September 7, 2016 Bhumkal
अपना विकास अपने पास रखो… हमें हमारा जंगल और गाँव
लौटा दो.
*** सेठों और बिचौलियों के फायदे के नाम पर विकास के बहाने रौंदे जा रहे गाँव कुहचे जिला कांकेर से एक पत्र
** पत्र लिखा है श्री राकेश कुमार दर्रो (एम.ए. जनसंचार) महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रिय हिन्दी विश्व विद्यालय वर्धा में अध्ययनरत छात्र ने .
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अंतागढ़ विकासखंण्ड मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर दुर ग्राम कुहचे जो जिला काँकेर से 90 किमी पर स्थित है | जहाँ पर 30 से 35 गोड आदिवासी परिवार निवास करते है ।
गाँव में आदिवासियों की तुलना में गैर आदिवासियों की संख्या न के बराबर है | मेरे गाँव में अब भी गाँव के प्रधान को महत्व दिया जाता है | गाँव के हर समस्याओं पर सारे गाँव के लोग मिलकर निर्णय लेते है । गाँव के सारे लोगो से जब तक सलाह नही कर ले, तब तक गाँव का प्रधान किसी प्रकार से भी निर्णय नही ले सकता ।
गाँव के लोग हमेशा से ही एक दुसरे के पूरक है | हर कार्य को मिल जुल कर करते है , चाहे वह शादी ब्याह की बात हो या खेतो में कार्य करने की बात हो | मेरे गाँव की एक अलग ही परम्परा है और उन्ही परम्परा रीति – रिवाजों से ही हम आदिवासियों को एक अलग पहचान मिली है ।
शुरूआत में गाँव घनघोर जंगल से घिरा था | धीरे – धीरे जंगल मैदान में बदला और मैदान खेत में और खेती करना शुरू हुआ | गाँव में सिर्फ धान की खेती ही किया जाता है । आज भी गाँव के आधे से ज्यादा परिवारो की रोजी – रोटी कृषि और वन से चलता है ।
गाँव में मुलभूत सुविधा जैसे पानी , बिजली और सडक तो है पर गाँव के लोगो की आर्थिक स्थिति खराब है । गाँव के आस – पास कोई सिचाई साधन न होने के काऱण मानसून पर निर्भर रहना पडता है और इसी वजह से साल में सिर्फ एक बार खेती किया जाता है | साल में एक बार ही खेती होने के कारण गाँव के लोग आस – पास के जंगलो पर निर्भर रहते है । जो भी जंगल से प्राप्त होता है , जैसे – चार, महुआ, टोरी, हर्रा- बेहडा, कूसुम, सरई, बोडा, चरौटा आदि जिसे इकट्ठा कर गाँव के आस – पास होने वाली सप्ताहिक हाट – बाजार में बिक्री के लिये ले जाते है ।
जो आय प्राप्त होता है उससे दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुएँ खरीद कर लाते है । इस तरह लोग अपने परीवार का पालन – पोषण करते है | अगर हम शिक्षा व्यवस्था की बात करे तो गाँव के जनसंख्या अनुसार पाँचवी कक्षा तक शिक्षा व्यवस्था है, और आगे कि पढाई के लिऐ दूसरे गाँव में जाना पडता है ।
गाँव के अधिकतर युवा हायर सेकेंडरी स्कुल तक ही पढे लिखे है और बेरोजगार है ।
आदिवासी रीति-रिवाजों को जहाँ इस युग में अंधविश्वास माना जाता है वह रीति – रिवाज , परम्परा आज भी मेरे गाँव में विद्यमान है | हमारे गाँव में बखूबी उन रीति-रिवाजों का पालन करते है और प्रकृति के अनुसार अपने जीवन शैली को ढाल कर इस प्रकृति से प्राप्त होने वाली सभी वस्तुओं का सही स्तेमाल किया जाता है |
