Monday, May 4, 2015

बस्तर में फिर चलेगा सलवा-जुड़ूम आंदोलन

बस्तर में फिर चलेगा सलवा-जुड़ूम आंदोलन









Posted:   Updated: 2015-05-05 00:44:20 ISTSalwa Judum movement will re-start in Bastar
कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के नेतृत्व में बस्तर में चलाए गए सलवा-जुड़ूम (शांति मार्च) को अब छबिंद्र कर्मा के नेतृत्व में नए तरीके से शुरू करने की तैयारी की जा रही है।
जगदलपुर/बस्तर. कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के नेतृत्व में 2005 से 2008 तक बस्तर में चलाए गए सलवा-जुड़ूम (शांति मार्च) को अब नए तरीके से शुरू करने की तैयारी की जा रही है।
सलवा-जुड़ूम पार्ट: 2
माओवादियों के घोर विरोधी माने जाने वाले कर्मा परिवार ने हमले के ठीक दो साल बाद बस्तर में नए सिरे से सलवा-जुड़ूम पार्ट: 2 शुरू करने का फैसला किया है। इसका नेतृत्व शहीद कर्मा के पुत्र छबिंद्र कर्मा करेंगे। दंतेवाड़ा में सोमवार को शहीद कर्मा समर्थकों की बैठक में विकास संघर्ष समिति का भी गठन कर लिया गया। माओ विरोधी आंदोलन की अंतिम रणनीति बनाने के लिए 25 मई को शहीद कर्मा के गृह गांव फरसपाल में बैठक आयोजित की गई है।
महेंद्र कर्मा अपने पूरे राजनीतिक जीवन में माओवादियों का विरोध करते रहे। कई बार उन पर कातिलाना हमले हुए, लेकिन 25 मई-2013 झीरम घाटी में माओवादी हमले में कर्मा शहीद हो गए। कर्मा 2005 में उस समय सुर्खियों में आए थे, जब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए उन्होंने बस्तर में माओवादियों के खिलाफ सलवा-जुड़ूम आंदोलन चलाया। मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने कर्मा का पूरा साथ दिया था। बाद में इसके� विवादित होने तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस आंदोलन पर विराम लगा दिया गया।
जनक को बनाया संरक्षक
सलवा-जुड़ूम अभियान के जनक माने जाने वाले शहीद कर्मा के पुराने सहयोगी चैतराम अटामी को आंदोलन का संरक्षक बनाया गया है। छबिंद्र कर्मा के साथ अटामी तथा सुखदेव टाटी आंदोलन का नेतृत्व करेंगे। आंदोलन में छबिंद्र की मां विधायक देवती कर्मा भी हिस्सा लेंगी।
यह था सलवा-जुड़ूम
पुलिस और माओवादियों के बीच कुछ ग्रामीणों ने 2005 में बीजापुर के करकेली क्षेत्र में मधुकर राव के नेतृत्व में बैठक कर माओवादियों का विरोध करने का फैसला किया और आंदोलन का नाम सलवा जुडूम दिया गया। इस स्वस्फूर्त आंदोलन की शुरुआत होते ही महेन्द्र कर्मा ने इसका नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। आंदोलन में इतनी तेजी से ग्रामीण जुड़ते गए कि पुलिस को भी इसका असर दिखने लगा। माओवादियों ने जनता की इस खिलाफत को दबाने का प्रयास किया। जब बात नहीं बनी तो माओवादी खून खराबे पर उतर आए।
प्रतिकार जरूरी
छबिंद्र कर्मा ने बताया, जन जागरण के अभाव में बस्तर में माओ समस्या लगातार विकराल रूप लेती जा रही है। गांवों में उनका दबदबा पिछले तीन वर्षों में बढ़ा है। खासकर झीरम घाट की घटना के बाद उनका दुस्साहस बढ़ा है, जिसका प्रतिकार करना जरूरी है।
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