Tuesday, June 23, 2015

भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ ऑन लाईन अभियान


भूमि अधिग्रहण  बिल के खिलाफ ऑन  लाईन  अभियान 


रायपुर. भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार कानून -2013 में बदलाव की कोशिशों के खिलाफ ऑनलाइन अभियान भी शुरू हो गया है। मानव अधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी "बिल की बात" शीर्षक से एक ऑनलाइन अभियान शुरू किया है।
गुरुवार से शुरू हुए इस ऑनलाइन अभियान में प्रदेश के संगठन भी शामिल हो रहे हैं। संगठन का कहना है कि कानून में प्रस्तावित बदलाव कमजोर समूहों के मानव अधिकारों पर हमला है। इससे पहले संगठन ने भूमि-अधिग्रहण के दूसरे संशोधित बिल पर सलाह देने के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति को अपना सुझाव भेज दिया है।
लोकसभा में बहस के बाद सरकार ने बिल पर सहमति बनाने के लिए 13 मई 2015 को संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया था। एसएस अहलुवालिया की अध्यक्षता में गठित इस समिति में 30 सदस्य हैं। इनमें से 20 लोक सभा के और 10 राज्य सभा के सांसद हैं। समिति ने 14 जून तक विभिन्न लोगों-संगठनों के सुझाव मंगाए हैं।
अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी हवाला
याचिका में कहा गया है कि प्रस्तावित संशोधन जबरन विस्थापन के खिलाफ हुई अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर रहा है। इन संधियों में भारत भी एक पक्षकार है। इनमें कहा गया है कि सरकार कमजोर समूहों के मानवाधिकारों की रक्षा करेगी। याचिका कहती है कि प्रस्तावित कानून का मसौदा एेसी संधियों और मानव अधिकारों के खिलाफ है।
60 लाख लोगों का विस्थापन
देश में विकास और आधारभूत ढांचे के विकास के नाम पर 1947 से 2000 तक 60 लाख लोगों का विस्थापन हो चुका है। एक अनुमान के मुताबिक इनमें से पांच लाख लोगों को केवल खनन परियोजनाओं की वजह से अपनी जमीन छोडऩी पड़ी है। योजना आयोग के मुताबिक इनमें से केवल 29 प्रतिशत प्रभावितों का पुनर्वास किया जा सका। शेष अभी भी बदहाली के लिए अभिशप्त हैं।
इन मुद्दों पर हो रहा है विरोध
प्रभावितों की सहमति के बिना अधिग्रहण जबरदस्ती हो जाएगा।
कमजोर खासकर आदिवासी वर्गों को विस्थापित होना पड़ेगा।
भूमि पर मालिकाना हक नहीं रखने वालों और लीज पर खेती करने वालों को कोई मुआवजा नहीं मिलेगा।
सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के बिना अधिग्रहण खतरनाक परिणाम लाएगा।
संयुक्त संसदीय समिति को भेजा है सुझाव
हमारी कोशिश विभिन्न वर्गों को इस अभियान से जोडऩे की है। इसमें मानवाधिकारों से जुड़ी चिंता को उठाया गया है। पिछले दिनों संयुक्त संसदीय समिति को इससे जुड़ा सुझाव भी भेजा गया।
दुर्गा नंदिनीएमनेस्टी इंटरने


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