Thursday, May 7, 2015

नारायणपुर के छोटेडोंगर में लौह अयस्क खदान के विरोध में जंगी रैली

नारायणपुर के  छोटेडोंगर में लौह अयस्क खदान के विरोध में जंगी रैली

[नईदुनिया ]

नारायणपुर(ब्यूरो)। छोटेडोंगर क्षेत्र में अमदेई घाटी से लौह अयस्क खनन के विरोध में जिले के दो हजार से भी अधिक लोगों ने जिला मुख्यालय में स्थानीय आदिवासी नेताओं और जनप्रतिनिधियों की अगुवाई में जंगी रैली निकाली और खदान बंद करने की मांग की। आंदोलनकारियों ने राज्यपाल के नाम कलेक्टर को पंद्रह सूत्रीय ज्ञापन सौंपा।
छोटेडोंगर क्षेत्र के अमदेई घाटी में लौह अयस्क की खदान है। इसके लिए सरकार ने निक्को जायसवाल कंपनी को लीज दी है। कंपनी अभी पेड़ों की कटाई करवा रही है और अप्रोच रोड बनवा रही है। इसका कई दिनों से स्थानीय लोग पर्यावरण को क्षति का सबब बता विरोध जता रहे हैं। इस सिलसिले में शुक्रवार को दोपहर बारह से दो बजे के बीच रैली निकालने की अनुमति जिला प्रशासन ने दी थी। इस रैली में छोटेडोंगर 84 परगना की सभी 15 पंचायतों के लोग शामिल हुए। इनके अलावा जिले के सभी सरपंच और जनप्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया। कांकेर और कोण्डागांव के लोग भी विरोध जताने यहां आए थे। खासकर कोयलीबेड़ा और मर्दापाल इलाके से लोग यहां आए थे। लोग अपने साथ भोजन-पानी लेकर आए थे। कुछ लोगों ने बखरूपारा में बाजार के आसपास सुबह आकर ही भोजन पका लिया था। भोजन करने के बाद वे रैली में शामिल हुए। कुछ लोग घर से भोजन लेकर आए थे तो कुछ लोगों ने हॉटल में भोजन-नाश्ता किया। बस, ट्रेक्टर, बाइक और पैदल भी लोग यहां आए थे। कांकेर जिले के धनतुलसी गांव से तो एक बुजूर्ग रूपराज दुग्गा ट्राइसाइकिल से पहुंचे थे। धनोरा, राजपुर, बड़गांव, कांकेरबेड़ा, बाकुलवाही, जम्हरी, गौरदण्ड, मढ़ोनार, तारागांव, कन्हारगांव, सुलेंगा, पल्ली, छोटेडोंगर, आतरगांव, कोंगेरा, गवाड़ी, झारा, तोयनार, कड़ेनार, रायनार, कुंगली, रेंगाबेड़ा, जोरी, टेकानार, हिरगई, बेड़मा, मड़मनार, फूलमेटा, कोडेल, कंदाड़ी एवं अन्य गांवों से लोग आए थे। इसमें सभी जातियों के लोग शामिल थे। महिलाएं दूधमुंहे बच्चों को लेकर भी रैली में शामिल हुईं। रैली बखरूपारा में बाजार से गौरवपथ से बंगलापारा पहुंची। यहां से मेन रोड होते रैली कलेक्टोरेट पहुंची। लोगों की तरफ से जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सरस्वती गोटा ने डिप्टी कलेक्टर चॅंद्रकांत कौशिक को राज्यपाल बीडी टण्डन के नाम एक ज्ञापन सौंपा। डिप्टी कलेक्टर ने बताया कि पंद्रह सूत्री मांगों वाला ज्ञापन आज ही राज्यपाल को भेज दिया जाएगा। रैली से पहले आदिवासी नेताओं एवं नेत्रियों ने लोगों को बाजार स्थल पर संबोधित किया और कहा कि ये क्षेत्र हित में है। जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सरस्वती गोटा ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए ये आंदोलन जरूरी है। इस मौके पर सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष रूपसाय सलाम ने कहा कि जंगल कटने से महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियां विलुप्त हो जाएंगी। पहाड़ी के नीचे खेतों में लाल पानी का जमाव होगा और खेत बरबाद हो जाएंगे। इस इलाके की जीवनरेखा सदानीरा माड़िन नदी प्रदुषित हो जाएगी। वन्य जीवों पर भी खतरा बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि खदान शुरू होने से गांव वालों को छोटे पदों पर काम दिया जाएगा और बड़े पदों पर बाहरी लोग काबिज हो जाएंगे। खदान से इलाके को कुछ खास फायदा नहीं है। इनके अलावा सरपंच संघ के जिला अध्यक्ष नारायण कचलाम ने भी सभा को संबोधित किया। एक युवक ने कहा कि 1858 का मंदिर अमदेई घाटी में है और इस पर भी खदान का असर होगा। ये बहुत खूबसूरत जगह है। इसकी सुंदरता खदान शुरू होने से नष्ट हो जाएगी। इस मौके पर सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष रजनू नेताम, छोटेडोंगर के वैदराज, जिला पंचायत सदस्य श्रीमती संध्या पवार, पण्डीराम वड्डे, जिला पंचायत उपाध्यक्ष सोनूराम कोर्राम, बलीराम कचलाम आदि मौजूद थे।
ये हैं मांग