इसी लिऐ हमारे आदिवासी समुदाय को प्रकृति रक्षक कहाँ जाता है । हमारे आदिवासियों में इस प्रकृति की रक्षा करने की कला बखूबी है | जिसका उदाहरण हम हमारे आदिवासी क्षेत्रो में देख सकते है ।
आदिवासी समुदाय देश के जिन हिस्सो में भी निवास करते है उन सभी क्षेत्रो के पर्यावरण इको सिस्टम संरक्षित है और इसी लिए प्रकृति ने उन क्षेत्रो पर अथाह प्राकृतिक संसाधनो से आदिवासियों को नवाजा है । विशाल जंगल और विशाल खनिज सम्पदा जैसे – लोहा , बाक्साईड ,अभ्रक , कोरण्डम , यूरेनियम , कोयला इत्यादि जो हमारे आदिवासी क्षेत्रो के भू – गर्भ में समाहित है ।
जिसे आज कार्पोरेट जगत के लोग चंद पैसो के लिऐ सरकार के साथ मिल कर हम आदिवासियों से हडपने के लिऐ तरह – तरह के हथकंडे अपना रहे है । जिसका कई उदाहरण सामने है |
जैसे हाल ही में झारखण्ड, उड़ीसा और हमारे छत्तीसगढ़ में ऐसे कई घटनाओ़ को सरकार अंजाम दे चुका है | जिससे हमारे आदिवासी समुदाय के सामाजिक, आर्थिक, नैतिक, न्यायिक, सभी पहलूओ़ को ठेस पहुंचा है जिसका आदिवासी समुदाय घोर निंदा करता है ।
वर्तमान सरकार ने हमारे आदिवासी समुदाय के साथ जानवरों से भी बदतर व्यव्हार किया है और इसके पीछे हम आदिवासियों के जल, जंगल, और जमीन पर गड़ी उनकी टेढ़ी नजर है , जिसे हर कीमत पर सरकार और उद्योगपति हमसे छिनना चाहते है | यही कारण है कि हमारे आदिवासी सरंक्षण के कानूनों का संशोधन किया जा रहा है ताकि उनका कार्य और भी असानी हो । आदिवासी कानूनों का अनदेखा और संशोधन के कारण लोगो के घर- घरौदें छिने जा रहे है |
हम इसका उदाहरण सरगुजा जिले के घटबर्रा गाँव को देख सकते है । जहाँ पर छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा आदिवासियों के पारम्परिक भूमि ( नवटोर ) पर वन अधिकार को खत्म कर आदानी को कोयला उत्थखनन के लिऐ दिया गया । जिससे यह साबित होता है कि सरकार द्वारा आदिवासियों से ज्यादा आदानी जैसे बड़े कार्पोरेट को महत्व दिया जाता है |
दूसरा और ताजा उदाहरण बाघमाडा सोना खान को देख सकते है । जहाँ पर उच्च गुणवक्ता वाले सोना पाया जाता है जहाँ छत्तीसगढ़ सरकार ने 64 अरब से भी अधिक कीमत वाला सोने के खान को महज 105 करोड़ में वेदांता प्राईवेट कम्पनी को दे कर राज्य का घाटा करवाया है ।
वहीं दूसरी ओर आदिवासियों की सुरक्षा के नाम पर पूरे प्रदेश में लाखों पैरा मिलिट्री फोर्स के जवान तैनात कर उन्हें उद्योगपतियों के लिए जबर्दस्ती जल जंगल और जमीन खाली कराने के काम में लगाया गया है | जब आदिवासियों द्वारा अपने अधिकार के लिए लोकतान्त्रिक अधिकार के तहत विरोध हो तो जवानो के द्वारा आदिवासियों के साथ अत्याचार करवाना आम बात हो गया है ।
हत्या कर उसे मुठभेड़ का नाम देना , फर्जी गिफ्तारी , डरा धमका कर फर्जी सरेंडर और महिलाओं के साथ दुराचार सामान्य घटना हो गया है .
