रायगढ़ के 25 किलोमीटर क्षेत्र में कैंसर के तत्व ,अध्यन में खुलासा ,उद्योगो ने किया जीना मुश्किल
0 सेरेना फाउंडेशन के अध्ययन में हुआ खुलासा, मानक से ज्यादा घातक तत्व घुल रहे हवा में
विनय पाण्डेय. रायगढ़
सेरेना फाउंडेशन की अध्ययन रिपोर्ट से एक बड़ा खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार जिले के 25 किमी के दायरे की हवा में कैंसर के जोखिम तत्व ज्यादा हैं। संस्था ने जिले के 21 स्पंज व स्टील कारखानों के आसपास बसे 306 गांवों का अध्ययन किया है। रिपोर्ट अनुसार इस दायरे में आने वाले करीब 1.8 लाख लोगों को सबसे ज्यादा कैंसर होने की आशंका है।
अध्ययन दल ने आसपास के गांवों के वायु प्रदूषण एसपीएम, आरएसपीएम और हवा में सल्फर और नाइट्रोजन की मात्रा का अध्ययन किया है। इसके अलावा हवा के अंदर घुलने वाले खनिज तत्व जो हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं जैसे लोहा, निकल, जिंक, मैग्निज, तांबा, क्रोमियम व बैंजा की मात्रा का अध्ययन किया है। ये घातक तत्व यदि हवा में मानक से ज्यादा होते हैं तो स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होते हैं। सबसे पहले शहर के दस गांव जिसमें गेजामुड़ा, काशीचुंवा, चिरईपानी, कोसमनारा, परसदा, भगवानपुर, नन्सियां, जिंदलगढ़ व उर्दना का अध्ययन किया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि हवा में लोहे का अवयव मानक मात्रा से अधिक मिला है इसलिए यहां के लोगों में कैंसर होने का खतरा सर्वाधिक है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यहां की हवा में कई अवयव हैं इसलिए कई प्रकार के कैंसर का खतरा हो सकता है। इसके पक्ष में यह भी कहा गया कि रायगढ़ की हवा में क्रोमियम, कैडमियम और निकल जैसे भारी तत्व हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है।
संवेदनशील क्षेत्र
रिपोर्ट में बताया गया है कि शहर के 10 किमी तक के दायरे में स्थित 75 गांवों में रहने वाली लगभग 2 लाख की आबादी पर इसका जोखिम ज्यादा है। इसके अलावा 11 से 25 किमी के दायरे में बसे करीब 1.8 लाख लोग जो 236 गांवों में बसे हैं वहां कैंसर का खतरा नहीं है। लेकिन इन क्षेत्रों में आस्थमा, चर्मरोग, खांसी, बलगम व अन्य स्वांस रोग की समस्या ज्यादा हो सकती है। कुल मिला कर शहर के 25 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले करीब 3 लाख 75 हजार लोगों के लिए यहां क ी हवा कई रोगों का कारण बन सकती है।
जहरीला तत्व
शहर के लिए चिंता का विषय यह है कि हवा में सल्फर-डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन-डाई-ऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड की अधिकता है। जो निश्चित रूप से इस्पात निर्माण से है। इसमें सल्फर-डाई-ऑक्साइड हवा द्वारा सांसों के जरिए शरीर के भीतर भी प्रवेश कर जाती है। हवा में घुले नाइट्रोजन आक्साइड पानी के साथ रासायनिक क्रिया कर नाइट्रिक एसिड भी बनाता है जो स्वास्थ के लिए काफी खतरनाक है।
कंपनियों द्वारा वायु प्रदूषण रोकने अपर्याप्त प्रबंध
रिपोर्ट में कहा गया कि जिन कंपनियों को उनके कारखानों से होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने का जितना प्रयास करना चाहिए था, उनके द्वारा नहीं किया गया। जिसके कारण हवा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है। हालांकि प्रशासन इन कंपनियों को कई बार अपने कारखानों में प्रदूषण रोधक यंत्र जैसे ईएसपी मशीन, फिल्टर बैग आदि लगाने के निर्देश देती रही है। फिर भी इन कंपनियों ने कभी भी इसपर ध्यान नहीं दिया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यहां के वातावरण में घुलता जहर लोगों के जीवन में भी जहर घोल रहा है।
जिम्मेदार कौन
रिपोर्ट के बाद यह सवाल उठ रहा है कि प्रदूषण को इस हद तक जाने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है। हालांकि यह अध्ययन 2008 में किया गया था और निष्कर्ष निकलने में दो वर्ष लग गए। लेकिन क्या इतने सालों में यहां का प्रदूषण कम हो गया या और ज्यादा बढ़ा ? प्रशासन इस रिपोर्ट के बाद भी अपनी आंखें बंद रखती है तो आने वाले दिनों में शहर में प्रदूषण अपने खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगा।
मैंने यह अध्ययन रिपोर्ट अभी नहीं देखी है, रिपोर्ट मंगाई गई है। जांच करके यह पता लगाया जाएगा कि यह रिपोर्ट कितनी सही है और कितनी गलत। सही पाए जाने पर जो उचित होगा किया जाएगा।
अलरमेल मंगई डी
कलेक्टर
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