Wednesday, May 24, 2017

अधिव्कताओ के खिलाफ पुलिस द्वारा फैलाये गया दुश्प्रचचार एवं वकीलों पर लगातार बढ़ते हमलो के खिलाफ व्यापक आन्दोलन की चेतावनी - आल इंडिया लायर्स यूनियन छत्तीसगढ़

आल इंडिया लायर्स यूनियन छत्तीसगढ़ की प्रेस कांफ्रेंस बिलासपुर प्रेस कांफ्रेंस  दिनांक 24.05,2017

अधिव्कताओ के खिलाफ पुलिस द्वारा फैलाये गया दुश्प्रचचार एवं वकीलों पर लगातार बढ़ते हमलो के खिलाफ व्यापक आन्दोलन की चेतावनी - आल इंडिया लायर्स यूनियन छत्तीसगढ़
*****
वर्तमान में दिन प्रतिदिन जिस तरह से वकीलों पर उनके पेशे को लेकर हमले बढ़ रहे है,जबकि वकील कोर्ट का अधिकारी होता है,परन्तु जिस तरह से आज वकीलों पर हमले बढ़ रहे है,वो अत्यंत ही घातक है. खासकर उन पर जो ऐसे मामले उठाते है जिनमे पुलिस या राज्य आरोपी होती दिखाई पड़ती है.पिछले सालो में लगभग 8 से 9  ऐसे मामले सामने आये है, जिन पर उनके वकालत पेशे के कारण ही उनको लगातार परेशान किया गया व उन पर हमले हुए. जिसमे अधिवक्ता रजनी सोरेन, अधिवक्ता सतीश चन्द्र वर्मा, अधिवक्ता बिजेम
पोंडी(सुकमा), अधिवक्ता निकिता अग्रवाल, अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला, ईशा खंडेलवाल,अधिवक्ता सोंन सिंह झाली(जगदलपुर)आदि का नाम पहले से ही शामिल है, वर्तमान में यह फैरिस्त बढती ही जा रही है.
.हाल ही में माननीय छत्तीसगढ़  हाईकोर्ट के समक्ष, हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की सदस्य अधिवक्ता सुधा भारद्वाज(पूर्व सदस्य,राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण) शालिनी गेरा व ईशा खंडेलवाल सहित ७ अधिवक्ताओ ने पोडियम पंडा की पत्नी पोडियम मुइये की तरफ से बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus)याचिका दायर की थी, जिसमें यह निवेदन किया गया था कि 3 मई 2017 से सुकमा पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया किंतु उसकी जानकारी न परिवार को दी और न ही उन्हें मिलने दिया गया। इसलिये पंडा को पुलिस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाय़। याचिका दायर की पत्नी, उनके भाई कोमल सिंह और परिवार के अन्य सदस्य उपरोक्त वकीलों के कार्यालय में आये थे। पोडियम मुइये की याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया कि पोडियम पंडा को 22.5.17 को कोर्ट में प्रस्तुत करें। निर्देश के अनुसार सुकमा पुलिस द्वारा 22 मई को कोर्ट में प्रस्तुत किया गया। पंडा ने स्वीकार कि वह बिना किसी दबाव के पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया है व उनके साथ ही जाना चाहता है,माननीय न्यायालय द्वारा मामले का निराकरण किया गया.
किन्तु पंडा के बयान के तुरंत बाद हाई कोर्ट परिसर में ही कोर्ट रूम से बाहर निकलते ही,अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जितेन्द्र शुक्ला ने याचिकाकर्ता के वकीलों के साथ अभद्र व्यवहार किया. ठीक उसी दिन कुछ घंटो बाद ही अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जितेन्द्र शुक्ला द्वारा सोशल मिडिया में (whatsApp message) के माध्यम से (संलग्न) में यह झूठ फैलाया कि श्री पंडा द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष यह कहा कि “महिला वकीलों ने बीवी को बनाया बंदी और मिलने नहीं दिया गया, माननीय न्यायालय के समक्ष खोले सफेदपोशों के नकाब।“  पंडा ने कहा कि ईशा खंडेलवाल, शालिनी गेरा और सुधा भारद्वाज ने उनकी पत्नी को झूठ बोलकर रोके रखा, जिसके लिये पोडियम पंडा ने महिला वकीलों के खिलाफ शिकायत अर्जी दी गई है। जब कि पंडा द्वारा माननीय न्यायलय के समक्ष ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया.इसकी पुष्टि माननीय न्यायलय के आदेश पत्रिका के मिलने उपरान्त आदेश पत्रिका से मिलान करके की जा सकेगी.
