टाटा ने सरकार से कहा-पैसे लौटाओ
Friday, September 9, 2016
(सीजी खब़र )
रायपुर | संवाददाता: टाटा ने छत्तीसगढ़ सरकार से अब अपने पैसे मांगे हैं. 19500 करोड़ की लागत से बस्तर के लोहंडीगुड़ा में अपना स्टील प्लांट बनाने की योजना को 10 साल बाद टाटा ने बाय-बाय कर दिया है. अब टाटा का कहना है कि उसने 72.09 करोड़ रुपये राज्य सरकार के पास ज़मीन अधिग्रहण के लिये जमा कराये थे. ये पैसे उसे वापस किये जायें. छत्तीसगढ़ सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि उन्हें टाटा का यह पत्र मिला है और सुप्रीम कोर्ट में सिंगूर के मामले में जो फैसला सुनाया गया था, उसे ध्यान में रखते हुये नियमानुसार कार्रवाई होगी.
2005 में टाटा ने बस्तर में स्टील प्लांट लगाने के लिये छत्तीसगढ़ सरकार के साथ करार किया था. बस्तर के दस गांव टाकरागुड़ा, कुम्हली, बड़ांजी, बेलर, सिरिसगुड़ा, बड़ेपरौदा, दाबपाल, धूरागांव, बेलियापाल और छिंदगांव की जमीन का अधिग्रहण किया जाना था. लेकिन ग्रामीण इसके लिये तैयार नहीं हुये. ग्राम सभाओं में आदिवासियों ने इस प्लांट के लिये जमीन देने से साफ इंकार कर दिया. इसके बाद बंदूक की नोक पर सारे नियम कानून को ताक पर रखते हुये सरकार ने बस्तर में आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण शुरु किया.
सरकार का दावा है कि 1764 हेक्टेयर जमीन के लिये 1707 खाताधारों से जमीन लेने की प्रक्रिया शुरु की गई थी और कलेक्टोरेट में विशेष सभा कर के लगभग 70 फीसदी लोगों को मुआवजा भी बांटा गया. लेकिन 10 साल बाद भी सरकार टाटा कंपनी को जमीन सौंपने में असफल रही और टाटा कंपनी को बस्तर में आवंटित लौह खदान निरस्त हो गई. इसके बाद टाटा ने हाथ खड़े कर लिये.
हालांकि टाटा कंपनी ने माओवादियों के खिलाफ चलाये गये सलवा जुड़ूम में भी सरकार की मदद की थी. इसके अलावा सीएसआर मद से कई काम भी शुरु किये थे. इन सबमें करोड़ों रुपये खर्च हो गये. लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा सलवा जुड़ूम को बंद करने और इस मामले पर सरकार की कड़ी आलोचना के बाद टाटा के कदम पर भी सवाल खड़े हुये थे. टाटा के लेकर माओवादियों ने भी भारी दबाव बनाया था और कंपनी सुरक्षा संबंधी मुद्दों को लेकर भी आशंकित थी.
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Friday, September 9, 2016
(सीजी खब़र )
रायपुर | संवाददाता: टाटा ने छत्तीसगढ़ सरकार से अब अपने पैसे मांगे हैं. 19500 करोड़ की लागत से बस्तर के लोहंडीगुड़ा में अपना स्टील प्लांट बनाने की योजना को 10 साल बाद टाटा ने बाय-बाय कर दिया है. अब टाटा का कहना है कि उसने 72.09 करोड़ रुपये राज्य सरकार के पास ज़मीन अधिग्रहण के लिये जमा कराये थे. ये पैसे उसे वापस किये जायें. छत्तीसगढ़ सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि उन्हें टाटा का यह पत्र मिला है और सुप्रीम कोर्ट में सिंगूर के मामले में जो फैसला सुनाया गया था, उसे ध्यान में रखते हुये नियमानुसार कार्रवाई होगी.
2005 में टाटा ने बस्तर में स्टील प्लांट लगाने के लिये छत्तीसगढ़ सरकार के साथ करार किया था. बस्तर के दस गांव टाकरागुड़ा, कुम्हली, बड़ांजी, बेलर, सिरिसगुड़ा, बड़ेपरौदा, दाबपाल, धूरागांव, बेलियापाल और छिंदगांव की जमीन का अधिग्रहण किया जाना था. लेकिन ग्रामीण इसके लिये तैयार नहीं हुये. ग्राम सभाओं में आदिवासियों ने इस प्लांट के लिये जमीन देने से साफ इंकार कर दिया. इसके बाद बंदूक की नोक पर सारे नियम कानून को ताक पर रखते हुये सरकार ने बस्तर में आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण शुरु किया.
सरकार का दावा है कि 1764 हेक्टेयर जमीन के लिये 1707 खाताधारों से जमीन लेने की प्रक्रिया शुरु की गई थी और कलेक्टोरेट में विशेष सभा कर के लगभग 70 फीसदी लोगों को मुआवजा भी बांटा गया. लेकिन 10 साल बाद भी सरकार टाटा कंपनी को जमीन सौंपने में असफल रही और टाटा कंपनी को बस्तर में आवंटित लौह खदान निरस्त हो गई. इसके बाद टाटा ने हाथ खड़े कर लिये.
हालांकि टाटा कंपनी ने माओवादियों के खिलाफ चलाये गये सलवा जुड़ूम में भी सरकार की मदद की थी. इसके अलावा सीएसआर मद से कई काम भी शुरु किये थे. इन सबमें करोड़ों रुपये खर्च हो गये. लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा सलवा जुड़ूम को बंद करने और इस मामले पर सरकार की कड़ी आलोचना के बाद टाटा के कदम पर भी सवाल खड़े हुये थे. टाटा के लेकर माओवादियों ने भी भारी दबाव बनाया था और कंपनी सुरक्षा संबंधी मुद्दों को लेकर भी आशंकित थी.
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