संसद ने नहीं सुनी तो फिर अध्यादेश और दूसरे दिन कोयला खदानो की नीलामी , वाह क्या लुटेरो की सरकार है ये , सवाल सिर्फ कोयले का नहीं सारे संसाधनो को बेतहाशा लूट का हैं ,
ऐसा लग रहा है की सरकार मे सिर्फ और सिर्फ कार्पोरेट के लुटेरे समूह सब कुछ जल्दी जल्दी मे करना चाह रहे हैं , निर्णय ले रहे है , कही कोई ना पार्टी है ना कोई जन प्रतिनिधि ना कोई मंत्री है और ना कोई किसी की सुनने वाला , ऐसे बुरे और हैरत मे डाल देने वाले दिन शायद इतिहास मे कभी नहीं आये , कोयला खदानों को नीलाम करने के लिए केंद्र सरकार ने चार महीने पहले सुप्रीम कोर्ट के निरस्तीकरण के निर्णय के ठीक खिलाफ अध्यादेश राष्ट्रपति से जारी करवाया था , 6 महीने में इसे संसद से पास कराया जाना था , लोकसभा तो ठीक लेकिन राज्यसभा ने इस पास नहीं किया , कारण जो भी हो ,लेकिन यही हक़ीक़त है की राज्यसभा के पास न करने के कारण ये अध्यादेश शून्य हो गया , 23 दिसंबर को संसद स्थगित हुई , तुरंत 24 को मंत्रिमंडल ने दुबारा अध्यादेश मंजूर कर दिए और उसी दिन कोयला मंत्रालय ने 24 कॉल ब्लॉक की सूचि जारी कर दी की इनकी नीलामी शुरू की जाएगी , और 25 को अवकाश के दिन ही इसकी ई नीलामी शुरू कर दी।
ऐसा लग रहा है की सरकार मे सिर्फ और सिर्फ कार्पोरेट के लुटेरे समूह सब कुछ जल्दी जल्दी मे करना चाह रहे हैं , निर्णय ले रहे है , कही कोई ना पार्टी है ना कोई जन प्रतिनिधि ना कोई मंत्री है और ना कोई किसी की सुनने वाला , ऐसे बुरे और हैरत मे डाल देने वाले दिन शायद इतिहास मे कभी नहीं आये , कोयला खदानों को नीलाम करने के लिए केंद्र सरकार ने चार महीने पहले सुप्रीम कोर्ट के निरस्तीकरण के निर्णय के ठीक खिलाफ अध्यादेश राष्ट्रपति से जारी करवाया था , 6 महीने में इसे संसद से पास कराया जाना था , लोकसभा तो ठीक लेकिन राज्यसभा ने इस पास नहीं किया , कारण जो भी हो ,लेकिन यही हक़ीक़त है की राज्यसभा के पास न करने के कारण ये अध्यादेश शून्य हो गया , 23 दिसंबर को संसद स्थगित हुई , तुरंत 24 को मंत्रिमंडल ने दुबारा अध्यादेश मंजूर कर दिए और उसी दिन कोयला मंत्रालय ने 24 कॉल ब्लॉक की सूचि जारी कर दी की इनकी नीलामी शुरू की जाएगी , और 25 को अवकाश के दिन ही इसकी ई नीलामी शुरू कर दी।
आप कह सकते है की ये काम करनेवाली सरकार हैं , नहीं ,,थोड़ा रुकिये जल्दबाजी मत करिये इन लुटेरे गिरोह को समझने में थोड़ा धैर्य रखिये , जब पूरी संसद धर्म परिवर्तन जैसे फिजूल के मुद्दे पे सारी पार्टिया उलझी थी ,तब कार्पोरेट के लुटेरो का गिरोह इसी उधेड़बुन में था ,की कैसे कोयले की खदानों को अपने कब्ज़े में लिया जाये ,हालाँकि उसने इसका पूरा इंतजाम कर लिया था की यदि राज्यसभा इस अध्यादेश को नामंजूर भी कर देगी तो संसद का सयुक्त अधिवेशन बुला के इसे पास करवा लिया जायेगा , ऐसा मौका इन्हे नहीं मिला तो फिर दूसरा रास्ता अपनाया गया की दुबारा अध्यादेश लाया कये ,और रबर [ अँगूठे ] की तरह बैठे राष्ट्रपति से जारी करवा लिया जाये ,ठीक यही किया गया , लेकिन इन कम्पनियो को बिलकुल इंतजार बर्दाश्त नहीं था और दूसरे दिन से ही अपने षड़यंत्र को पूरा किया जाने लगा और सरकार का लोयला मंत्रालय और उसके प्रतिनिधि पियूष गोयल कंपनी के सीईओ की तरह कार्पोरेट द्वारा बनाये गये अध्यादेश के अनुसार खदानों को नीलाम करने या अपने चहेतो को बेचने को तत्पर हो गए।
अब आप कहेंगे की इस अध्यादेश में आखिर ऐसा है क्या ?
