Wednesday, May 10, 2017

मैंने बस्तर में जो देखा...वही लिखा फेसबुक पर' - varsha dongre

'मैंने बस्तर में जो देखा...वही लिखा फेसबुक पर'

राजकुमार सोनी| Updated on: 10 May 2017, 13:36 IST
वर्षा डोंगरे/ फेसबुक
छत्तीसगढ़ की सेंट्रल जेल रायपुर में बतौर सहायक जेल अक्षीक्षक पदस्थ रहीं वर्षा डोंगरे ने उप जेल अधीक्षक आर आर राय को 376 पेज के भेजे जवाब में लिखा है कि उनके फेसबुक पर कई मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पोस्ट और टिप्पणी की है, लेकिन बस्तर को लेकर फेसबबुक पर जो कुछ उन्होंने लिखा है वह उनके सेवाकाल के दौरान प्रत्यक्ष अनुभव को स्पष्ट करते हैं.
वर्षा का कहना है कि वह किसी भी तरह की हिंसा, क्रूरता और अत्याचार का समर्थन नहीं करती फिर चाहे वह पुलिस बल की ओर से हो या माओवादियों की तरफ से. वर्षा ने कहा है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर जो कुछ भी पोस्ट किया गया उसका उदेश्य सनसनी फैलाना, प्रसिद्धि पाना या सरकार के खिलाफ कूटरचना करना नहीं, बल्कि उसके मूल में बस्तर और अनुसूचित क्षेत्रों में आम और निर्दोष आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों, वन संरक्षण और सुरक्षा सुनिश्चित करने की भावना है. ऐसा करना एक लोक सेवक का कर्तव्य तो है, लेकिन एक नागरिक की ज़िम्मेदारी भी है.

कभी भंग नहीं की गोपनीयता

वर्षा ने अपने जवाब में बताया कि उनके फेसबुक मित्र सूची में कई सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जिनमें हिमांशु कुमार भी हैं. हिमांशु कुमार ने उनकी मूल पोस्ट शेयर ही नहीं की, बल्कि मेरे मूल पोस्ट को कॉपी पेस्ट कर अपने वॉल पर चस्पा किया है. वर्षा ने लिखा है कि जो कुछ भी उन्होंने लिखा है वह विधिक और संविधान के दायरे में ही है. हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है, जिसके उपयोग के दौरान उन्होंने सिविल सेवा आचरण नियम का पालन किया है.

वर्षा ने अपने जवाब में लिखा है कि फेसबुक पर उन्होंने कोई विभागीय जानकारी नहीं दी और न ही कोई गोपनीयता भंग की, बल्कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर किए जा रहे अत्याचारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, सीबीआई रिपोर्ट, भारत के राजपत्रों में बस्तर और माओवाद के उन्मूलन अभियान के संदर्भ में की गई टिप्पणियों को ही शामिल किया है, जो सच्चाई को बयां करते हैं.

तो फिर कौन सुनेगा?

वर्षा ने लिखा है कि यदि कहीं अत्याचार और अन्याय हो रहा है, तो उसके समाधान का रास्ता लोक सेवकों को ही निकालना है. यदि लोक सेवक भ्रष्टाचार और अत्याचार को दबाते रहेंगे तो आम आदमी कहां जाएगा. वर्षा ने लिखा कि साल 2003 में छत्तीसगढ़ राज्य सेवा परीक्षा में जो भ्रष्टाचार हुआ था, उसे हर संभव दबाने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने लड़ाई लड़ी और उसे एक मुकाम तक पहुंचाया.
निलंबन के बाद अंबिकापुर जेल में अटैच की गईं सहायक जेल अक्षीक्षक ने अपने जवाब में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय, एक्सपर्ट ग्रुप भारत सरकार की रिपोर्ट, उच्च न्यायालयों के निर्णयों की प्रति भी लगाई है. वर्षा ने अपने जवाब में बस्तर में सलवा जुडूम शुरू होने के बाद नंदिनी सुंदर और अन्य के द्वारा दाखिल की गई याचिका और उस पर दिए गए निर्णय का हवाला भी दिया है.

निलंबन के तरीके पर उठाए सवाल

वर्षा ने जेल विभाग की ओर से दिए गए नोटिस को लेकर भी सवाल उठाए हैं. अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि उन्हें जेल के महानिदेशक ने मीडिया में गैर ज़िम्मेदार तरीके से गलत और भ्रामक तथ्यों की जानकारी देने और कर्तव्य पर अनुपस्थित रहने के कारण निलंबित किया है, जबकि जांच अधिकारी आरआर राय ने सोशल मीडिया पर जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए 7 दिन का समय दिया है.
वर्षा ने आगे लिखा है उन्हें 32 पेज का पुलिंदा थमाकर महज 2 दिन में जवाब प्रस्तुत करने को कहा गया, जिसके उत्तर में उन्होंने 376 पेज का जवाब भेज भी दिया, लेकिन घोर आश्चर्य की बात है कि मेरे जवाब प्रस्तुत करने और जांच अधिकारी के प्रतिवेदन देने के पहले ही यह मान लिया गया है कि मेरी पोस्ट ग़लत और भ्रामक है. वर्षा ने एक बार कहा कि वह संवैधानिक लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं.

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