ये है जिहादियों के पैसे की 'बैलेंस शीट'
- 12 दिसंबर 2014
चाहे इस्लामिक स्टेट हो, अफ़ग़ान तालिबान या अल शबाब पूरी ताकत लगाने के बाद भी दुनिया भर की सरकारें इन्हें मिटा नहीं पा रहीं. कारण है इनके पास आता पैसा.
ये संगठन केवल तस्करी और अपहरण ही नहीं करते बल्की व्यापार भी करते है और सरकारों की तरह टैक्स भी वसूलते है.
कहाँ से आता है इतना पैसा जो इन्हें इतनी ताकत देता है.
पढ़िए पूरी काहानी
पूर्व अमरीकी रक्षा मंत्री चक हेगल ने आईएस को बौद्धिक रूप से सबसे प्रभावशाली और आर्थिक रूप से संपन्न संगठन बताया था.
आईएस के आर्थिक संसाधनों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान सबसे ज़्यादा है. आईएस तेल बेचकर, टैक्स लगाकर, फ़िरौती वसूलकर और लूटपाट कर पैसे जुटाता है.
अमरीका के नेतृत्व वाले सुरक्षा बलों ने अधिकांश हवाई हमलों में तेल रिफ़ाइनरियों और तस्करी के रास्तों को निशाना बनाया. इन्हें आईएस की कमाई के सबसे बड़े ज़रिए के रूप में देखा जाता है.
आर्थिक स्रोत
चरमपंथी संगठन आमतौर पर दो प्राथमिक स्रोतों से पैसे की व्यवस्था करते हैं. पहला समान विचारधारा वालों से दान. जैसे नाइजीरिया का बोको हराम. ख़बरों के मुताबिक़ बोको हराम को 2012 में 'अल क़ायदा इन दि इस्लामिक मग़रीब' (एक्यूआईएस) से ढाई लाख डॉलर मिले थे. हालांकि इस तरह का दान बुनियादी पैसे का एक ज़रिया हो सकता है. लेकिन ऐसे स्रोतों को ख़त्म किया जा सकता है.
साल 2005 में लिखे पत्र में अल क़ायदा के पूर्व उप प्रमुख अयमन अल-जवाहिरी ने संगठन की इराक़ ईकाई से एक लाख डॉलर मांगे, क्योंकि पैसा उगाहने के उसके अपने ज़रिए ख़त्म हो गए थे.
आर्थिक स्वतंत्रता के लिए चरमपंथी संगठन दान से हटकर पैसा उगाहने के ख़ुद के स्रोत बनाते हैं. और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए इस तरह के स्रोतों को तबाह कर पाना थोड़ा कठिन है.
कारोबार की स्थापना
सोमालिया के अल शबाब को दान में कम पैसा मिलता है. उसने पैसे के लिए कोयले के निर्यात का कारोबार जमाया. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ उसे इससे हर साल क़रीब आठ करोड़ डॉलर की आय होती है.
अल शबाब आईएस की तरह व्यापार, व्यक्तिगत और ट्रांसपोर्ट पर टैक्स लगाता है. अल शबाब ने अपने कब्ज़े वाले इलाक़े में एक ऐसी व्यवस्था जमा ली जो किसी सरकारी तंत्र सी है. वह सुरक्षा और न्यायालयों जैसी सेवाओं के बदले टैक्स लेता है.
वहीं आईएस अपने कब्ज़े वाले इलाक़ों में मुसलमानों को सेवाओं और खाने की आपूर्ति करता है. इसके अलावा उसके कब्ज़े वाले इलाक़ों में लाभप्रद धंधो की इजाज़त देता है.
अफ़ीम की खेती
अफ़ग़ानिस्तान में नेटो पिछले 13 सालों में अफ़ीम के कारोबार पर रोकने के लिए अब तक सात अरब डॉलर खर्च कर चुका है. इसके बावजूद भी अभी भी वहां अफ़ीम की खेती सबसे ज़्यादा है.
अफ़ग़ानिस्तान से दुनिया की 90 फ़ीसदी अफ़ीम की आपूर्ति की जाती है जिससे 15 करोड़ डॉलर सालाना की आय होती है, इसमें तालिबान फ़ायदा उठाता है.
लेकिन सभी संगठन अपने इलाके में से इसी तरह से पैसा नहीं जुटाते हैं.
सहारा और साहेल के कम आबादी इलाकों पर अपना नियंत्रण रखना वाला एक्यूआईएम टैक्स लगाकर या फ़िरौती वसूल कर पैसे जुटाता है.
वहीं अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा पर सक्रिय हक्कानी नेटवर्क के पैसे को मुख्य जरिया तस्करी ही है. वह 1979 में अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ के आक्रमण के समय से ही ऐसा कर रहा है.
फ़िरौती वसूलने के लिए होने वाली अपहरण की घटनाएं बढ़ गई हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ यमन में काम करने वाले अल कायदा इन दी अरेबियन पेनिसुला (एक्यूएपी) ने 2011-2013 में इस तरह से दो करोड़ डॉलर कमाए.
फ़िरौती से कमाई
संयुक्त राष्ट्र का अंदाज़ है कि आतंकी संगठनों ने 2004 से 2012 के बीच 12 करोड़ डॉलर फ़िरौती से जुटाए हैं. माना जा रहा है कि बीते साल आईएस ने अकेले ही इस तरह से साढ़े चार करोड़ डॉलर कमाए हैं.
साल 2003 में इराक़ पर हमले के बाद अल क़ायदा इन इराक़ (एक्यूआई) के ज़ब्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि इस समूह की विफलता में प्रमुख योगदान ख़राब वित्त प्रबंधन और अनियमित आय का था.
अमरीका पर 11 सितंबर 2001 को हुए हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने आतंकी समूहों के आर्थिक स्रोतों को तबाह करने पर ध्यान दिया.
उस समय के अमरीकी राष्ट्रपति ज़ॉर्ज डब्लू बुश ने अपने वॉर ऑन टेरर के तहत चरमपंथियों के वित्त पोषण के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को तबाह करने पर ध्यान दिया.
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