भूमि अधिकार आंदोलन
Movement for Land Rights
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भूमि अधिकार संघर्ष रैली में हजारों हज़ार किसानों-मज़दूरों ने की भूमि अध्यादेश 2015 वापस लेने की मांग
दी चेतावनी, नहीं होने देंगे ज़मीन और कृषि की लूट!
5 मई, नई दिल्ली: कृषि प्रधान कहा जाने वाला यह देश आज कॉर्पोरेट प्रधान हो गया है, जहाँ मोदी-सरकार देश की ज़मीन, जंगल, खनिज, पानी और कृषि देशी-विदेशी कंपनियों को बेचने पर तुली हुई है. किसानों द्वारा लगातार हो रही आत्महत्याएं इस बात की सूचक हैं कृषि और उसपर निर्भर रहने वाले लाखों लोगों का जीवन सरकार के लिए कोई मायने नहीं रखता. मौसम की मार, फसल बर्बादी और कृषि संकट से जूझते किसान-मज़दूरों को राहत देने की बजाये, मोदी-सरकार उनकी जमीन ही छीन लेने के लिए भूमिअधिग्रहण अध्यादेश 2015 लायी है. जहाँ एक ओर सरकार अपनी “छवि” सुधारने के प्रयास में हैं, तो वहीँ दूसरी ओर जमीन अधिग्रहण अध्यादेश को गरीबों की परियोजनाओं और देश-हित के लिए ज़रूरी बताते हुए सरकार कई तरह के मिथक फैला रही है. यह कहा जा रहा है कि अध्यादेश का मकसद धीमी पड़ी विकास दर को तेज करना और उन परियोजनाओं को शुरू करना है जोकि “भूमि अधिग्रहण समस्याओं” के कारण रुकी हुई थीं. लेकिन RTI से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कुल 804 रुकी हुई परियोजनाओं में ( जिसमें 78 % प्राइवेट परियोजनाएं हैं ) से केवल 8 % (66 परियोजनाएं) ही अधिग्रहण से सम्बंधित कारणों से रुकी हुई हैं, जबकि अधिकांश परियोजनाएं फण्ड या बाजार के प्रभावों का शिकार हैं. तो फिर क्यूँ इस अध्यादेश को ‘विकास के लिए ज़रूरी परियोजनाओं के लिए रास्ता’ बताकर देश के गरीब, किसानों और मज़दूरों के साथ यह अन्याय किया जा रहा है?
इन सभी सवालों पर अपना विरोध दर्ज करने आज दिल्ली के संसद मार्ग पर जन-सैलाब उमड़ आया जब हज़ारों हज़ार की संख्या में देश के किसान, मजदूर, मछुवारे, शहरी गरीब, प्रगतीशील लोग और उनके संगठन एक साथ भूमि अधिकार आन्दोलन के अंतर्गत “भूमि अधिकार संघर्ष रैली” में शामिल हुए. ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, तमिलनाडू, पंजाब, हरयाणा, दिल्ली, राजस्थान एवं अन्य राज्यों से लोगों ने रैली में शामिल होकर भूमि अध्यादेश 2015 को पूर्णतः रद्द करने की पुरजोर मांग रखी. साथ ही, देश में जगह-जगह इस मांग को लेकर रैलियां, धरने, प्रदर्शन और सभाएं आयोजित की गईं. देश भर में फसल ख़राब होने का इतना बड़ा दुःख झेलते हुए भी किसानों-मज़दूरों ने अपनी जमीन, खेती और जीवन बचाने की लडाई हर घर, खेत-खलिहानों, बस्ती-गाँव-शहर में छेड़ दी है.
लोगों के संघर्ष को समर्थन देने राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों ने रैली को संबोधित किया. जनता दल यूनाइटेड के राज्य सभा सांसद पवन वर्मा ने भूमि अधिकार आन्दोलन का समर्थन किया, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन ने कहा कि उनकी सरकार पश्चिम बंगाल विधान सभा में इस अध्यादेश को पारित नहीं होने देगी. सीताराम येचुरी ने कहा की जमीन पर चल रहा आन्दोलन ही उन्हें संसद में अध्यादेश की लडाई में ताकत देता है ओर इसीलिए, जमीन ओर संसद दोनों पर इस अध्यादेश को पारित नहीं होने देंगे. डी. राजा ने कहा कि अब मोदी सरकार की किसान-मजदूर विरोधी नीतियों का जवाब अब संघर्ष की भाषा से दिया जायेगा. फॉरवर्ड ब्लॉक के कामरेड देवराजन ने कहा कि मोदी-सरकार के सारे वादे एक ही साल में झूठे साबित हुए हैं और सरकार के प्रति असंतोष फ़ैल चुका है.
प्रतिभा शिन्दे, उल्का महाजन, त्रिलोचन पूंची, उमेश तिवारी, आराधना भार्गव, कमला यादव, डॉ. सुनीलम, प्रफुल्ला समंतारा, भूपेंद्र रावत, हनन मोल्लाह, अतुल अंजान, सत्यवान, दयामनी बरला ने भूमि अधिग्रहण और प्राकृतिक संसाधनों और कृषि की लूट के खिलाफ देश भर में संघर्ष तेज़ करने की बात रखी. मेधा पाटकर ने कहा कि देश का संविधान जीने का अधिकार देता है, लेकिन अगर जमीन, जंगल, कृषि, नदियाँ और आजीविका का अधिकार ही छीन लिया जाए, तो इस देश के मेहनतकश जी ही नहीं पाएंगे. गुजरात का मॉडल, जो गरीबों, किसानों, मज़दूरों, अल्पसंख्यकों, दलितो, आदिवासिओं और महिलाओं के खिलाफ है, उसे हम देश के विकास का मॉडल के रूप में नहीं लागू होने देंगे. मोदी जी सिर्फ अपने “मन की बात” करते हैं, लेकिन इस देश के किसानों-मज़दूरों के मन की बात उन्होंने आज तक नहीं सुनी. हम राजनैतिक पार्टियों से भी आह्वाहन करते है कि सिर्फ अध्यादेश का विरोध करना ही काफी नहीं, उन्हें किसान-मज़दूरों के साथ खड़ा भी होना होगा. यह लडाई सिर्फ अध्यादेश के खिलाफ ही नहीं, विकास की गैर-बराबर अवधारणा को चुनौती है.
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