खदान को बंद करने के अलावा अन्य 14 मांगे भी ज्ञापन में लिखी गई हैं। इनमें भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द करने, नक्सली बताकर बेगुनाहों को जेल भेजे जाने के सिलसिले को बंद करने एवं बेगुनाहों को रिहा करने, जल-जंगल-जमीन को संरक्षित करने, इमली, महुआ, टोरा, चार एवं अमचूर का समर्थन घोषित करने, धान, साल बीज एवं हर्रा का बोनस दिए जाने, अबुझमाड़ में खाद्यान्न की आपूर्ति किए जाने, मनरेगा के मजदूरी भुगतान में विलंब ना करने, आधार कार्ड बनाने के लिए अन्य स्थानों में शिविर लगाए जाने, इंदिरा आवास की अंतिम किश्त का भुगतान करने, मूलभूत व 13 वें वित्त आयोग के प्रतिबंध को पुनः हटाने, आईएपी एवं बीआरजीएफ की राशि को पुनः इस जिले को देने, ग्राम सभा के प्रस्ताव के बाद ही निर्माण कार्यों को मंजूदी देने, बस्तर संभाग में पॉंचवी अनुसूची का पूर्ण रूप से पालन किए जाने, पेशा कानून का पालन बस्तर संभाग की सभी ग्राम पंचायतों में लागू करने एवं पंचायत राज संशोधन 1993 को पूर्ण रूप से लागू करने की मांग शामिल है।
कहीं माओवादी इशारे पर रैली तो नहीं ?
अंदरुनी इलाकों से इन मुद्दों को लेकर रैली में भेजने के पीछे नक्सलियों के इशारे की चर्चा आज नगर में रही। पुलिस ने सुबह से की सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए थे। एक युवक ने बताया कि कुछ लोगों को छोटेडोंगर से बस में पुलिस ने चढ़ने नहीं दिया। इससे लोग कम आए। बखरूपारा में बाजार स्थल पर सुबह से ही सशस्त्र जवानों की तैनाती की गई थी। एएसपी ओपी शर्मा की निगरानी में टीआई सनत सोनवानी, सब इंस्पेक्टर विजय चेलक एवं सुश्री ममता कहरा रैली के साथ चल रहे थे। कलेक्टोरेट के आसपास भी पुलिस के जवान तैनात थे। प्रतिनिधियों को कलेक्टोरेट में प्रवेश करने नहीं दिया गया। सादी वर्दी में जवान भी तैनात किए गए और रैली की विडियोग्राफी की गई। कलेक्टर टामनसिंह सोनवानी की ओर से डिप्टी कलेक्टर चॅंद्रकांत कौशिक ने ज्ञापन लिया। करीब डेढ़ साल बाद जिला मुख्यालय में इस तरह की रैली निकली है। इसके पहले जब भी रैली निकली है, तब भारतीय सेना का विरोध भी किया गया था।
अब तक छह करोड़ खर्च
निक्को जायसवाल कंपनी ने अमदेई घाटी में 1998 से अब तक माईनिंग लीज, पेड़ कटाई, पहुंच मार्ग एवं सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत किए गए काम पर करीब छह करोड़ रुपए खर्च किए हैं। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि 2005 में नारयणपुर एवं जगदलपुर में पॉंच बार जनसुनवाई हुई है और ग्राम सभा से इसके लिए प्रस्ताव पास हुआ है। अब तक 85 घनमीटर लकड़ी की कटाई हो चुकी है। बताया गया है कि निक्को कंपनी को 192. 25 हेक्टेयर की लीज मिली है। पहले चरण में 35. 74 हेक्टेयर की खदान शुरू किया जाना है। नवंबर-दिसंबर में पेड़ कटाई और सड़क निर्माण चली लेकिन 20 दिन काम के बाद नक्सली हिंसा के कारण काम बंद हो गया। इसमें करीब 300 मजदूर लगे थे।
कटाई और ढुलाई के लिए 35 लाख जमा
अमदेई घाटी में मिश्रित वन हैं और साल के वृक्षों की संख्या केवल 33 है। यहां 11516 पेड़ काटे जाने हैं। निक्को कंपनी को छोटेडोंगर में 35 हेक्टेयर जमीन दी गई है। कटाई के लिए 33 हेक्टेयर की मार्किंग की गई है। लकड़ी को छोटेडोंगर में ही रखा जा रहा है। बाद में इसे कोण्डागांव डिपो भेजा जाएगा। पेड़ों की कटाई एवं ढुलाई के लिए छह साल पहले कंपनी ने वन विभाग के पास 32 लाख रुपए जमा किए थे। अब ये लागत बढ़ गई है। मिश्रित वन में लौह अयस्क के खनन के लिए निक्को कंपनी को जगह दी गई थी। पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बाद वन विभाग की ओर से इसके लिए अनुमति दी गई। ये मंजूरी 2009 में मिली थी। इसके बाद से ही वन विभाग पेड़ों की कटाई की कोशिश कर रहा है लेकिन नक्सली धमकी के चलते कटाई नहीं हो पा रही है। बताते हैं कि वन विभाग ने वैकल्पिक पौधरोपण शुरू किया था। सभी प्रजातियों के पौधे धौड़ाई के कक्ष क्रमांक 2308 में लगाए गए। पांच साल पहले 21 हेक्टेयर में पौधरोपण किया गया था। 72 हेक्टेयर में वैकल्पिक पौधरोपण किया जाना है। अभी 51 हेक्टेयर में पौधरोपण और किया जाना है। माओवादियों ने 31 दिसंबर को कटाई और ढुलाई के काम में लगे टिप्पर, ट्रैक्टर एवं बोलेरो वाहनों को आग के हवाले कर दिया था और काम बंद करने कहा था। इसके बाद से यहां काम बंद हो गया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पांच साल पहले भी यहां कटाई शुरू हुई थी लेकिन नक्सलियों ने इसे रुकवा दिया था। बताते हैं कि यहां लगातार कटाई होने पर छह माह में काम खत्म हो जाएगा लेकिन माओवादी दहशत के कारण इसमें विलंब हो रहा है।

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