Monday, June 8, 2015

रायगढ़ शहर का औद्योगिकरण के साथ नहीं हुआ विकास

रायगढ़ शहर का औद्योगिकरण के साथ  नहीं हुआ विकास




लोग असमय कई प्रकार की बीमारियों से घिर रहे हैं, नहीं मिल रहा कोई सुनने वाला

जर्जर सड़क व भारी वाहनों से उड़ती धूल बिगाड़ रही सेहत


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[ नईदुनिया ]

रायगढ़ शहर के ढिमरापुर रोड, भगवानपुर व उर्दना रोड, बाईपास मार्ग ऐसी सड़क बन गई है, जहां आए दिन राहगीर मौत के शिकार हो रहे हैं साथ ही जर्जर सड़क और भारी वाहनों के चलने से उड़ते धूल का गुबार लोगों की सेहत पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है जिस तेजी से शहर में औद्योगिकरण हुआ है उसी तेजी से शहर की बुनियादी सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ औद्योगिक प्रदूषण व भारी वाहनों की रेलमपेल से उड़ने वाली डस्ट से लोगों का जीना दूभर हो गया है.

रायगढ़ (निप्र) औद्योगिक विकास के साथ शहर के मूलभूत ढांचे में विकास आज तक नहीं हो सका है जिसका दुष्परिणाम शहरवासी भुगत रहे हैं यहां की जर्जर सड़कों और उड़ने वाली धूल से क्षेत्र के बाशिंदों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है .
लेकिन विकास के पैमाने के अनुरूप शहर की सड़कों का विस्तार नहीं हो रहा है जिसकी वजह से आए दिन बेगुनाहों की मौत से शहर की सड़कें लाल हो रही है दूसरी ओर औद्योगिक प्रदूषण और धूल धक्कड़ से क्षेत्रवासी असमय कई प्रकार की बीमारियों से घिर रहे हैं जिले का औद्योगिक ढांचा तो तेजी से मजबूत हुआ, लेकिन शहरवासियों को मिलने वाली बुनियादी सुविधाएं उतनी ही कमजोर साबित हो रही हैं शहरवासियों को प्रदूषण और सड़कों पर उड़ने वाली धूल धक्कड़ से निजात नहीं मिल पा रही हैि;/ॅ।;ॅ।औद्योगिक विकास का पैमाना यही हैि;/ॅ।;ॅ।क्षेत्रवासी हर बार यही सवाल करते हैं कि क्या औद्योगिक विकास का पैमाना यही है कि अंधाधुंध तरीके से औद्योगिक घरानों को बसाते हुए आम जनता का सुख चैन छीना जाए कहने को महज कागजों में ही सिमट गया है कि औद्योगिक घरानों के आने से क्षेत्र का विकास होता है लेकिन जिले के लिए ऐसा प्रतीत होता नहीं दिख रहा है लोगों की मानें तो औद्योगिक घरानों द्वारा सीएसआर मद का उपयोग करते हैं, लेकिन वहां जहां उनका मतलब का होता है लेकिन औद्योगिक ढांचा मजबूत करने के साथ शहर की बुनियादी सुविधाओं की मजबूत पर ध्यान नहीं दिया जाता जिसकी वजह से शहरवासी प्रदूषण के बीच जीने को मजबूर है

क्षेत्र की खदान- फोटोः नईदुनियावाहनों के आवगमन से उड़ती धूल- फोटोः नईदुनियाडस्ट ने जनजीवन का जीना किया मुश्किल- फोटोः नईदुनियाधूल से आने -जाने हो है प्रभावित- फोटोः नईदुनियाढीमरापुर से लेकर भगवानपुर मार्ग, उर्दना मार्ग पर सायकल या दुपहिया वाहन में चलना दूभर हो चुका है यह सड़क दुर्घटनाओं को आमंत्रित करने वाली बन गई है दूसरे जर्जर सड़क व भारी वाहनों से उड़ने वाली धूल क्षेत्रवासी कई तरह की बीमारियों से घिर रहे हैं यहां के रहवासी आए दिन किसी न किसी बीमारी को लेकर डॉक्टरों का रुख करते हैं प्रदूषित वातावरण में कोई भी बीमारी जल्द ठीक नहीं होती, एक ठीक होती है तो दूसरी तैयार हो जाती है
अजय ठाकुर
स्थानीय निवासीसमूचे शहर में धूल गुबार और उड़ने वाली धूल से लोग हलाकान हैं शहर के अंदर की कुछ सड़कों को छोड़ दो जो अभी हाल ही में बनी हैं इसके अलावा ऐसी कोई सड़क नहीं हैं जहां धूल गुबार न उड़ते हों और लोगों का जीना मुहाल न हो ऐसी स्थिति में लोग किस तरह से रहते हैं अधिकारी आकर देखें और समझें तभी यह समस्या दूर हो सकती है अन्यथा इसी तरह से हम क्षेत्रवासी जीने और मरने को मजबूर रहेंगेि;/ॅ।;ॅ। परमेश्वर सिदार,ढिमरापुरकहते थे कि जिले में उद्योग कारखाने लगेंगे तो क्षेत्र का विकास होगा, लोगों को रोजगार मिलेगा लेकिन जिले के उद्योगों से स्थानीय लोगों को न तो रोजगार मिला और न ही उद्योग स्थापना का लाभ मिला है यहां तक की सीएसआर मद से सड़कों की कम से कम मरम्मत करा दिया जाता तो इतनी धुल गुबार नहीं उड़ती आखिर इन सड़कों पर चौबीसो घंटे तो उद्योगों के लिए ही भारी वाहनों का रेलमपेल लगा रहता है 
लाभ चाँद कोसा सेंटर
चौबीसों घंटें इधर से भारी वाहन चलते रहते हैं उद्योगों में लगातार कोयले से भरे डंपर और कंपनियों से निकलने और जाने वाली वाहनों की लंबी कतार चलती है इससे जो धूल उड़ता है यह क्षेत्रवासियों के लिए लगातार जीना मुश्किल कर रहा है धूल से सर्दी खांसी तो आए दिन बनी रहती है सांस की बीमारी तेजी से लोगों में फैल रही है
विशेश्वर बघेल।
स्थानीय निवासीक्षेत्र में प्रदूषण की वजह से जीना मुश्किल होता जा रहा है सड़कों से उड़ने वाली धूल और औद्योगिक डस्ट से सांस की बीमारी अब क्षेत्र में आम हो चली है कभी प्रदूषण विभाग वाले इस क्षेत्र में कितना प्रदूषण है जानने की कोशिश नहीं करते हैं धूल धक्कड़ सिर्फ बाहर ही नहीं घरों के अंदर तक पहुंच कर जीना मुश्किल कर रहे है.
व्यास भास्कर स्थानीय निवासी
 को शहर एक औद्योगिक नगरी के रूप में पूरे प्रदेश में जानी जा रही है लेकिन वास्तविकता क्या है धरातल पर आकर देखा जाए तो स्थिति बेहद दयनीय है लोगों को चौबीसों घंटों धूल धक्कड़ से होकर गुजरना पड़ रहा है इससे न जाने कितनी तरह की बीमारियां हमारे शरीर में पैदा हो रही है इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है
दुष्यंत मिश्रा
[नईदुनिया ,]
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