बीते दिनो बस्तर के दन्तेवाडा इलाके में जवानो के द्वारा आदिवासी महिलाओं के स्तनो को निचोड कर जो घिनौना हरकत को अंजाम दिया गया जिससे मानवता शर्मशार हुई है । जिसका आदिवासी समुदाय कभी कल्पना भी नही कर सकता था यह सारे हथकंडे हमारे आदिवासियों के जल ,जंगल और जमीन को छिनने के लिऐ अपनाया जा रहे है ।
देश के जिन हिस्सो में भी आदिवासी समुदाय निवास करते है उन सभी क्षेत्रो में आदिवासियों के विकास के लिऐ पाँचवी अनुसूची लागू किया गया है । ताकि आदिवासियों का संरक्षण और विकास हो सके । इस कानून में आदिवासियों के रीति – रिवाज, परम्परा को विषेश ध्यान में रखा गया है ताकि आदिवासी समुदाय अपने तौर – तरिके से हर मशले का स्थानीय स्तर पर निपटारा कर सके ।
पर आज आदिवासी क्षेत्रो पर पाँचवी अनुसूची का खूला उल्लघन कर आदिवासियों के द्वारा बनाऐ व्यवस्था को तोड कर हर कार्य को “पाँचवी अनुसूची” के विपरित किया जाता है और कुछ इसी तरह मेंरे गाँव में भी हुआ है । राज्य सरकार के द्वारा भिलाई स्टील प्लांट सहित नीको जायसवाल जैसे प्राईवेट कम्पनियो को हमारे क्षेत्र के लौह अयस्क के भण्डारो को लीज में दिया गया है उन्ही में से एक रावघाट लौह अयस्क परियोजना है
जहाँ पर उच्च गुणवक्ता का लौह अयस्क पाया जाता है । जिसके निर्यात के लिये रावघाट रेल लाईन परियोजना बनाया गया है ।
इस रेल लाईन परियोजना के शुरूआत से ही आदिवासी कानून का उल्लंघन और हम आदिवासियों के साथ खिलवाड किया गया । आदिवासियों के हित में बना “पेसा कानून 1996” कहता है कि आदिवासी इलाके में कोई भी कार्य आदिवासियों के सहमति के बिना नही हो सकता | जिसके लिऐ उसे ग्राम सभा से इजाजत की जरूरत होती है । ग्राम सभा के इजाजत के बगैर सरकार का कोई भी करार असंवैधानिक करार होता है | फिर भी हमारे आदिवासी क्षेत्रो में कानून का कोई महत्व ही नही है , बल्कि उल्टे कानून का गलत इस्तेमाल कर हमें ही कानून का धौस दिखाया जाता है .
सरकार आदिवासी क्षेत्रो में किस तरह से मन मर्जी अपना राज चलाकर आदिवासियों के साथ खिलवाड कर रही है इसका जीता – जागता उदाहरण मेरा गाँव है ।
मेरे गाँव में कानून का गलत इस्तेमाल कर असंवैधानिक तरीके से पैरामिलिट्री फोर्स का कैंप बसाया गया है | जिसका हम विरोध करते है क्योंकि सरकार हमारे आदिवासी क्षेत्रो में फोर्स को लाकर हम आदिवासियों के साथ सुरक्षा के नाम पर अत्याचार करवा रहा है । जिसका उदाहरण हम आदिवासी क्षेत्रों में देख सकते है जैसे आदिवासी महिलाओ के साथ बलात्कार , निर्दोष लोगो को घर से निकाल कर नक्सली बताना, फर्जी नक्सली मुठभेड की कहानी गढना , आदिवासियों को गाँव से भगाना आदि – आदि । ऐसे कई मामले है जो मीडिया और सरकारी खौफ के कारण लोगो के सामने नही आ पाते |
