Saturday, December 13, 2014

हिंदू बनाओगे, जाति क्या दिलाओगे!

हिंदू बनाओगे, जाति क्या दिलाओगे!

  • 44 मिनट पहले
स्वास्तिक हिन्दू धर्म
आगरा में धोखे से धर्मांतरण कराने के कथित मामले के सामने आने के बाद इस विषय पर भी चर्चा शुरू हो गई है कि आख़िर कोई हिंदू बनता कैसे है?
क्या किसी को धर्मांतरित करके हिंदू बनाया जा सकता है? जाति व्यवस्था को हिन्दू धर्म का आधार माना जाता है. ऐसे में धर्मांतरण करने वालों की जाति का सवाल भी उठेगा.
सवाल इस बात पर उठ रहे हैं कि किसी को हिंदू बनाने का हक़ किसे है?

पढ़ें लेख विस्तार से

आगरा में क़रीब पचास मुसलमानों को बीपीएल कार्ड और दूसरे लालच देकर हिंदू बनाने की कथित घटना पर काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है.
किसी ने पूछा है कि हिंदू बनने का क्या मतलब! क्योंकि कोई सिर्फ़ हिंदू तो होता नहीं. उसे या तो ब्राह्मण या राजपूत या बनिया होना होता है.
यह भी सबको पता है कि आप चाह कर न ब्राह्मण बन सकते हैं और न बनिया. उसके लिए उस जाति में आपको पैदा होना होगा.
तो फिर जिनका शुद्धीकरण किया जा रहा है, वे हिंदू बनने के साथ किस जाति में लिए जा रहे हैं? दूसरे, इसका प्रमाणपत्र कौन दे रहा है? जाति में जाने का क्या कोई विधि-विधान है, कोई संस्कार है?

कैसे बनते हैं हिंदू

नेपाली हिन्दी
मुसलमान तो कलमा पढ़कर बन सकते हैं, हिंदू बनने का मान्य तरीक़ा क्या है? किस नदी में डुबकी लगाने पर हम पवित्र हिंदू धर्म में प्रवेश कर लेते हैं? उस नदी का नाम कहाँ लिखा है?
कुछ महीने पहले एक महंत के भाषण का वीडियो प्रचारित हुआ. उसमें पतितों के उद्धार यानी उन्हें हिंदू बनाने के अपने इरादे के साथ यह वादा भी किया कि जो हिंदू धर्म में आएंगे उनके लिए वे एक विशेष जाति का निर्माण करेंगे.
इस पर विशेष चर्चा नहीं हुई. लेकिन इससे यह मालूम होता है कि महंत को जाति का महत्व मालूम था और यह भी कि हिंदू बनते ही जाति पूछी ही जाएगी.
जाति रिश्ते-नाते, शादी-ब्याह के लिए अनिवार्य है. सिर्फ़ हिंदू होने से आपका रिश्ता किसी से नहीं हो सकता. लेकिन अभी के धर्मांतरण में यह बताया नहीं जा रहा कि किसे किस जाति में डाला जा रहा है?

जाति का निर्णय

भवाना, हिन्दू महापंचायत
जाति का निर्णय कैसे होगा? क्या जिन्हें हिंदू बनाया जा रहा है उनका इतिहास खंगाला जाएगा?
चूँकि यह मानकर चला जाता है कि भारत के अधिकतर मुसलमान कभी हिंदू थे, तो यह पता किया जाएगा कि वे किस जाति के हिंदू थे? क्या एक नए हिंदू के साथ पुराने हिंदू संबंध करने को तैयार होंगे?
मुसलमान भी तरह-तरह के होते हैं. शेख़, सैय्यद, जुलाहे, अंसारी....आदि, आदि.
क्या हर किसी की समकक्ष जाति निर्धारित की जाएगी और उन्हें हिंदू बनाते ही उनके लायक़ जाति में अपने-आप दाख़िला मिल जाएगा?
जब भी कोई हिंदू बनाने का प्रस्ताव लेकर आपके सामने आए तो उससे ये सवाल ज़रूर किए जाने चाहिए. यह भी कि आज तक जिन्हें हिंदू बनाया है उनकी आर्थिक हालत में क्या सुधार हुआ है, इसका हिसाब दिया जाए.

आध्यात्मिक चिंता

नेपाली हिन्दू संन्यासी
अक्सर हिंदू बनाने वालों को आध्यात्मिक चिंता बहुत होती है. तो उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि आध्यात्मिक उच्चता या संतोष का कोई सूचकांक उनके पास है या नहीं और क्या उसे किसी विश्व धर्म संसद से मान्यता प्राप्त है?
इसकी जाँच करने का क्या उपाय है कि मुसलमान या ईसाई रहते हुए मुझे जितनी आध्यात्मिक शांति मिलती थी, हिंदू बनने के बाद उसमें इज़ाफ़ा हुआ या वह घट गई.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आरोप रहा है कि ग़रीब हिन्दुओं को प्रलोभन देकर या झांसा देकर ईसाई या मुसलमान बनाया जाता रहा है.
फिर उसे इसका उत्तर देना होगा कि पिछले सालों में गुजरात हो या छत्तीसगढ़, या अब आगरा, हमेशा ग़रीबों में भी ग़रीब का ही क्यों धर्मांतरण किया जा सका है?
क्या हिंदू धर्म की अपनी कोई अपील नहीं? क्या उसे हमेशा बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद की संगठित धमकी की ज़रूरत पड़ती है?

व्यक्तिगत प्रभाव

गणेश, लक्ष्मी
दुनिया में हमें आज भी इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं जब लोग व्यक्तिगत तौर पर इस्लाम या ईसाइयत से प्रभावित होकर धर्म बदल लेते हैं.
मुसलमान बनने वालों में ईसाई भी हैं और अन्य मतावलंबी भी. लेकिन किसी ने हिंदू धर्म से प्रभावित होकर उसमें दीक्षा ली हो, इसके बहुत ज़्यादा उदाहरण नहीं दिखते.
यह भी सवाल किया जाना चाहिए कि क्यों हिंदू धर्म के सबसे बड़े जानकार अब भारत में नहीं बाहर के देशों में हैं जिन्हें इसकी शास्त्रीय और लोक परंपरा की ज़्यादा समझ है ?
उन्हीं के पास यह समझ क्यों है? हिन्दुओं के नाम पर बने संगठनों के नेताओं को क्यों हिंदू परंपराओं की कोई जानकारी नहीं?
क्यों वे सिर्फ़ नारे लगा पाते हैं और उसके आगे भाषा उनके पास नहीं?

भारत के बाहर

विवेकानंद, हिन्दी संत
विवेकानंद जैसे संतों ने कभी किसी को हिन्दू बनने को नहीं कहा.
क्यों हिंदू धर्म का सारा शोर सिर्फ़ भारत में ही है? भारत के बाहर, भारतवासियों से अलग किसी समुदाय में यह धर्म अपना विस्तार नहीं कर पाया?
क्यों भारत के सबसे बड़े हिंदुओं ने, जिनमें रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद और गांधी शामिल हैं, कभी किसी को हिंदू बनने को नहीं कहा?
इन सवालों के जवाब के बिना हिंदू धर्म में किसी को लाने के दावे खोखले हैं और आग के सामने टूटे-फूटे मन्त्र पढ़ना नाटक के दृश्य से अधिक कुछ नहीं.
किसी को हिंदू बनाना मुमकिन ही नहीं. इसलिए इस तरह के नाटक को वही कहें जो यह है, यानी एक नाटक जो सिर्फ़ एक दृश्य का है.
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