दुआ वाले हाथों पर खून के छींटे तो नहीं...
- 2 घंटे पहले
जब तक आप ये तहरीर पढ़ेंगे पेशावर में जनाज़े उठ चुके होंगे. प्राइमरी सेक्शन के बच्चों के लिए छोटे कफ़न, हाई स्कूल के लिए नॉर्मल साइज़.
कब्रों पर पानी छिड़कने के बाद फूल चढ़ाए जा चुके होंगे.
माएं उन बच्चों की तस्वीरों को चूम कर बेहाल होंगी जिन्हें उन्होंने सुबह हरी कोट में या हरी जर्सी में या लड़कियों को हरी चादर पहना कर स्कूल भेजा था.
और अब जिन्हें दफ़नाने के बाद मर्द लोग कब्रिस्तान से वापस आ रहे हैं.
तालिबान का नाम
सर्द मौसम में मांओं को वैसे भी बच्चों की पढ़ाई से ज़्यादा ये फ़िक्र होती है कि उन्हें ठंड न लगे. अब इन बच्चों को शहीद कहा जा रहा होगा.
शहीद सीधे जन्नत जाते हैं... तो ये कहकर दिलों को तसल्ली दे लेते हैं कि पेशावर की सर्दी इन बच्चों की कब्रों के अंदर नहीं पहुंचेगी.
पेशावर में एक इंतहाई अहम और हंगामेदार मीटिंग हो चुकी होगी जिसमें इंतहाई सख्त अल्फाज़ में इस कत्ले आम की भर्त्सना की गई होगी.
शायद तालिबान का नाम लिया गया होगा और उन्हें कौम और मुल्क़ के दुश्मन का खिताब देते हुए जड़ से खत्म करने का फैसला दुहराया गया होगा.
इस इंतहाई अहम बैठक में इंतहाई अहम फैसले किए जाएंगे. लेकिन बैठक शुरु करते हुए मरने वालों के लिए दुआए मफिरत (उनके गुनाह माफ करने की दुआ) पढ़ी जाएगी.
पहला सिगरेट
मेरा ख्याल ये है कि दुआ गैर ज़रुरी है. मैट्रिक करने वाले या मिडिल स्कूल में पढ़ने वाले या प्राइमरी जमात के इन बच्चों ने क्या गुनाह किया होगा कि उनके गुनाहों की माफ़ी के लिए दुआ मांगी जाए.
हो सकता है किसी ने कैंटीन वाले का बीस रुपया उधार देना हो...हो सकता है कि किसी ने अपने साथी को इम्तिहान में चुपके से नकल कराई हो...
किसी ने हो सकता है कि क्रिकेट मैच में अंपायर बन कर अपने दोस्त को आउट न दिया हो. हो सकता है किसी ने क्लास में ख़ड़े होकर उस्ताद की नकल उतारी हो.
हो सकता है कि किसी बदमाश लड़के ने स्कूल के बाथरुम में घुसकर अपना पहला सिगरेट पिया हो.
खबरों में आया है कि जब हरे रंग की कोटों और हरी जर्सियों और हरी चादरों पर खून के छींटे पड़े तो स्कूल में मैट्रिक के बच्चों का फेयरवल चल रहा था. हो सकता है कि इसमें किसी ने गैर मुनासिब गाना गा दिया हो.
ख़ून के छींटे
अगले हफ्ते से सर्दियों की छुट्टियां आने वाली हैं. कई बच्चों ने अपने रिश्तेदारों के पास छुट्टियां मनाने का प्रोग्राम बनाया होगा जहां सारी रात फिल्में देखने या इंटरनेट पर चैट करने के मंसूबे बने होंगे.
आखिर 16 साल तक की उमर के बच्चे या बच्चियां क्या गुनाह कर सकते हैं कि जिसके लिए इस मुल्क की सियासी और फौजी हूकुमत हाथ उठाकर उनके गुनाह की माफी की दुआ करे.
हो सकता है कि एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से वादा किया हो कि छुट्टियों के बाद मिलेंगे.
अब इनमें से एक वापस नहीं आएगा...वो पेशावर की मिट्टी में एक ऐसी सर्द कब्र में दफन है जो एक ऐसा क्लासरुम है जहां कोई क्लास-फेलो नहीं और जहां कभी छुट्टी की घंटी नहीं बजती.
तो पाकिस्तान की राजनीतिक और फौजी हुकूमत से दर्खास्त है कि वो इन बच्चों के आखिरात के बारे में परेशान न हो.
और वे जब कल दुआ के लिए हाथ उठाएं तो अपने गुनाहों की माफी की दुआ मांगे और दुआ के लिए उठे उन हाथों को गौर से देखें कि उन पर खून के छींटे तो नहीं.
No comments:
Post a Comment