाले उद्योगों से भी बस्तरिया को फायदा नहीं होगा यह तय है। उन्होंने बस्तर में छठवी अनुसूची लागू करने की वकालत करते हुए कहा कि संविधान में यदि इसका प्रावधान किया गया है तो कुछ सोच समझकर ही किया गया होगा। सरकार को चाहिए कि वह इस प्रावधान को लागू करे। इससे कई स्थानीय समस्याएं खुद हल हो जाएंगी
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