सर्वोच्च न्यायलय ने 24 सितम्बर 2014 को अपने ऐतिहासिक फैसले में 1993 के बाद सभी आवंटित 214 कॉल ब्लॉक को रद्द कर दिया था ,यह सरकार अभूतपूर्व अवसर था की वह अपनी पुरानी नीतियों ,प्रक्रियाओ एवं कार्पोरेट केंद्रित एजेंडे पे गंभीरता पूर्वक दुबारा विचार करें ,कोर्ट ने अपने निर्णय में अनेको अवसर पर सरकार की निंदा करते हुए भरपूर प्रयास किया की सरकार अपनी जिम्मेदारियों को समझे और इसी दीर्घकालीन नीतिया बनाये , जिससे देश के बहमूल्य प्राकृतिक संसाधन का देश के तथा जनता के हित में उपयोग किया जा सके। परन्तु अनुचित शीघ्रता बताते हुए अपने दुर्भग्यपूर्ण निर्णय में सरकार ने कॉल माइंस [ स्पेशल प्रोविजन ] अध्यादेश 2014 पारित कर दिया। इससे सरकार ने केवल इस ऐतिहासिक अवसर को जाने दिया बल्कि जनता और देश के विरुद्द काम करते हुए केवल कार्पोरेट को ही लाभ पहुचाया। इस अध्यादेश ने सर्वोच्च न्यायालय की मूल भावना के ठीक विपरीत काम किया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने जो कहा ,अध्यादेश ने ठीक उसके विरुद्द किया ;
1 ,सब कुछ केंद्र करेगा ;
न्यायालय ने कहा की खदान के आवंटन की प्रक्रिया की मूल जिम्मेदारी राज्य सरकार की है , उसके ठीक विपरीत अध्यादेश में आवंटन की पूरी प्रक्रिया केंद्र के अधीन दी ,जिसमे राज्य सरकार या निर्वाचित प्रतिनिधि से विचार विमर्श का कोई प्रावधान ही नहीं हैं , राज्य सरकार की भूमिका महज रबर स्टेम्प की हो गई। हमारे संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ हैं।
2 कोयला खनन लाभ के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र हित के लिए होगा , सरकार ने इसे मुनाफे के लिए खोल दिए दिया।
सैवोच्च न्यालय ने कहा निजी क्षेत्र में लाभ के लिए कोयला खनन वर्जित है ,कोयला खनन केवल पहले से निर्देशित आंतरिक उद्देश्य के लिए ही और जरुरत की परिसीमा में रहकर ही किया जा सकता हैं ,यह खनन केवल उन्ही कम्पनियो द्वारा किया जा सकता है ,जिन्होंने पहले से ही विधुत सयंत्र ,लोहस्पात ,सीमेंट आदि के कारखाने खोल लिए हैं। लेकिन अध्यादेश ने कोयला खदानों निजी मुनाफे के लिए खनन की अनुमति देदी।
इसमें राष्ट्र में उपयोग की कोई सीमा या जरूरत निर्धारित नहीं की, यह एक तरह से जमाखोरी ,कालाधन विक्रेताओ ,पुन ; विक्रेताओ को खुला निमंत्रण हैं। खनन कम्पनी अब अपने संकीर्ण मुनाफे मुनाफे के लिये कही अधिक खनन कर राष्ट्रीय संपत्ति का भारी नाश करेंगी ,
3 निजी और सरकारी कम्पनियो के बीच जॉइंट एडवेंचर गैरकानूनी है , अध्यादेश ने कहा की ये सब क़ानूनी है