जिस तरह सुदूर आदिवासी क्षेत्रो में पैरा फोर्स से उस क्षेत्र के लोगो को जो परेशानियाँ हो रहा है उसी तरह मेरे भी गाँव में सीमा सुरक्षा बल फोर्स के कैंप बनने से हो रहा है । फोर्स के आने से पहले गाँव में सुख – शांति और चहल – पहल थी अब वो नही रहा | गाँव के लोगो के मन में तरह – तरह की धारणाएं और दहशत बना रहता है । गाँव में बीएसएफ फोर्स का कैम्प नही था तब गाँव की महिलाएँ अकेली ही जंगल, खेत, बाजार चले जाती थी पर अब गाँव की महिलाएँ अकेली कही भी बाहर नही जाती । स्वतंत्र घुमने वाली महिलाएँ आज चार दिवारी के पीछे रहने के लिऐ मजबूर है ।
मेरे गाँव में एक तरफ जमीन की कमी है और दूसरी तरफ चारागाह की जमीन पर गाँव वालो से सलाह – मसौरा किए बिना असंवैधानिक तरीके कैंप बसाया गया है । 17 – 18 एकड के आस – पास गाँव के जमीन को ग्राम सभा के बैगेर इजाजत के ही एस एसबी को मुफ्त में देकर सरकार द्वारा “वन अधिकार अधिनियम 2006” कानून का खुला उल्लंघन किया गया है ।
आज गाँव के जिस जगह पर कैंप बसाया गया है उस जगह पर कैंप बसने से पहले जंगल था और उसी जंगल के एक छोर में गाँव की आदर्श देवी हमारी मावली माता थी और दूसरे छोर पर खेल का मैदान, जिसे कटिले तारो से घेर कर कैम्प का हिस्सा बनाया गया । अब गाँव में न तो खेल मैदान रहा और न ही जंगल |
हम गाँव वालो को खेल मैदान के साथ – साथ जंगल और हमारी आराध्य देवी मावली माता को भी हमसे छिन लिया गया । कैंप बसने के बाद उस जगह पर आना जाना भी बन्द हो गया है जिससे हमारी देवी मावली माता का पूजा – पाठ बन्द हो गया है ।
एक तरफ देश को धर्म निर्पेक्ष की दृष्टि से देखा जाता है जहाँ पर सभी धर्म समान दिया जाता है यहाँ तक की अपने – अपने धर्म का प्रचार – प्रसार करने की स्वतंत्रता प्रदान किया गया है पर हमारे आदिवासी संस्कृति, रीति – रिवाज का अवहेलना किया जा रहा है । जिस जंगल को काट कर आज कैंप बसाया गया है उस जंगल से गाँव के लोग दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली चीजो का निस्तार करते थे जैसे दोना-पत्तल ,दातून ,बोडा , चार , तेन्दू , मसरूम , साल के बीज , तेन्दू के पत्ते इमारती लकडी , चुल्हा जलाने के लिऐ आदि अब ये सारे चीज हम गाँव वालो से छिन गया । एक तरफ जंगल कटने से गाँव के महिलाओ को शौच जाने के लिऐ परेशानी होती है और दूसरी तरफ महिलाएँ खुले में शौच करने से अब कतराती है क्योकि अब जंगल नही रहा और गाँव में अब चारागाह के लिऐ जमीन भी नही है | जिससे बरसात के दिनो में हमें हमारे मवेशियो को चराने के लिऐ दिक्कतो का सामना करना पड रहा है ।
कभी गाँव के जंगल का मालिक हम गाँव वाले थे पर आज हमसे ही जंगल को छिन लिया गया एक तो कैंप के बहाने और दूसरा रेल लाईन के बहाने । मेरे गाँव के बीचो – बीच 3 से 4 कि.मी. का दायरा का जमीन रेल लाईन परियोजना में चला गया है और उस 3-4 कि.मी.के दायरे में सबसे अधिक घना जंगल था । जिस जंगल को असंवैधानिक तरीके से काट कर हमसे छिन लिया गया । काटे गऐ जंगल में सबसे ज्यादा हमारे आदिवासी धरोहर साल ( सरई ) वृक्ष था जिसे हम देव तुल्य मानते है और उससे निकलने वाली तरल पदार्थ जब सुख कर ठोस हो जाता है तब हम उसका प्रयोग अपने देवी – देवताओ को अर्पण करने के लिऐ करते है और साथ ही हमारे आदिवासी समुदाय उस ठोस पदार्थ को कई प्रकार के बीमारियों के इलाज करने में प्रयोग करते है.
