Sunday, May 28, 2017

संभलिए, नहीं तो आसमान से बरसेगा एसिड बिलासपुर में .

संभलिए, नहीं तो आसमान से बरसेगा एसिड बिलासपुर में ।
May 29, 20170

बढ़ते तापमान पर चर्चा की विशेषज्ञों ने, प्रेस क्लब का आयोजन                              
   नारद टाइम्स
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बिलासपुर, 29 मई। तापमान का पारा 49.3 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचना गंभीर चेतावनी है। यदि हम अभी नहीं संभले तो इलाके में अम्लीय वर्षा यानी एसिड रेन का सामना करना पड़ेगा।

 इससे बचने के लिए हमें, पानी, पेड़, पर्यावरण बचाना ही होगा। ये विचार रविवार शाम प्रेस क्लब भवन में हुई परिचर्चा में विशेषज्ञों ने व्यक्त किए।

23 मई को बिलासपुर का तापमान 49.3 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया जो अभी तक का प्रदेश का सर्वाधिक तापमान है। वैसे हरियाली से चारों ओर से घिरे बिलासपुर में पहले तापमान गर्मियों में 43-44 डिग्री तक ही जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में तापमान तेजी से बढ़ रहा है, इस बात पर चिंता करने के लिए और इसे कंट्रोल करने के उपायों को लेकर रविवार शाम बिलासपुर प्रेस क्लब ने एक परिचर्चा का आयोजन किया।

राघवेंद्र राव सभा भवन परिसर स्थित प्रेस क्लब भवन में हुई इस चर्चा के मुख्य वक्ताओं में से एक एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि सीपत एनटीपीसी प्लांट तापमान में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण है। यहां रोज 50 हजार टन कोयला जलता है। मतलब साल में डेढ़ सौ लाख टन कोयला, इसकी हीट पूरे इलाके में फैल रही है और तापमान बढ़ रहा है, इसके साथ ही हवा की दिशा साल में आठ महिने सीपत से बिलासपुर की ओर रहती है, लिहाजा चिमनी से निकलने वाली गर्मी, धूल के कण और दूसरे केमिकल शहर की हवा में घुल रहे हैं और तापमान बढ़ रहा है। बिलासपुर के सरहदी जिले जांजगीर में लगने वाले पावर प्लांट भी तापमान बढ़ने का कारण है। उन्होंने कहा कि हम 49.3 डिग्री टेंम्प्रेचर से चिंतित हो रहे हैं, लेकिन चिंता का कारण तो यह होना चाहिए कि हमारे उन घंटो में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसमें तापमान 40 डिग्री से उपर रहता है। पहले गर्मियों में एसे दो या तीन घंटे होते थे, लेकिन अब ये बढ़कर चार से पांच घंटे हो गए हैं…उन्होंने हवा में घुलते हानिकारक तत्वों के कारण अम्लीय वर्षा की चेतावनी भी दी

…चर्चा के दूसरे वक्ता पर्यावरणविद नंद कश्यप ने कहा कि नदी का सूखना और पेड़ों का कटना तापमान बढ़ने का बड़ा कारण है। अरपा नदी में एक समय रेत होती थी, लेकिन अब तो रेत नहीं कचरा है, जो पूरे समय मिथेन गैस बनाता है। नदी की रेत का स्पंज खत्म हो गया है। रेत निकालने वालों ने नदी की भीतरी सतह की चट्टानों में मशीनों से वार कर दरार बना दी है, लिहाजा पानी चट्टानों से नीचे चला गया है। हमें नदी में पानी बचाने से पहले रेत बचानी होगी। नंद कश्यप ने कहा कि प्रदेश में बेरहमी से पेड़ काटे जा रहे हैं। रेल परियोजनाओं, सड़कों के लिए एक एक ब्लाक में पांच से सात लाख पेड़ो को काट दिया जा रहा है।

परिचर्चा की तीसरी और अंतिम वक्ता सेंट्रल यूनिवर्सिटी की फारेस्ट्री विभाग की प्रोफेसर डाक्टर रश्मि अग्रवाल ने कहा कि पर्यावरण बचाने के लिए अभी से प्रयास करना होगा। इसके लिए हम सप्ताह में एक दिन कोई वाहन नहीं चलाएं, कार पूल करें। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के सिस्टम बनाएं, वैकल्पिक उर्जा साधनों जैसे सोलर एनर्जी का उपयोग शुरू करें क्योंकि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व, कारण दिनों दिन बढ़ रहे हैं, लेकिन प्रदूषण को सिंक करने वाले वनों का घनत्व घट रहा है, पानी के नेचुरल सोर्स कम हो रहे हैं। चर्चा में बेनी गुप्ता, प्रथमेश मिश्रा, अटल श्रीवास्तव, धर्मेश शर्मा व अन्य ने भी हिस्सा लिया और कहा कि पेड़ काटने का विरोध करना होगा और इसे एक जन आंदोलन में बदलना होगा।

 कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रेस क्लब अध्यक्ष तिलक राज सलूजा ने वक्ताओं का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन सचिव विश्वेश ठाकरे ने किया और आभार प्रदर्शन कोषाध्यक्ष रमन दुबे व राजेश दुआ ने किया
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