सर्वोच्च न्यायलय ने निजी कम्पनियो के बीच तथा निजी कम्पनियो का सरकारी कम्पनियो के बीच जॉइंट एडवेंचर [संयुक्त उद्यम ] को गैरकानूनी कर दिया ,वही अध्यादेश ने सभी संयुक्त उद्गम जिनमे केंद्रीय और राज्य की सरकारी सरकारी कम्पनियो के साथ संयुक्त उद्गम , उनको भी कोयला खनन की अनुमति कर दी। इससे जल्द ही चंद कम्पनियो के हाथो में खदाने केंद्रित हो जाएँगी ,इससे सरकारी कम्पनियाँ प्रतिस्पर्धा को भी ठेस पहुंचेगी ,
4 ,आवंटन के स्पष्ट और निष्पक्ष मापदंड ,अध्यादेश ने सिर्फ रकम को ही मापदंड बनाया
सर्वोच्च न्यायलय ने कोयला आवंटन लिए स्पष्ट और निष्पक्ष मापदंड निर्धारित किये ,ताकि कोयला का अनुचित तरीके से चंद कम्पनियो के हाथो वितरण रोक जा सके ,वही अध्यादेश ने सिर्फ और सिर्फ रकम को ही मापदंड बनाया हैं ,और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे मायनिंग के अनुभव , अंतः उपयोग सयन्त्रों में निवेश ,पर्यावरणीय तथा सामाजिक ववहार को दरकिनार कर दिया हैं।
5 , कोयला पे जनता का अधिकार है ,उसे कार्पोरेट को सौंप दिए इस अध्यादेश ने ,
सभी दोषी कम्पनियो को अब तक निकले गए कोयले पर 295 रुपये प्रति टन की दर से आदेश दिया और कहा की कोयला पर देश की जनता का हक़ है ,और इसके पूरा लाभ मिलना चाहिए ,कोयला खनन से निजी मुनाफा वर्जित है ,क्योकी ये राष्ट्र सम्पति है ,लेकिन अध्यादेश ने मुनाफे के लिए खदाने निजी हाथो को सोपं दी ,जो बहमूल्य राष्ट्रीय संसाधनो का विनाश हैं।
इससे यह स्पष्ट होता हैं , की यह हमारी स्वंत्रत न्याय व्यवस्था पे हमला हैं ,और हमारी न्याय व्यवस्था को गंभीर क्षति पहुचायेगा। इसके अतरिक्त इसमें कई ऐसे नए प्रावधान है जो जनहित के खिलाफ हैं ,इससे पर्यावरण ,प्राकर्तिक स्थिरता ,स्थानीय आजीविका आदि पर दूरगामी प्रभाव डालेगा।
अध्यादेश के जनविरोधी प्रावधान और संभावित प्रभाव
1, कोयला खदान के आवंटन के पूर्व किसी भी पर्यावरणीय क्लियरेंस ,वनभूमि परिवर्तन क्लियरेंस या ग्रामसभा की कोई जरुरत नहीं होगी , इसका प्रभाव ये पड़ेगा की ,इसके प्रावधान के पालन में पर्यावरणीय तथा सामाजिक प्रभाव को जांचने की सभी नियमित प्रक्रियाओ का मज़ाक बन जायेगा। यह पूरी प्रक्रिया इस अवधारणा पे आधारित है की सभी कोयला खदानों को सभी स्वीकतिया स्वतः ही मिल जाएँगी , अध्यादेश ने जो 204 रद्द लोयला ब्लाको की नीलामी का जिक्र किया उनमे अधिकांश के पास पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं हैं।
