Tuesday, June 23, 2015

भरी बरसात में राशन के लिए पचास किमी पैदल जाएंगे आदिवासी

भरी बरसात में राशन के लिए पचास किमी पैदल जाएंगे आदिवासी

Posted:   Updated: 2015-06-14 19:32:17 ISTBastar : tribal fifty-km walk in the rain for rations
छत्तीसगढ में नागरिक आपूर्ति प्रणाली में नम्बर वन का खिताब लेने वाले बस्तर जिले के ग्रामीणों को बरसात के मौसम में राशन के लिए पचास किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है।
जगदलपुर/बस्तर. छत्तीसगढ में नागरिक आपूर्ति प्रणाली में नम्बर वन का खिताब लेने वाले बस्तर जिले के ग्रामीणों को बरसात के मौसम में राशन के लिए पचास किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है। विभाग ने बरसात के पहले पहुंच विहीन इलाकों में राशन पहुंचाने के जो इंतजाम किए हैं उससे अब इंद्रावती नदी के पार बसे हर्राकोडेर, एरपुण्ड, चंदेला समेत दर्जनों गांव के ग्रामीणों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है। पेट की आग के लिए लंबी दूरी तय करने के सिवाय यहां के रहवासियों के पास कोई दूसरा चारा नहीं बचा है।
राशन पहुंचाने के नाम पर महज खानापूर्ति
राशन के लिए इन इलाके के ग्रामीणों को लंबी दूरी तय करने साथ ही नदी-नालों को भी पार कर राशन दुकान तक पहुंचना पड़ रहा है। प्रशासन के आदेश पर नागरिक आपूर्ति निगम की ओर से बरसात के पहले जिले के कोंलेंग, छिंदगढ़, बड़ेकाकलूर समेत मारडूम ब्लॉक के बिंता घाटी से लगे हर्राकोडेर, एरपुण्ड व चंदेला के लिए दो-दो माह के राशन के इंतजाम कर दिए। जबकि हकीकत यह है कि अंदरुनी इलाकों में राशन पहुंचाने के नाम पर महज खानापूर्ति ही की गई। जिले के हर्राकोडेर व एरपुण्ड व इसके आश्रित गावों का राशन वहां से पचास किमी दूर दंतेवाड़ा जिले के गीदम में रखवाया गया है। इसी तरह इसी इलाके के बिंता पंचायत के गांव चंदेला का राशन यहां से सात किमी दूर रतेंगा के स्कूल में रखवाया गया है।
सड़क का नाम नहीं
जगदलपुर से हर्राकोडेर व एरपुण्ड के लिए कोई सड़क नहीं है। बिंता होते हुए इंद्रावती नदी को नाव में पार कर चंदेला और फिर वहां से पगडंडी के जरिए ही इन गांवों तक पहुंचा जा सकता है। एक और रास्ता ककनार की ओर से है पर इस रास्ते से भी तीन बार पहाड़ी नाले को पार करने के बाद ही गांव तक पहुंचा जा सकता है। यहां ककनार में फोर्स के साये में पहाड़ को काटकर रास्ते का निर्माण जारी है।
बरसात में टापू बन जाते है ये गांव
दरअसल इंद्रावती नदी के पार बसे यह गांव राजस्व नक्शे के मुताबिक भले ही बस्तर जिले का हिस्सा हो लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों के चलते वहां तक जगदलपुर की ओर से पहुंचना आसान नहीं है। मारडूम ब्लॉक के यह बस्तर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके की सीमा पर है। बारिश के पहले इन गांवों तक पहुंचा जा सकता है पर बारिश के दौरान नदी-नालों से घिरा यह इलाका पुरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है। गांव वाले पैदल या फिर नाव के जरिए ही सफर कर समीप के गांवों तक आना-जाना करते हैं।

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