दिनांक 22.5.2017 को सुकमा पुलिस द्वारा एक प्रैस विज्ञप्ति जारी की गयी, उसमें भी ठीक वही बाते लिखी गई हैं (संलग्न)।
पुलिस  द्वारा जानबूझकर अधिवक्ताओं की छवि खराब करने के लिये न्यायालय में कहे गये बयान को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. जिसमे माननीय न्यायालय का नाम के नाम का भी दुरुपयोग किया गया,जिससे लोगो को आसानी से भ्रमित कर,वकीलों की छवि धूमिल करने की मंशा दिखाई पड़ती है. जबकि पुलिस याचिका दायर करने के बाद लगातार विभिन्न माध्यमों से फोन करके अधिवक्ताओं को यह कहती रही कि पंडा की पत्नी को वापस भेज दें और केस वापस ले लें.पंडा की पत्नी मुइये और उनके परिवार के लोग दस दिन तक बिलासपुर में अपने साधनों से रहे और इस बीच में उन्होंने स्वतंत्र रूप से बिलासपुर और रायपुर के प्रैस क्लब में प्रैस वार्ता किये और पाँच बार उच्च न्यायालय के न्यायालय कक्ष में उपस्थित हुए, और आखिरी दिन अधिवक्ताओं की पहल पर ही पंडा के परिवार के लोगों ने पंडा से मुलाकात की।
   इस प्रकार सुकमा पुलिस ऐसे वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ दुष्प्रचार और छवि खराब करने का अभियान छेड़े हुए है ताकि वकील अपने व्यवसाय को ठीक तरह से न कर पाये जो कि न्याय का मूल आधार है।
ऐसे में साफ़ देखा जा स्काट है कि,जिन भी अधिवक्ताओं के द्वारा जब-जब पीड़ित परिवारों या पीड़ित लोगो को कानूनी सहयता पहुचाने की कोशिश की जाती है या फिर उनके मामलो को मीडिया,प्रसाशन,या न्यायालय के समक्ष लाया जाता है, तब-तब पुलिस व प्रसाशन द्वारा ऐसे अधिवक्ताओं को ही उलटा नक्सल बताने या उनके ही खिलाफ फर्जी अपराध दर्ज करने की कोशिश की जाने लगती है, जो कि लगातार हो रहां है. इस प्रकार से अधिवक्ताओं को पीड़ित परिवारों को कानूनी मदद देने के, उनके अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिश लगातार की जा रही है.”आल इण्डिया लॉयर्स यूनियन” प्रसाशन व पुलिस की इस तरह के व्यवहार व कार्यवाही को तत्काल रोके जाने की मांग करता है.
चूकि भारतीय संविधान प्रत्येक भारतीय को सारे तमाम संवैधानिक अधिकार प्रदान करता है.ऐसे में आल इण्डिया लायर्स यूनियन ऐसे तमाम संवैधानिक अधिकारों पर होने वालो हमलो का भी विरोध करती है,
उपरोक्त्त तमाम प्रकरणों को लेकर छत्तीसगढ़ बार से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक शिकायते दर्ज की गयी है,यदि शीघ्र ही वकीलों के खिलाफ पुलिस व प्रसाशन द्वारा वकीलों के खिलाफ चलाये जा रहे दुष्प्रचार व  ऐसी फर्जी कार्यवाहिया, बिना विलम्ब के बंद नहीं की गयी, तो पूरे प्रदेश वकीलो द्वारा एक व्यापक आन्दोलन किया जाएगा. जिसकी पूर्ण जिम्मेदारी शासन-प्रसाशन व राज्य सरकार की होगी.
प्रेस कोंफ्रेंस में
शौकत अली (अधिवक्ता व सचिव AILU) ,    प्रभाकर चंदेल( राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य,AILU) , के.ए अंसारी (वरिष्ठ अधिवक्ता,हाई कोर्ट) .अमरनाथ पाण्डेय( ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क)  ,सुधा भरद्वाज(अधिवक्ता हाई कोर्ट व AILU सदस्य)     प्रियंका शुकला (अधिवक्ता व AILU सदस्य), शालिनी गेरा अधिवक्ता ,निकिता अग्रवाल अधिवक्ता , ,शिशिर दीक्षित अधिवक्ता ,अमित चाकी  अधिवक्ता  आशिस बेक अधिवक्ता ,नन्द कश्यप ,आनद मिश्र ,नागेश्वर मिश्र ,अनिरुद्द ,लाखन सिंह ,नीलोत्पल शुक्ला ,आदि आधिवक्ता और समजिक  कार्यकर्त्ता उपस्थित थे ,

No comments:

Post a Comment