2, पुरानी कम्पनी को मिली सभी स्वीकृतिया स्वतः आवंटी को स्थरन्तरित कर दी जाएगी , इसका प्रभाव ये पड़ेगा की इससे पुराने अधिकारी को मिल गई स्वीकृतियां या अन्य विभिन्न प्रक्रियाओ में हुई अनिमितिताओ को सुधरने का कोई मौका नहीं मिलेगा ,सभी शेडूल एरिया में स्थित है ,यह प्रावधान पेसा कानून 1996 का भी उलंघन है , कार्य के पूर्व ग्रामसभा की अनुमति लेना आवश्यक है
3,नीलाम किये गए कोयला ब्लाको के सम्बन्ध में कोई भी क़ानूनी प्रक्रिया या उपाय नए खरीददार एवं संबंधित भूमि या खदान या ढांचे पे लागु नहीं होगी , इसका मतलब ये है की खदान से सम्ब्नधित अनियमियताओ भरपाई तथा नुक़सान की हर्जाना वसूली कठिन हो जाएगी ,इन खदानों में से कई पर गंभीर अनियमतता ,जैसे की अनुचित हर्जाने की राशि ,अपर्याप्त मुआवज़ा पैकेज आदि के आरोप है म,ये उन को बचने की कोशिश है जहा पर्यावरणीय मानदंडो का नही किया जा रहा हैं।
4, खदानों सम्बन्ध में दिया गए क़ानूनी फैसले ,ट्रिब्यूनल के निर्देश तथा अन्य किसी अधिकारी के प्रतिकूल आदेश को रद्द कर दिया गया हैं ,इसका मतलब यही है की एनजीटी के सभी निरस्तीकरण आदेश के प्रभाव कर दिया गया हैं ,इससे विभिन्न न्यायलयो के अनिमियत्तो बाबत आदेश जैसे अधिग्रहण ,विस्थापन तथा पुनर्वास ,कर्मचारियों के अधिकारों आदि पे दिया गए आदेश
ख़त्म माने जायेंगे,
5 मौजूदा माईन्स में नीलामी से पूर्व हुई मजदूरी ,बोनस ,रॉयल्टी पेंशन ,ग्रेचुटी ,या अन्य राशि के भुगतान को प्रतिबन्ध कर दिया हैं ,इसका मतलबी ट्रेडयूनियन के अपने सभी अधिकारों प्राप्ति तथा रक्षा के सभी समाधान को समाप्त दिया हैं।
6 ,भूमि अधिग्रहण के लिए अत्यंत ही कठोर तथा आदिम कानून col bearing areas [ acquisition and development]
act 1957 का स्तेमाल लिया गया हैं ,अर्थात पिछले साल न्यायपालिका द्वारा पारित ' भूमि अर्जन पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार 2013 [ right to fair
compensation and transparency in land rehabilitation and resettlement act
2013] का भद्दा मजाक हैं ,जिससे कम्पनिया गरीब किसानो तथा आदिवासियों की जमीन को उनकी सहमति के बिना कोडी के मोल खरीद लेंगीं।
7 किसी भी व्यक्ति को खनन अधिग्रहण में बाधा उत्पन्न करने के आरोप में १-२ लाख रुपये जुरमाना और कारावास का प्रावधान हैं ,अर्थात लोगो विचारो व विरोध को दबाने की कोशिश हैं ,इससे जनता तथा नागरिक समाज के खान कार्यो में उत्पन्न वास्तविक शिकायतों को दबाने
का प्रयास हैं
इस अध्यादेश में जनता की लम्बे समय की उस मांग को ठुकरा दिया है, जिसमे कहा गया था की किसी भी कोयला क्षेत्र को छोटे छोटे ब्लाको में बाँट के आवंटित पहले पूरे क्षेत्र का समग्र एवं सम्पूर्ण अध्यन किया जाना चाहिए ,ताकि उस क्षेत्र पर खनन का सम्पूर्ण पर्यावरणीय ,भौगोलिक तथा सामाजिक प्रभाव समझा जा सकें।
