Saturday, June 6, 2015

भूमि अधिग्रहण बिल पर मोदी सरकार की जल्दबाजी पर जन संगठन एकजूट

“भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्यर्वस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार (दूसरा संशोधित बिल, 2015)”, पर सुझाव देने की समय सीमा बढ़ाई जाए !

भूमि अधिग्रहण पर जनता की राय जानने के लिए देश के ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर जन विमर्श सम्मेलनों और जनसुनवाईयों को आयोजित करे संयुक्त संसदीय समिति !!

 5 जून 2015, दिल्ली । भूमि अधिकार आंदोलन की और से आयोजित प्रेस वार्ता को हन्नान मौलाह (All India Kisan Sabha, 36 Canning Lane), सत्यवान (All India Krishak Khet Mazdoor Union) , रोमा (All India Union of Forest Working People), और भूपिंदर सिंह रावत (NAPM) ने सम्बोधित करते हुए कहा कि “भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्यर्वस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार (दूसरा संशोधित बिल, 2015)” पर संसद को सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए सरकार द्वारा संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया, जिसने संशोधित बिल पर सुझाव प्रस्तुत करने के लिए देश के किसानों, मजदूरों, आदिवासियों व विभिन्न जनसंगठनों को मात्र दो सप्ताह का समय दिया है. भूमि अधिकार आन्दोलन का मानना है कि भूमि जैसे व्यापक और महत्वपूर्ण मसले के परिप्रेक्ष्य में सुझाव देने और उसके विभिन्न पहलुओं के बारीकियों को स्पष्ट तौर पर समिति के सामने रखने के लिए संयुक्त संसदीय समिति द्वारा सुझाव रखने के लिए दिया गया दो सप्ताह का समय बहुत ही प्रभावशाली ढंग से अपर्याप्त है.

पिछले तीन महीनों में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में मुद्दे पर देश भर में व्यापक और सघन चर्चा हुई है और इसके विरोध में देशव्यापी आन्दोलन भी हुए हैं. अध्यादेश के विरोध में चलने वाले धारावाहिक आन्दोलनों के दबाव में आकर ही वर्तमान राजग सरकार को संसद के दोनों सदनों के 30 सदस्यों को लेकर इस मुद्दे पर देश के जनता की राय जानने के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन करना पड़ा है. समिति द्वारा सुझाव प्रस्तूत करने के लिए निर्धारित की गयी समय सीमा 8 जून समिति के लिए उन किसानों, मजदूरों तथा आदिवासी जनता के बीच जाकर भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर उनका सुझाव लेने के लिए निहायत ही अपर्याप्त है जो भूमि अधिकार आन्दोलन के बैनर तले एकजुट होकर बहुसंख्य भारतीय नागरिकों के आजीविका के लिए खतरा बने भू-अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं.

हम महसूस करते हैं कि भूमि अधिग्रहण बिल के परिप्रेक्ष्य में संयुक्त संसदीय समिति के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे किसानों और मजदूरों और आदिवासियों के बीच जाकर भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर उनकी राय जानना बेहद जरुरी है. भूमि अधिकार आन्दोलन का मानना है कि समिति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों और विशेषकर भूमि-अधिग्रहण से प्रभावित रहे क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर विमर्श सम्मेलनों, सार्वजनिक मीटिंगों तथा जन सुनवाईयां के माध्यम से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के ड्राफ्ट पर चर्चा कर ग्रामीणों की राय लेना आवश्यक और महत्वपूर्ण है. कलिंगानगर और ढिंकिया से लेकर नर्मदा, सोमपेटा, रायगढ़, मदुरै, कन्हर, भट्टा परसौल, जशपुर, धोलेरा, और ढेर सारी अन्य जगहों पर लोग असंवैधानिक भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में अगर यह समिति भूमि अधिग्रहण के सम्बन्ध में राय जानने के लिए और बिल के ड्राफ्ट पर चर्चा करने के लिए लोकतान्त्रिक प्रक्रिया अपनाते हुए किसानों, मजदूरों और आदिवासियों के बीच जाती है तो भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर संघर्षरत जनता द्वारा बड़े पैमाने पर जगह-जगह समिति का स्वागत किया जाएगा.

हम समझते हैं कि समिति अपनी जवाबदेही को कम से कम समय में पूरा करना चाहती है; फिर भी, कम समय में जवाबदेही पूरा करने की जल्दबाजी में मुद्दे के महत्त्व को कम करके नही देखा जा सकता है. हम इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि कम समय में कार्यवाही पूरी करने की स्थिति में ढेर सारे किसान, मजदूर, आदिवासी जनता और जन संगठन समिति के समक्ष अपना सुझाव रखने के अधिकार से वंचित रह जायेंगें. वर्ष 2013 का कानून अपने पूर्वर्ती औपनोवेशिक भू-अधिग्रहण कानून बनने के 114 साल बाद संसद की दो स्थाई समितियों के परखने और 7 वर्षों तक संसद के बाहर तथा भीतर बहस करने के बाद लाया गया था. हम चाहते हैं कि देश की संसद द्वारा वर्तमान शंशोधित भूमि अधिग्रहण बिल पर भी चर्चा करने के लिए देश की जनता को पर्याप्त समय दिया जाय.

हम मांग करते हैं कि समिति हमारी चिंताओं को गंभीरतापूर्वक संज्ञान में लेते हुए सुझाव प्रस्तुत करने की समय सीमा को तब तक के लिए आगे बढाए जबतक इस बिल के ड्राफ्ट पर ग्रामीण क्षेत्रों तथा भूमि अधिग्रहण से प्रभावित क्षेत्रों में व्यापक जन परामर्श सम्मेलनों, जनसुनवायियों के ज़रिये किसानों, मजदूरों, आदिवासियों तथा जन संगठनों के साथ बिल के ड्राफ्ट पर चर्चा संपन्न नही हो जाती है और इस पर उनकी राय नही ले ली जाती है, जैसा कि पिछली सरकार के कार्यकाल में इस मुद्दे पर बनी कमेटियों द्वारा किया गया था.

भूमि अधिकार आंदोलन
(हनन मौला, मेधा पाटेकर, डा० सुनीलम, रोमा, संजीव, श्वेता)
संपर्क: 9958797409, 9810423296, 9818905316, 9911955109

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