हरिप्रिया की क्लास
himanshu kumar
सुबह सुबह हरिप्रिया ने कहा आज खड्ड (पहाड़ी नदी ) में घूमने चलें पापा ?
मैंने कहा चलो चलते हैं .
हरिप्रिया स्कूल नहीं जाती .
हरिप्रिया ने चार महीने पहले स्कूल को विदा दे दी है .
मैं और हरिप्रिया नैण गाँव को पार करके एक पहाड़ी के बीच में बने हुए पथरीले रास्ते से नदी की तरफ बढ़ने लगे .
रास्ते में हरिप्रिया ने सीखा कि नदी के किस तरह के ऊंचे किनारे को अंग्रेज़ी में क्लिफ कहा जाता है ,किस तरह के नदी के तट को रिवर बैंक कहा जाता है .
हम क्लिफ से नीचे उतर कर नदी के किनारे पहुंचे . क्लिफ से पत्थरों से पानी के चश्मे से पानी रिस रहा था . हरिप्रिया को पानी का चश्मा , नेचुरल स्प्रिंग , प्राकृतिक जल स्रोत ,शब्द सीखने को मिले .
कुछ दिन पहले हरिप्रिया ने एक हाइकू लिखा था .
''हाथ में मिनरल वाटर
सामने बहे साफ़ पानी
क्या पियें ?''
आज हरिप्रिया का हाइकू जीवंत हो गया था .
हरिप्रिया ने झट से चश्मे का पानी पिया . और साथ में घर से लाइ हुई बोतल में से बचा खुचा पानी मुझे पीने के लिए दिया .
और फिर बोतल को चश्मे के पानी से भर लिया . हम दोनों ने घर के पानी और चश्मे के पानी की तुलना करी और हम दोनों इस बात पर सहमत हो गए कि चश्मे का पानी ज़्यादा मीठा और स्वादिष्ट है .
हरिप्रिया की राय थी कि इस पानी में बस्तर के पानी का स्वाद है .
मैं तो अब बस्तर के पानी का स्वाद भूल चूका था .
मैंने सम्भावना व्यक्त करी कि संभव है कि बस्तर और इस चश्मे के पानी में प्राकृतिक खनिज घुले हों इसलिए दोनों का स्वाद एक जैसा लग रहा हो .
हम दोनों जाकर नदी के बीच में एक बड़ी चट्टान पर बैठ गए . नदी में पहाड़ की तरफ से ग्लेशियर का पानी तेज आवाज़ के साथ आ रहा था . ऊपर चट्टानों से टकराने और ऊपर से गिरने की वजह से पानी सफ़ेद दिख रहा था .
लेकिन जहां हम बैठे थे वहाँ जगह गहरी होने की वजह से पानी हरा दिखाई दे रहा था . पानी के अलग अलग रंग के दिखाई देने पर हम लोगों ने चर्चा करी . हरिप्रिया को मैंने दिखाया कि देखो नदी के दूसरी तरफ क्लिफ की पूरी ढाल पर जो हरियाली है उस के कारण पानी का रंग हरा दिखाई दे रहा है . जबकि सूरज की किरणों के परावर्तन के कारण उछलता हुआ पानी सफ़ेद दिखाई दे रहा है .
इसके बाद हरिप्रिया ने जाना कि जैव विविधता का क्या मतलब है . इकोलोजिकल सिस्टम किसे कहते है , इको फ्रेंडली किसे कहते हैं . काई , छोटे पौधे , मझोले पौधे , बड़ी झाडियाँ मझोले पेड़ , बड़े पेड़ , लतायें ,,छोटे कीट , कीट को खाने वाले जीव , चिडियाँ , तितलियाँ , उन्हें खाने वाले बड़े जीव , शाकाहारी ,जानवर , उन्हें खाने वाले मांसाहारी जानवर आदि मिल कर पूरी जैव विविधता का निर्माण करते हैं .
फिर मैंने पूछा कि तुम्हारी राय में इस दुनिया पर सबसे ज़्यादा हक़ किसका है क्या इंसान का या इन सब जीवों का भी .
हरिप्रिया ने तुरंत कहा कि सबका बराबर हक़ है .
हरिप्रिया ने गुस्से से पूछा 'पापा क्या सारे जीव मिल कर दुनिया को बरबाद करने वाले इंसान को सबक नहीं सिखा सकते ?'
इस पर मैं काफी देर तक हँसता रहा .
मैंने कहा कि बेटी ये तो अब तुम्हे सोचना है कि इस लालची इंसान को सबक कैसे सिखाया जाय ?
फिर हमने नदी में ऊपर की तरफ क्लिफ पर बने मानशी के घर की तरफ जाने का फैसला किया .
लेकिन नदी में पानी काफी था और बहाव भी काफी तेज था .
रास्ते में श्मशान आया . हरप्रिया ने बताया कि गाँव वाले कहते हैं कि इस श्मशान में इस पेड़ पर बहुत सारे भूत रहते हैं .
हम दोनों काफी देर तक श्मशान में उस पेड़ की नीचे बैठे रहे .
कुछ देर बाद हमने ऊपर की तरफ बढ़ना शुरू किया . नदी में काफी पानी था . नदी के किनारे बड़ी बड़ी चट्टानें और तीखा ढाल था .
हमने उसी ढाल पर तिरछी दिशा में बढ़ना जारी रखा . काफी बड़ी बड़ी चट्टानों पर रेंग कर घिसटते हुए चढ़ते उतरते हुए करीब एक घंटे बाद हम एक किलोमीटर ऊपर पहुँच पाए .
मानशी के घर पहुँचते हुए हम काफी थक गए थे . वहाँ मानशी के तीन साल के बेटे अबीर , उनके दोनों कुत्तों ताशी और साकसी ने हमारा स्वागत किया , मानशी ने हमें बढ़िया नाश्ता खिलाया . बाद में हम करीब ग्यारह बजे घर पहुँच गए .
इस तरह हरिप्रिया की क्लास पूरी हुई .
No comments:
Post a Comment