Saturday, December 13, 2014

शर्म की बात , भाजपाइयों का सामान्यज्ञान


शर्म की बात , भाजपाइयों  का सामान्यज्ञान 


Talk of Shame
12/13/2014 12:38:17 AM
संचार क्रांति के इस दौर में भी हमारे राजनेता अगर बाबा आदम के दौर में ही रहते हों तो यह राजनीति के साथ-साथ उन मतदाताओं का अपमान माना जाएगा जो इन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुनकर भेजते हैं। 
मध्यप्रदेश के कैलाश सत्यार्थी को शांति के लिए दुनिया का सबसे बड़ा नोबल पुरस्कार मिला। देश का हरेक व्यक्ति उनकी इस उपलब्घि पर गौरवान्वित हुआ। दुनियाभर से उन्हें बधाइयां मिलीं। आश्चर्य के साथ शर्म की बात ये रही कि मध्यप्रदेश के दो-तीन मंत्रियों और विधायकों ने सत्यार्थी की इस उपलब्घि पर शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्य कैलाश विजयवर्गीय को बधाइयां दे डाली। यानी प्रदेश को चलाने का दावा करने वाले मंत्रियोें को उन कैलाश सत्यार्थी के बारे में कोई जानकारी नहीं जिनके बारे में देश का बच्चा-बच्चा जानता हैै। इससे तो लगता है कि मध्यप्रदेश के भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के आगे सोचते ही नहीं। धिक्कार है ऎसे मंत्री-विधायकों पर जो पद की गरिमा को धूल में मिला रहे हैं। 
ऎसे नेताओं को मंत्री-विधायक तो क्या पाष्ाüद तक बनने का अधिकार नहीं है। पूरे घटनाक्रम का सबसे दुखद पहलू तो यह है कि मंत्रियों के सामान्य ज्ञान की चर्चा पूरे देश में होने के बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री खामोश हैं। क्या इतने अल्पज्ञानी मंत्रियों को मंत्रिमंडल में रहने का अधिकार होना चाहिए? क्या ऎसे मंत्रियों को झेलना जनता की मजबूरी होना चाहिए? उम्मीद तो यही की जाती है कि राज्य के मंत्री को अपने विभाग की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण राज्य की जानकारी हो। मंत्रियों को पता होना चाहिए कि देश-दुनिया में क्या हो रहा है। नोबल पुरस्कार की एक सौ तेरह साल की यात्रा में 850 से अधिक लोगों ने इसे ग्रहण किया लेकिन इनमें भारतीयों की संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक है। सत्यार्थी से पहले रविन्द्रनाथ टैगोर, सी.वी. रमन, मदर टेरेसा और अमत्र्य सेन ही ऎसे भारतीय थे जिन्हें पुरस्कार हासिल करने का गौरव मिला। 
इसके अलावा हरगोविन्द खुराना, एस. चन्द्रशेखर और वेंकटरमन रामकृष्णन को भी नोबल पुरस्कार मिला लेकिन वे दूसरे देशों की नागरिकता ग्रहण कर चुके थे। इतने प्रतिष्ठित पुरस्कार के बारे में अनभिज्ञता होना राजनेताओं के प्रति आम आदमी की धारणा और खराब ही करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां एक तरफ देश को प्रगति के शिखर पर ले जाने की बातें करते नहीं थकते, वहीं उनकी पार्टी के नेताओं को अगर सामान्य जानकारी भी नहीं हो तो देश आगे बढ़ेगा कैसे? सिर्फ भाष्ाणों और घोष्ाणाओं से ही देश आगे बढ़ता होता तो कब का दुनिया को पीछे छोड़ चुका होता। मध्यप्रदेश सरकार की इस जग-हंसाई के बाद उम्मीद की जाती है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्री-विधायकों को सामान्य ज्ञान बढ़ाने की हिदायत तो देंगे ही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान को याद करते हुए ऎसे "विद्वान मंत्रियों" को तो कम से कम अपनी सरकार से बाहर का रास्ता दिखाएंगे।

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