साथ ही साथ बरसात के दिनो में साल वृक्ष के नीचे छोटे – छोटे मशरूम निकल आते है जिसका सब्जी बनाया जाता है जिसे हम आदिवासी लोग “बोडा ” से जानते है । जंगल की कटाई होने के कारण गाँव में साल वृक्ष बहूत ही कम संख्या में बचे है जिससे भविष्य में हमें परेशानियों का सामना करना पड सकता है । साल वृक्ष के कई विशेषताएँ है जिसके कारण ही वह आदिवासी समुदाय का धरोहर है और उन्ही विशेषताओ में से एक साल का वृक्ष लम्बा होता है और लम्बा होने के कारण कुछ पक्षियां तना में छेद करके घोसला बनाकर रहती है | उनमें से एक तोता पक्षी है जो साल के वृक्ष पर अपना घोशला बनाकर रहता है । पर अब पेड कट जाने से तोते गाँव के आस – पास भी नजर नही आते । हमारे साथ – साथ पक्षीयों को भी परेशानियों का सामना करना पड रहा है ।
गाँव में अब जंगल का नामो निशान नही है । प्रकृति के गोद में बसने वाला मेरा गाँव अब प्रकृति से कही दूर जा रहा है । हरा – भरा दिखने वाला मेरे गाँव में अब सिर्फ खूले आसमान ही रह गया है । पक्षियों की मधूर आवाज अब सुनने को भी नही मिलता । गाँव के आस – पास जब जंगल था तब खेतो में अक्सर बगूले और अन्य पक्षीयाँ दिखती थी जो फसल में लगने वाली किटो को खा जाते थे जिससे फसलो में बीमारी कि सम्भावना कम होती थी पर अब खेतो में बहूत ही कम संख्या में पक्षीयाँ दिखते है जिससे खेत का आधा फसल कीडों के कारण खराब हो जाता है .
हमारे आदिवासी समुदाय के लोगो की जीवन जंगल के बिना अधूरा सा है | जीवन का हर कडी जंगल से ही जुडा होता है इसी लिए हमारे आदिवासी समुदाय के लोग जंगल के हर पेड हर पत्तो की उपयोग जानते है आदिवासी समुदाय के लोगो की जिन्दगी पहाड, जंगलो के बिना अधुरा है तभी तो अक्सर जंगलो पहाडो पर घुमते नजर आते है | मेरे गाँव में भी लोग ज्यादातर बीमारियों का इलाज घर में ही जडी – बूटियों के सहारे करते है और जडी – बुटियाँ जंगलो में पाया जाता है | इसी लिये जब भी फुरसत के पल मिलता है तो जंगल में अक्सर घुमने के लिऐ जाते है और जडी – बुटीयों का पहचान कर अपने साथ ले आते है | पर अब गाँव के आस – पास जंगल का कोई नामो निशान नही है जिससे घूमना – फिरना बन्द हो गया है | जंगल कटने से गाँव के आस – पास पाऐ जाने वाली औषधी , जडी – बुटीयाँ भी अब नष्ट हो गए ।
गाँव के जंगल को एक तरफ कैंप के नाम पर असंवैधानिक तरीके से काटा गया और दूसरी तरफ रेल लाईन के नाम पर .
