इसे अपने मुल्क की कहानी मत समझना
[ himanshu kumar]
ये वो समय था जब
कंपनियों के लिए ज़मीनों पर कब्ज़े के सिलसिले में
हज़ारों आदिवासी लडकियां बलात्कार के बाद जेलों में डाल दी गयी थीं
आदिवासी लड़की के गुप्तांगों में पत्थर डालने का आदेश देने वाले
एक बार फिर से फूल मालाएं पहन ढोल धमाके के साथ हुक्म देने वाली कुर्सी पर विराजमान हो गए थे .
अमीर कंपनियों की लूट का विरोध करने वाले
देशभक्तों को जेल में डालने और उनका क़त्ल करने के लिए उनकी सूचियाँ तैयार करने का काम
अब सरकारी ख़ुफ़िया एजेंसियां कर रही थीं
लोक तन्त्र का मतलब चुनाव में वोट डालना भर बताया जा रहा था
अब चाय की पत्ती बेचने वाली टाटा नाम की एक कम्पनी नौजवानों को लोकतंत्र का असली मतलब बताती थी
बराबरी और न्याय अब लोकतंत्र के ज़रूरी हिस्से नहीं माने जाते थे
गाँव के ज़मीनों पर कंपनियों के गुर्गों के ज़ुल्मों की कहानियों से अब नौजवानों
का खून नहीं खौलता था .
नौजवानों के पास बहुत ज़रूरी काम थे
नौजवान नस्ल क्रिकेट देखती थी
और वो उन्ही अमीरों ज़ालिम कंपनियों में नौकरियों के लिए
बेसब्रे थे
इसे अपने मुल्क की कहानी मत समझना
ये कहानी तो दूर बसे किसी अफ्रीकी देश की है
हम तो महान देश के सर्वश्रेष्ठ नागरिक हैं
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