कोयला खदान नीलामी के ख़िलाफ़ खड़े ग्रामीण
- 27 दिसंबर 2014
केंद्र सरकार के कोल ब्लॉक की नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत के साथ ही छत्तीसगढ़ में विरोध के स्वर तेज़ होने लगे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के बाद ग़लत तरीक़े से आवंटित 214 कोयला खदानों का आवंटन रद्द कर दिया था. इसके बाद केंद्र सरकार ने पहले चरण में गुरुवार को 24 कोयला खदानों की नीलामी के लिए निबंधन प्रक्रिया शुरू की है.
कोयला खदानों की नीलामी के लिए 31 जनवरी तक आवेदन आमंत्रित किए गए हैं और अगले साल 23 मार्च तक नीलामी की प्रक्रिया पूरी करने का लक्ष्य रखा गया है.
लेकिन छत्तीसगढ़ में कई इलाक़ों के ग्रामीण केंद्र सरकार की नए कोयला खनन विशेष अध्यादेश और कोयला खदानों की नीलामी का विरोध कर रहे हैं.
कॉर्पोरेट मुनाफ़ा
मांड रायगढ़ और हसदेव अरण्य के इलाके में कम से कम 17 ग्राम पंचायतों ने ग्राम सभा करके अपने इलाक़े में कोयला खनन नहीं किए जाने का प्रस्ताव पारित किया है. इन आदिवासी बहुल गांवों में विशेष पंचायती अधिनियम लागू है, जहां ग्राम सभा का निर्णय सर्वोपरी होता है.
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह अर्मो कहते हैं, “केंद्र सरकार हम आदिवासियों के सारे अधिकार छीन कर कॉर्पोरेट मुनाफ़े के लिए इन कोयला खदानों की नीलामी कर रही है. अंग्रेज़ी सरकार के समय भी हमारी इतनी बदतर हालत नहीं थी.”
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का दावा है कि केंद्र सरकार के नए कोयला खनन अध्यादेश के ख़िलाफ़ देश भर की ट्रेड यूनियन 6 से 10 जनवरी तक हड़ताल कर रहे हैं.
आलोक मानते हैं कि कोयला खदानों की नीलामी में पुराने आवंटियों को सभी पुरानी स्वीकृतियों के साथ ही भाग लेने की अनुमति दिया जाना भ्रष्टाचार और अनियमितता को बढ़ावा देगा.
वह कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को केंद्र सरकार निरर्थक करने पर तुली हुई है और यह भयानक है.”
ग़लत तरीक़े से कोयला खदान आवंटन के मामले की जांच और दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई को लेकर सुदीप श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर ती थी.
वह कहते हैं कि केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ के जिन इलाक़ों में कोयला खनन की अनुमति दे रही है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण जैव विविधता वाला क्षेत्र है. देश के दूसरे इलाक़ों में 100 साल तक कोयले की आपूर्ति लायक़ खदान हैं.
उनके बजाए प्रकृति को नष्ट करके छत्तीसगढ़ के ‘नो गो’ घोषित इलाक़ों में कोयला खनन सही नहीं है.
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