रहने दें... मैं अपने धर्म में ही ठीक हूं
- 7 घंटे पहले
हमारे कई हिन्दू दोस्तों ने हमें हमेशा बताया है हिन्दू धर्म में तो सभी शामिल हैं चाहे वो नास्तिक हों या किसी और धर्म को मानने वाले.
वह मानते हैं हिन्दू धर्म एक जीवनशैली है. तो फिर हिंदुत्व परिवार वाले धर्म परिवर्तन करने का अभियान क्यों चला रहे हैं?
हिंदुत्व परिवार वाले इसका जवाब विश्वासनीय तरीके से नहीं देते.
'घर वापसी' क्यों?
आगरा में 200 मुसलमानों के कथित रूप से हिन्दू धर्म में शामिल होने पर एक बड़ा विवाद पैदा हो गया है और ऐसा बजरंग दल के नेतृत्व में किया गया है.
ख़बर ये भी है कि अलीगढ़ में 25 दिसंबर को कथित तौर पर पांच हज़ार मुसलमानों और ईसाइयों का धर्म परिवर्तन किया जाना है.
अगर वे अपनी मर्ज़ी से ऐसा करने वाले हैं तो कोई बात नहीं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 1977 के अपने एक फ़ैसले में कहा था कि अपनी मर्ज़ी से धर्म परिवर्तन करना ग़लत नहीं है.
कई साल पहले मैं अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद के एक युवा नेता के घर उनका इंटरव्यू करने गया था. उन्होंने चाय मंगाई और और इंटरव्यू शुरू हो गया.
जब मैंने उनकी इस बात से सहमति जताई कि सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे और इस पर भी कि बाबर एक आक्रमणकारी था, तो मेरे प्रति उनका रवैया बिलकुल बदल गया. चाय के साथ बिस्किट भी पेश किया गया
इंटरव्यू के बाद बिस्किट और चाय पर चर्चा जारी रही. मैंने उन से पूछा कि विश्व हिन्दू परिषद समेत हिंदुत्व परिवार वाले मुसलमानों और ईसाइयों का धर्म परिवर्तन क्यों करना चाहते हैं?
मैंने कहा, हमारे हिन्दू दोस्त कहते आए हैं कि हिन्दुत्व एक जीवनशैली है और इसमें कोई भी शामिल हो सकता है, तो धर्म परिवर्तन या घर वापसी की क्या ज़रूरत?
वह दो टूक शब्दों में बोले कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं है कि मुस्लमान नमाज़ पढ़ें और रोज़ा रखें, शर्त यह है कि वो अपने पूर्वजों को पहचानें और वही करें जो उनके पूर्वज करते थे.
उन्होंने कहा वह मुसलमानों और ईसाइयों की घर वापसी का अभियान इसलिए चला रहे हैं ताकि वे अपने पूर्वजों को समझें और जाने कि उनकी संस्कृति और रीति रिवाज क्या थे.
'आप तो बदलो'
वीएचपी नेता के जवाब से लगा हिंदुत्व परिवार को हिन्दू धर्म के नाम पर केवल राजनीति करनी है. धर्म के नाम पर समाज को बांटना है.
मैंने उनसे कहा कि मेरी समझ में हमारे और आपके हिन्दू पूर्वज नेक और अच्छे हिन्दू थे, जो अपने धर्म का पालन सच्चे दिल से करते थे और धर्म के नाम पर समाज को विभाजित नहीं करते थे.
मैंने उनसे यह भी कहा कि पहले आप वह करो जो हमारे और आपके पूर्वज करते थे फिर हम आपकी सफ़ में शामिल हो जाएंगे.
उसके बाद से हिंदुत्व परिवार के कई लोगों ने वही तर्क दिया है, जो अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद के उस युवा नेता ने दिया था.
कुछ महीने पहले जब दीनानाथ बत्रा बीबीसी के दफ़्तर आए थे तो उन्होंने भी मुझसे यही बात कही थी और गुरुवार को जब डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी आए तो उन्होंने भी इसी बात को दोहराया.
लेकिन सवाल यह है कि अगर मुसलमानों और ईसाइयों को उनके पूर्वजों को पहचानने की बात है तो धर्म परिवर्तन या घर वापसी की क्या ज़रूरत?
मुझे हिन्दू धर्म से उतना ही प्यार है और उसका उतना ही आदर है जितना इस्लाम का. लेकिन मैं अपने धर्म में ही रहना चाहता हूँ. हिंदुत्व परिवार को इसमें आपत्ति क्यों?
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