इस अध्यादेश सर्वाधिक प्रभाव छत्तीसगढ़ राज्य पर पड़ेगा ,
इस अध्यादेश सर्वाधिक प्रभाव छत्तीसगढ़ राज्य पर पड़ेगा क्योकि निरस्त की गई 204 खदानों में से 42 ब्लॉक यहाँ आते हैं। इसके अतिरिक्त 100 से ज्यादा कोयला ब्लाको को भविष्य में आवंटन के लिए मेपिंग किया गया हैं। बिना निम्न खामियों को सुधारे इनका आवंटन के गंभीर परिणाम होंगे,
1 इनमे अधिक्तर कोयला ब्लाक पारिस्थिकी संवेदनशील क्षेत्र में हैं ,जहाँ भरपूर जैव विविधकता है और ये क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य हैं , किसी भी खनन का अत्यंत पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होगा। इसमें कई क्षेत्र ऐसे है जिसे पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में किसी भी खनन के लिए नो गो एरिया वर्गीकृत कर दिया था ,ये इलाका पुरे देश का मात्र 8 ,11 प्रतिशत ही है ,और देश के लिए कुल कोयला धारक क्षेत्र का मात्र 11 . 5 प्रतिशत हैं।
2छत्तीसगढ़ का अधिकांश क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में आता हैं ,जहा खनन के पूर्व ग्रामसभा की अनुमति जरुरी हैं ,परन्तु इस क्षेत्र में ज्यादातर इस प्रावधान का कम्पनियो ने उलंघन हैं।
3 यहाँ पर आदिवासी तथा अन्य वन निवासियों सम्बन्धी अधिकारों मान्यता नहीं दी गई हैं ,इनके सामुदायिक एवं व्यक्तिगत अधकारो की अवहेलना की गई हैं ,गौरतलब ये है कि भूमि अधिग्रहण के पूर्व सभी वनअधिकारो के दावों का निराकरण का क़ानूनी प्रावधान है ,इसका पालन छत्तीसगढ़ में कही भी नहीं किया गया हैं ,
4 वर्तमान में आवंटित कोयला खदानों की पर्यावरणीय स्वीकृति माननीय ग्रीन त्रियब्नल ने निरस्त कर दिया है ,जिससे सिद्द होता है की इन मालिको में भारी गैरकानूनी काम किये हैं ,
5 वर्तमान कोयला खदानों ने भूमि अधिग्रहण ,मुआवज़ा तथा पुनर्वास में गंभीर गड़बड़िया की है ,जिसे न्यालय में चुनौतियां दी गई हैं।
सवाल सिर्फ कोयले की लूट का नहीं बल्कि देश के सभी संसाधनो की लूटने के हैं ,ये जमीन ,ये जंगल ये पाकृतिक संसधान सिर्फ इस पीढ़ी की विरासत नहीं हैं ,इन्हे करोडो साल में प्रकर्ति ने बनाया हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत है , इसे इन लुटेरो के हाथो में नहीं दिया जा सकता , तो आईये ,इसकी रक्षा करे ,लुटेरो के खिलाफ उठ हों ,हमारे पास मिलके संघर्ष के अलावा कोई रास्ता नहीं हैं।
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