Friday, June 5, 2015

जशपुर में उपेक्षित हैं करोड़ों के डैम जरूरत पर किसानों को नहीं मिलता लाभ

जशपुर में उपेक्षित हैं करोड़ों के डैम

जरूरत पर किसानों को नहीं मिलता लाभ

जिले में डेम व नहरों की देखरेख में प्रशासन को नहीं है कोई मतलब 





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जशपुरनगर (निप्र) जशपुर जिले में करोड़ों की लागत से निर्मित डेम देखरेख के अभाव में उपयोगहीन होते जा रहे हैं सिंचाई विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा जिले के किसानों को भुगतना पड़ रहा है विशेषकर रबी उत्पादक किसान जरूरत के समय पानी न मिलने से खासे परेशान है सिंचाई व्यवस्था की इस बदहाली के कारण जिले में रबी फसल का आंकड़ा लगातार गिरता जा रहा है नहरों के लाइनों की मरम्मत न होने से सिंचाई के लिए किसानों को दिया जाने वाला पानी सड़कों पर व्यर्थ बहता रहता है प्रशासन से लगातार शिकायतों के बाद भी अब तक डेमों की स्थिति सुधारने के लिए सिंचाई विभाग द्वारा कोई ठोस पहल नहीं किया गया है जिले के अधिकांश डेम बदहाली का शिकार हो कर उपयोगहीन हो चुके हैं सिंचाई योजना के नाम से करोड़ों की लागत से बनाए गए इन डेमों में कचरा और गाद जमा हो जाने से गहराई कम हो गई है,जिससे इनकी जलभराव की क्षमता भी प्रभावित हो रही है डेमों के देखरेख न होने से इनमें लगे गेट भी चोरी हो रहे हैं इससे डेम का पानी व्यर्थ बहकर बेकार हो रहा 
 वहीं नहरों का मेंटेनेंस न होने से इसमें होने वाली टूट फूट का मरम्मत भी नहीं हो पा रहा है नतीजा डेम से किसानों के लिए जो पानी छोड़ा जाता है,उसमें से पानी की एक बड़ी मात्रा खेतों तक पहुंचने से पहले भी सड़क सहित अन्य जगहों पर व्यर्थ ही बह जाती है किसानों का कहना है कि डेम व नहरों की मरम्मत के लिए जनदर्शन और समाधान शिविर में आवेदन देने के बाद भी अधिकारियों द्वारा इस ओर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है सिंचाई विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक जिले में किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ४७ डेम मौजूद है इन डेमों से २१८३७ हेक्टेयर जमीन की सिंचाई की जाती है डेमों से होने वाली सिंचाई में सबसे अधिक सिंचाई खरीफ फसल के दौरान की जाती है विभाग के आंकड़ों के मुताबिक खरीफ सीजन में १७५९२ हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती है कुल सिंचाई के हिसाब से जिले की सबसे बड़ी सिंचाई क्षमता वाली सिंचाई परियोजना ईब व्यपवर्तन योजना है जिले के कुनकुरी विकासखंड में स्थित इस सिंचाई योजना की सिंचाई क्षमता ३३२३ हेक्टेयर भूमि की है 
नहर सुरक्षा समिति पर आश्रित विभाग 
नहरों की देखभाल के लिए सिंचाई विभाग पंचायत स्तर पर गठित होने वाले नहर सुरक्षा समिति पर आश्रित होती है इस समिति में संबंधित नहर से लाभान्वित होने वाले किसान और पंचायत प्रतिनिधि शामिल होते हैं नहरों की देखरेख और चौकीदार के लिए समिति को आर्थिक संसाधन सिंचाई विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाता है समिति की सहायता के लिए विभाग द्वारा इंजीनियर भी नियुक्त किया जाता है नहर में कटाव होने या मेंटेनेंस की आवश्यकता होने पर संबंधित समिति विभाग को सूचित करती है सूचना मिलने पर विभाग विभाग द्वारा इंजीनियर के माध्यम से मेंटेनेंस का इस्टीमेट तैयार कर प्रस्ताव विभाग के पास भेजता है,इसकी स्वीकृति मिलने पर मेंटेनेंस कार्य इंजीनियर की देखरेख में कराया जाता है लेकिन जिले के अधिकांश समितियां आर्थिक तंगहाली से परेशान है समितियों की शिकायत है कि उन्हें शासन द्वारा समय पर आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाती इस वजह से वे न तो चौकीदार को समय पर भुगतान दे पाते हैं और नही मजदूरों को इस कारण समितियों द्वारा नहरों की देखरेख में अपेक्षा के अनुसार रूचि नहीं लिया जाता है नतीजा जिले में डेम व नहरों की बदहाली के रूप में सामने आ रहा है 
बटईकेला का बदहाल राजा मुंडा डेम
जिले में शासन द्वारा संचालित सिंचाई योजना का लाभ किसानों को जरूरत के समय पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है किसानों को सिंचाई की सबसे अधिक जरूरत रबी फसल के दौरान होती है इस सीजन में किसान खेतों की प्यास बुझाकर अच्छा फसल पाने के लिए पूरी तरह से डेम और नहर पर ही आश्रित होते हैं लेकिन जिले की बदहाल सिंचाई व्यवस्था न तो किसानों की जरूरत पूरा कर पाने में सक्षम है और न खेतों की प्यास बुझाने में नतीजा जिले में रबी फसल का उत्पादन बेहद कम है विभागीय आंकड़े भी बताते है कि जिले के डेम रबी फसल के लिए जरूरत के मुताबिक सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने में पूरी तरह से असफल है आंकड़ों के मुताबिक जिले के ४७ सिंचाई परियोजना मिल कर रबी फसल के दौरान मात्र ४२४५ हेक्टेयर भूमि की ही सिंचाई कर पाती है खरीफ फसल के मुकाबले रबी फसल की सिंचाई का औसत चार गुना से भी कम है स्पष्ट है कि डेम व नहरों की बदहाल स्थिति से किसानों को करोड़ों रुपए की लागत से बने इन डेमों को लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है 

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