सांप्रदायिकता से लड़ने वाला सिपाही चला गया'
शनिवार, 30 अगस्त, 2014 को 12:36 IST तक के समाचारFacebook
जाने माने इतिहासकार बिपन चंद्रा के निधन को भारत के कई इतिहासकारों ने एक अपूर्णीय क्षति बताया है.
इतिहासकार मृदुला मुखर्ज़ी का मानना है कि सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ लड़ाई में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी और शायद ही किसी ने इतनी बड़ी भूमिका निभा
प्रोफ़ेसर इरफ़ान हबीबवहीं अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब का कहना है कि इतिहास के ज़रिए उन्होंने प्रगतिशील विचारों को फैलाया.
बिपन चंद्रा इस बात को ज़रूरी समझते थे कि इतिहास के ज़रिए प्रगतिशील विचारधारा को फैलाया जाए.
उनकी पुस्तकों 'इंडिया आफ़्टर इंडिपेंडेंस' और 'इंडियाज़ स्ट्रगल फ़ॉर इंडिपेंडेंस' आदि में यह झलक देखने को मिलती है.
उनपर कांग्रेस समर्थक इतिहासकार होने के आरोप भी लगे, लेकिन जो भी इतिहासकार 1947 के पहले का इतिहास लिखेगा वो या तो ब्रितानी समर्थक होगा या कांग्रेस समर्थक. आज़ादी की लड़ाई में कांग्रेस का ही नेतृत्व था.''
यह कहना कि जो आज़ादी की लड़ाई को बेहतर समझता है, वो कांग्रेसी रुझान वाला होगा, ग़लत है.
लेकिन मैं मानता हूं कि 1980 से वो ये सोचने लगे थे कि देश में सांप्रदायिक शक्तियां इतनी तेज़ी से बढ़ रही हैं कि कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जो इसका मुक़ाबला कर सकती है.
जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो उनको लगने लगा कि समाजवाद का अब वैसा भविष्य नहीं रहा. फिर भी वो अपनी पुरानी विचारधारा से हटे नहीं.
बाद में उन्हें कई बड़े ओहदे भी मिले. नेशनल बुक ट्रस्ट की ज़िम्मेदारी भी उन्होंने संभाली, लेकिन बाद के दिनों में उनकी सेहत ख़राब हो चली थी.
मृदुला मुखर्जी
इस मौक़े पर उनका जाना, हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है. मुझे नहीं लगता कि पिछले पचास सालों में सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ जो लड़ाई लड़ी जा रही थी, उसमें उनसे ज़्यादा किसी ने भूमिका अदा की हो.
उन्होंने बहुत विस्तृत फ़लक पर काम किया था. उन्होंने आर्थिक इतिहास, स्वतंत्रता संघर्ष के कई पहलुओं पर काम किया. उन्होंने कार्ल मार्क्स से लेकर भगत सिंह तक पर काम किया.
सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ लड़ाई, उनके लिए एक वैचारिक और भावनात्मक महत्व रखती थी. वो ये सोचते थे कि भारत में धर्म निरपेक्षता का मतलब ही है कि हमें सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ खड़े होना है.
मुझे लगता है कि एक ऐसे समय में जब सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ लड़ाई और तेज़ होनी चाहिए, हमारा एक सिपाही और जनरल चला गया. यह एक अपूर्णीय क्षति.
पिछले कुछ महीनों से बिपिन चंद्रा की तबियत ठीक नहीं चल रही थी और इतिहास को लेकर नई सरकार के रवैये पर कुछ बोलने या कर सकने में वो असमर्थ थे, लेकिन एनडीए की पिछली सरकार जब सत्ता में आई थी तो उन्होंने एक दिल्ली हिस्टोरियन ग्रुप बनाया था जिसमें हम सभी लोग थे.
उस समय एनसीआरटी की क़िताबों में जो छेड़-छाड़ हो रही थी, उस पर हम लोगों ने अलग-अलग पहलुओं पर किताबें, पर्चे-पम्फ़लेट निकाले और ढेरों सेमिनार किए.
हिंदुस्तानियों को हिंदू बताने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और संघ प्रमुख मोहन भागवत का हाल के दिनों में कई बयान आए हैं.
बिपन चंद्रा का नज़रिया था कि जिस देश के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने लड़ाई लड़ी उसमें हिंदू राष्ट्र की कोई जगह नहीं थी. विभाजन के बाद पाकिस्तान धर्म के आधार पर इस्लामी देश बना, जबकि इसके ठीक विपरीत भारत धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद, लोकतंत्र की बुनियाद पर बना और ये हमारे संविधान में निहित है
No comments:
Post a Comment