Thursday, May 25, 2017

इंडिया का स्टिंग ऑपरेशन, क्यों CRPF ही बनती है नक्सलियों का निशाना

ज़18 इंडिया का स्टिंग ऑपरेशन, क्यों CRPF ही बनती है नक्सलियों का निशाना

News18Hindi
Updated: May 25, 2017, 11:56 PM IST
 
रिपोर्ट: अरुण सिंह, हरीश शर्मा

छत्‍तीसगढ़ में नक्‍सली हमलों में सुरक्षाबलों को हो रहे बड़े नुकसान की एक बड़ी वजह पुलिस और सीआरपीएफ के बीच आपसी तालमेल और सहयोग की कमी है. न्यूज़18 इंडिया के स्टिंग 'ऑपरेशन शहीद' में यह खुलासा हुआ है.

ये खुलासा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों से जुड़ा है. यहां पांच साल में सुरक्षाबलों के 263 जवान शहीद हो चुके हैं. इस स्टिंग के जरिए पता लगाया गया कि क्‍यों नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ के शहीदों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही है.

इस ख़ुलासे को देश के सामने लाने के लिए न्यूज़18 इंडिया की अंडरकवर टीम ने सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के कई बड़े अधिकारियों के स्टिंग ऑपरेशन किए. इसमें कई ऐसी बातें सामने आई हैं जो चौंकाने वाली हैं. इसमें सामने आया है कि इन इलाकों में काम करने वाली दो एजेंसियां यानी स्थानीय पुलिस और सीआरपीएफ एक साथ नहीं, बल्कि एक दूसरे के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं.

स्टिंग के तहत अंडरकवर टीम सबसे पहले सुकमा के चिंतागुफा इलाके में तैनात सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के ठिकाने पर पहुंची. इस जगह से 10 मिनट की दूरी पर ही वह स्‍थान है जहां 24 अप्रैल को नक्सलियों ने हमला किया था. यहां असिस्टेंट कमांडेंट आरआर झा और डिप्टी कमांडेंट अमित शर्मा से पूछा गया कि हमलों के शिकार सीआरपीएफ के जवान ही क्यों होते हैं.

डिप्टी कमांडेंट ने बताया, 'नाराजगी इसी बात कि है कि कहा जा रहा है कि सीआरपीएफ को ही क्‍यों केजुएलिटी हो रही है. सीआरपीएफ की ट्रेनिंग कमजोर है. लेकिन सीआरपीएफ ही बाहर निकल रही है तो उसे ही नुकसान होगा ना. रोड बनवाने सीआरपीएफ निकल रही, बिजली खंबे निकालने सीआरपीएफ निकल रही. हम सिविल पुलिस की मदद के लिए आए हैं और हमको फोरफ्रंट पर खड़ा कर दिया है इन्होंने.'

उन्‍होंने आगे कहा, 'हमारे पास ऐसा जरिया भी नहीं है कि हम इस गांव में चले जाएं तो किसी को पहचान लें कि कौन नक्सली है और कौन नहीं. हमारे सामने से कितनी बार निकल जाते हैं. हम पहचानते ही नहीं. थोड़ा सा को-ऑर्डिनेशन में गड़बड़ हुआ है. सुधार होना जरूरी है.'

डिप्टी कमांडेंट ने शिकायती लहजे में कहा, 'पुलिस थाने यहां पर केवल नाम के लिए हैं. ये थाना है इसमें 7-8 बंदे हैं. हम बोलते हैं कि चलना है तो 1-2 टूटा-फूटा सिपाही दे देते हैं.' असिस्टेंट कमांडेंट आरआर झा ने बताया कि पुलिस केवल खानापूर्ति करती है.

उन्‍होंने कहा, 'जब हम कैंप से निकलते हैं तो एक असिस्टेंट कॉन्सटेबल को भेज दिया जाता है.' डिप्टी कमांडेंट शर्मा ने बताया, 'एक कंपनी के साथ एक सिपाही दे देते हैं, वो बीच में चलता है उसका कोई काम नहीं होता. वह पुलिस का प्रतिनिधि होता है.'

डिप्टी कमांडेंट शर्मा का कहना है कि पुलिस का जब तक बड़ा रोल नहीं होगा तब तक चीज़ें नहीं सुधरेंगी. पुलिस के लीडिंग रोल के साथ गवर्मेंट को पॉलिसी भी चेंज करनी पड़ेगी. उन्‍होंने कहा कि संभव है कि आने वाले समय में यहां पर भी स्पेशल सिक्योरिटी आर्म्स एक्ट लगाना पड़े.

वैसे गृह मंत्रालय के निर्देश हैं कि सीआरपीएफ की बटालियन कैंप से निकलेगी, तो स्थानीय पुलिस के एक तिहाई जवान उनके साथ होने चाहिए.

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