Wednesday, September 14, 2016

ब्राह्मणवाद का क्या अर्थ है ? मैं भी ब्राहमण हूँ इसलिये जानना चाहता हूँ ? "

आज कोई व्यक्ति ब्राहमणवाद का समर्थन करता है तो इसका अर्थ है वह करोड़ों लोगों को नीच घोषित करने को सही कह रहा है.
भारत का सामाजिक , राजनैतिक और आर्थिक बदलाव ब्राह्मणवाद के नाश के बिना संभव ही नहीं है ၊
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एक भाई ने मुझसे पूछा है " ब्राह्मणवाद का क्या अर्थ है ? मैं भी ब्राहमण हूँ इसलिये जानना चाहता हूँ ? "

उस भाई की जिज्ञासा के प्रश्न का उत्तर अपनी समझ से देने की कोशिश कर रहा हूँ ၊

भारत का समाज जातियों में बंटा हुआ समाज है ၊

भारत में जाति व्यवस्था ने आबादी के बड़े हिस्से को घटिया और नीच घोषित किया ,

मनु द्वारा घोषित नियम के अनुसार इस नीच घोषित किये गये आबादी के हिस्से की ज़मीने छीन ली गईं ,

आबादी के इस हिस्से पर धन कमाने की मनाही थोपी गई,

आबादी के इस हिस्से को राजनैतिक तौर पर कमज़ोर रखा गया ၊

यानी आज के दलितो को एक घोषित विधान के अनुसार गरीब , कमज़ोर और नीचा बनाया गया ၊

आबादी के बड़े हिस्से को नीच घोषित करने का काम किया सनातन धर्म ने ၊

सनातन धर्म का विधान बनाया वेद , शास्त्र और पुराण लिखने वाले बाह्मणों ने ,

तो जाति प्रथा का निर्माण किया ब्राह्मणों ने ,

इसलिये आज शूद्र और दलित जातियाँ कहती हैं कि उनकी लड़ाई ब्राह्मण वाद के विरुद्ध है ,

अर्थात ब्राह्मणों द्वारा जिन करोड़ों लोगों को नीच , हीन और गरीब बनाया गया ,

वह खुद को हीन घोषित करने वाले नियम और वाद से मुक्ति चाहते हैं ၊

तो यह बात बिल्कुल जायज़ बात है ၊

खुद को बुरी स्थिति मे ले जाने वाली व्यवस्था से विद्रोह करना और उस व्यवस्था का नाश करना ,

हर मनुष्य का नैसर्गिक कर्तव्य है ,

इसलिये करोड़ों इंसानों को बुरी स्थिति में धकेलने वाले ब्राह्मणवादी कानूनों का नाश करने की कोशिश करना ,

 हर न्यायप्रिय व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिये ,

इसलिये अगर आज कोई व्यक्ति ब्राहमणवाद का समर्थन करता है तो इसका अर्थ है वह करोड़ों लोगों को नीच घोषित करने को सही कह रहा है ၊

और यदि आज के दौर मे कोई करोड़ों लोगों को नीच घोषित करने का समर्थन कर रहा है ,

तो वह लोकतन्त्र, संविधान , कानून , नैतिकता , मनुष्यता के विरुद्ध बात कर रहा है ၊

इसके अलावा भारत मे ब्राह्मणों द्वारा पूर्व में नीच घोषित किये गये करोड़ों लोग आज भी व्यापार, प्रशासन,

 शासन, न्यायिक सेवा, विश्वविद्यालयों के उच्च पदों पर आरक्षण के बावजूद नहीं पहुंच पा रहे हैं ,

इसका यह कारण नहीं है कि यह दलित योग्य नहीं है ,

बल्कि इसका कारण यह है कि सैंकड़ों सालों से ऊंचे पदों पर कब्ज़ा किये बैठे ताकतवर ब्राह्मणों का वर्ग इन दलितों से आज भी नफरत करता है ,

और इन दलितों को इन पदों से दूर रखने की कोशिशें करता रहता है ၊

इस तरह  दलित युवा मानता है कि उसे हीन हालात से निकलने देने में ब्राह्मणवाद और ब्राह्मण वर्ग बाधा है ,

देश मे सामाजिक न्याय के पक्षधर भी मानते हैं कि ब्राह्मणवाद द्वारा रचित जातिवाद एक न्यायप्रिय समरस बनाने मे बाधा है ,

इसलिये सभी न्यायप्रिय लोग ब्राह्मणवाद के खात्मे के पक्ष मे हैं ,

इसके अलावा ब्राह्मणवाद द्वारा निर्मित जातिवाद चूंकि यह मानता है कि जाति जन्म से मिलती है ,

और जाति कभी बदल नहीं सकती ,

ब्राह्मणवाद मानता है व्यक्ति जिस जाति मे जन्म लेता है , वह उसी जाति मे मरता है ,

इसलिये ब्राह्मणवाद के नाश का अर्थ है , जाति को जन्म से जोड़ने वाले धर्म का नाश ,

इसलिये जो ब्राहमण जाति के व्यक्ति जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवाद के नाश के द्वारा सामाजिक न्याय के लिये कोशिश कर रहे हैं ,

ऐसे लोगों को ब्राहमण मान कर उनसे नफरत करना भी ब्राह्मणवाद है ,

ज्ञान को श्रम से श्रेष्ठ मानना ब्राह्मणवाद है ,

यह मानना कि शरीर से श्रम करने वाला हीन होता है ,

 और बुद्धि से काम करने वाला उच्च होता है , भी ब्राह्मणवाद है ၊

यह मानना कि अंग्रेजी जानने वाले, ऊँची शिक्षा पा गये लोग , शहरों में रहने वाले लोग श्रेष्ठ हैं ,

यह मानना कि अंग्रेज़ी ना जानने वाले , ऊंची शिक्षा ना प्राप्त लोग , गांव के लोग हीन है , भी ब्राहमणवाद है ,

ब्राह्मण जाति के अलावा , अन्य जाति मे पैदा होने के बावजूद इंसानों को जन्म के स्थान, शिक्षा और आर्थिक स्थिति के आधार पर हीन या श्रेष्ठ मानने वाला व्यक्ति भी ब्राहमणवादी है ၊

भारत का सामाजिक , राजनैतिक और आर्थिक बदलाव ब्राह्मणवाद के नाश के बिना संभव ही नहीं है ၊
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हिमांशु कुमार

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