Saturday, December 13, 2014

यूपी की उथल-पुथल से निकले पाँच सवाल

यूपी की उथल-पुथल से निकले पाँच सवाल


आगरा धर्मांतरण
उत्तर प्रदेश में यूं तो चुनाव दूर हैं लेकिन प्रदेश की राजनीति से चुनाव की सी गंध आती है.
चाहे पश्चिमी यूपी के दंगे हों या आगरा में कथित धर्म परिवर्तन का मामला, हर मुद्दा संसद से सड़क तक गूंज रहा है.
ऐसे में बीबीसी हिंदी ने ऐसे पांच सवालों की पड़ताल की कोशिश की जो राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण इस राज्य को मथ रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक बद्री नारायण और वरिष्ठ पत्रकार सुनीता आरोन ने इस सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की है.

1. उत्तर प्रदेश में ही यह सब क्यों हो रहा है?

आगरा धर्मांतरण
बद्री नारायण: उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है और चुनावी राजनीति में अहम भूमिका अदा करता है. यहां वोटरों को बांटने की सियासत अच्छे से हो सकती है क्योंकि यहाँ मुसलमानों की संख्या अच्छी है. इसलिए भारतीय जनता पार्टी की बहुसंख्यकवाद की सियासत यहां ठीक चल सकती है. भय का अहसास दोनों समुदायों में जगाया जा सकता है.
एक तो भाजपा उसका फ़ायदा उठाना चाहती है, दूसरे अब वह सत्ता में है उसके नेता अपने एजेंडे पर खुलकर बोल रहे हैं. तीसरी बात यह है कि 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने वाला है, जिसकी तैयारी चल रही है.
सुनीता आरोन: 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल हैं. आम चुनाव में 73 सीटें लाने के बाद भाजपा विधानसभा चुनाव हार जाती है तो मोदी सरकार के लिए झटका होगा.

2. धर्म परिवर्तन या घर वापसी का मामला क्यों उछला?

बद्री नारायण: अगर धर्म परिवर्तन का मामला उभरेगा तो संप्रादायिक दंगे हो सकते हैं जिसका फ़ायदा भाजपा को होगा.
श्रीनगर में पीएम मोदी की रैली में एक भाजपा समर्थक
सुनीता आरोन: हिंदुत्व विचारधारा वाले माहौल की जांच करते रहते हैं. धर्म परिवर्तन हो या फिर राम मंदिर पर राज्यपाल का बयान हो या साक्षी महाराज का गोडसे के बारे में बयान. वह इस तरह की बयानबाज़ी करके देखते रहते हैं कि इनका कितना असर हो रहा है.

3. गोरखपुर में मुसलमानों का सम्मलेन क्यों?

बद्री नारायण: सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के 19 दिसंबर को गोरखपुर में मुसलमानों का सम्मलेन कराने का उद्देश्य हालत को अपने नियंत्रण में रखना है. हिंसा हुई तो गोरखपुर में हिंसा को रोक सकते हैं. मुसलमानों में अगर धर्म-परिवर्तन से डर पैदा हो गया तो सपा और भाजपा दोनों को फ़ायदा हो सकता है.
सुनीता आरोन: मुलायम सिंह यादव, उनकी पार्टी और सरकार मुसलमानों के वोट को सुरक्षित रखना चाहती है. मुलायम सिंह वही करते हैं जो उनकी पार्टी के हित में हो.

4. मायावती कहां हैं?

मायावती
बद्री नारायण: शुरू से ही ख़ामोशी बीएसपी की ख़ूबी रही है. जब तक बीएसपी जीत कर नहीं आई तब तक किसी ने इसके बारे में सुना ही नहीं था. रात में छोटी सभाएं करना और लोगों को ज़मीनी स्तर पर संगठित करना पार्टी की शैली है.
मायावती कभी मीडिया फ्रेंडली नहीं रही है, हर मुद्दे पर नहीं बोलतीं. वह उसी पर बोलती हैं, जिसका उनके वोट बैंक पर असर हो. 2017 के विधानसभा चुनाव में वह एक बड़ी शक्ति रहेंगी.
सुनीता आरोन: मायावती जब भी चुनाव हार जाती हैं, वह दिल्ली चली जाती हैं और नहीं बोलतीं. आने वाले विधानसभा चुनाव में उनका मुक़ाबला कड़ा है. उनके वोट बैंक में कमी आएगी.

5. मुलायम सिंह यादव स्थिति को कम करके क्यों बता रहे हैं?

बद्री नारायण: मुलायम सिंह की उम्र ज़्यादा हो गई है तो वह तरह-तरह की बातें बोल देते हैं. फिर यह भी है कि वह हिंसा नहीं चाहते क्योंकि इससे उनको कम फ़ायदा होगा और भाजपा को ज़्यादा.
मुलायम, आज़म
अगर धर्म परिवर्तन का मामला उभरेगा तो संप्रादायिक दंगे हो सकते हैं जिसका फ़ायदा भाजपा को होगा. इसीलिए वह स्थिति को कम अहमियत देने की कोशिश कर रहे हैं.
सुनीता आरोन: ऐसा लगता है कि मुलायम सिंह यादव केवल मुसलमानों और अल्पसंख्यकों का साथ दे रहे हैं. धर्म परिवर्तन के मुद्दे को हिन्दू-मुसलमान समस्या बनाकर देखा जा रहा है और पार्टी अपने हित के हिसाब से चल रही है.
मुझे लगता है सपा सरकार अब चौकन्नी है. वह अब धर्म परिवर्तन के कैंप लगने नहीं देगी और ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन नहीं होने देगी.
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