तेरी रहबरी का सवाल है
----------------------------
----------------------------
'' जनसत्ता '' २ सितम्बर के अंक में '' भाषा '' के हवाले से छपी खबर के मुताबिक भोपाल की विशेष अदालत ने सिमी के चार कथित '' आतंकियों '' को सबूतों के घोर अभावों के चलते ना सिर्फ बारी कर दिया बल्कि अभियोजन (पुलिस ) को कड़ी लताड़ भी लगाईं। मामला जावरा (रतलाम ) में बैंक डकैती के प्रयास का था। पुलिस का मामले में बनाया गया केस अदालत में टिक नहीं पाया। जो गवाह पेश किये गए उन्होंने आरोपियों को पहचानने से इंकार कर दिया। जिन पुलिस अधिकारियों के नाम इस मामले में अभियोजन ने दिए उनका इस केस या स्थान से कोई सम्बन्ध नहीं था। अदालत की नज़र में पुलिस ऐसा भी कोई सबूत पेश नहीं कर पायी कि पकडे गए लोग '' सिमी '' के कार्यकर्त्ता हैं। जब पुलिस ने इन्हें पकड़ा था तब इनकी गिरफ्तारी की खबर प्रदेश के अखबारों में पहले पेज की सुर्खियां बनी थीं लेकिन जब इन्हें रिहा किया गया तो सिर्फ '' नई दुनिया '' और '' राज एक्सप्रेस '' ने इसे अंदर के पेज पर छापने के लायक समझा। सबसे बड़े अखबार में तो यह खबर सिरे से गायब है। मुझे पुलिस से उतना गिला नहीं है जितना मीडिया के रवैये पर है। कभी -कभी तो लगता है कि इस '' गुनाह '' में सब बराबर के शरीक हैं। मेरा संदेह गलत साबित हो क्योंकि यह '' प्रेस '' के इक़बाल का भी मामला है। i
[ नासिर खान गवालियर ]
No comments:
Post a Comment