विकास के नाम पर किये इस अत्याचार ने मेरे गाँव के नक्शा को ही बदल कर रख दिया । रेल लाईन परियोजना के नाम पर भारी धोखा धडी किया गया है । गाँव में जिन लोगो के पट्टे की जमीन को रेल लाईन के लिए आबंटित किया गया है उन सारे जमीन लोगो के जमीनो को कौड़ियों के भाव में खरीद कर मेरे ही गाँव के नही बल्कि क्षेत्र के सभी आदिवासियों को सरकार के द्वारा उल्लू बनाया गया है ।
सरकार द्वारा आदिवासियों के 1.30 एकड जमीन को 50,000 में खरीद कर आदिवासियों को ठगा गया है । सरकार ने हम आदिवासीयों को उल्लू बनाकर रखा है हम आदिवासीयों का भोलापन और चुप्पी का फायदा उठाया है ।
मेरा गाँव अंतागढ विकाशखण्ड से महज दो कि.मी. दुर है और मेरे गाँव में बडे पैमाने पर कानूनो का उल्लघन और रेल लाईन के नाम पर हम गाँव वालो को ठगा गया है तो आप सोच कर देखिऐ की सुदूर क्षेत्रो में बसने वाले गाँवो की क्या स्थिति होगी । उन क्षेत्रो पर तो कानूनी प्रकिया सिर्फ कागजो पर होता होगा ।
जैसे की हाल ही में जिले के कलेक्टर महोदिया नें चारामा ब्लाक के एक गाँव में फर्जी ग्राम सभा कराके गाँव के स्कूल, मैदान और मरघट ( मुर्दो को दफनाने की जगह ) के जमीन को बिजली विभाग को देकर कानून का खूला उल्लघन किया है | सरकार भी इसका समर्थन करता है तभी तो आज तक आंखो पर पट्टी बांध कर कुर्सी का मजा ले रहा है । एक तरफ आदिवासी हित की बात की जाती है और दूसरी तरफ आदिवासियों के ही खून को चूसा जाता है ।
ये कैसा देश है जहाँ पर देश के मालिको को ही नौकर बनाने की साजिश रचा जा रहा है उन्ही साजिशो में से एक जिसमें आदिवासियों को मन का लडडू खिलाया जा रहा है जिसका साक्ष्य आदिवासी क्षेत्रो को 5वी अनुसूची से जोडकर भी 5वी अनुसूची का पालन न करना । देश के जिन हिस्सो में भी आदिवासी संरक्षण के लिऐ पाँचवी अनुसूची को लागू किया गया है उन सभी क्षेत्रो में पाँचवी अनुसूची का घोर उल्लघन किया जा रहाँ है । जिस पर सरकार भी चुप्प बैठा है सरकार हमारे आदिवासी क्षेत्रो में पाँचवी अनुसूची का पालन कराने के बजाय कानून का ही उल्लघन करता है इस लिऐ अनुसूचीत क्षेत्रो में अपने दलालो को पोस्टींग के बतौर भेजता है ताकी उनके दलाल लोगो को गुमराह करके अपने पद और चमचागिरी के बल बुते लोगो को घुटना टेकने पर मजबूर कर सके ।
जैसे हाल ही में अंतागढ विकास खण्ड से 5 किमी दुर ग्राम कलगाँव में फर्जी ग्राम सभा कराके क्षेत्र के एसडीएम महोदया ने अपने पद और पुलिसिया ताकत के बल पर गाँव वालो को जोर जबर – दस्ती कर ग्राम सभा पंजी पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर किया, जब गाँव के लोग हस्ताक्षर करने से मना किए तो थाना से पुलिस बुलवाई जिससे गाँव के लोगो में दहशत का माहौल पैदा हो गया और मजबूरन गाँव वालो को ग्राम सभा पंजी पर हस्ताक्षर करनी पडी और अंत में जाते समय एसडीएम महोदया अपने साथ ग्राम सभा पंजी को भी ले गई |
इन सब के पीछे बीएसपी के टाऊनशीप भूमि अधिग्रहण बताया जाता है । अगर इस तरह से उच्च पद पर रहने वाले लोग ही चम्मचा गिरी करगे तो आम आदमी का क्या होगा । ऐसे में तो कानून से लोगो का पूरा भरोसा ही उठ जाऐगा जैसे की कानून के पन्नो पर अनुसूचित क्षेत्रो को 5वी अनुसूची का दर्जा दिया गया है पर हमें पाँचवी अनुसूची के प्रावधानो की सम्पूर्ण जानकारी न होने के कारण अधिकारी वर्ग अपने कुर्सी और चमचागिरी के बल बूते कानून का खूला उल्लघन करते हूऐ हर कार्य को कानून के विपरीत करते है ।
इन तमाम घटनाओ को देखने से अब ऐसा लगता है मानो बस्तर विकास की धारा से कोसो दूर है क्योकि कार्पोरेट जगत के लोग ही बस्तर और बस्तर के आदिवासियों को लुट कर अपने परिवार वालो का पेट भरने मे लगे हूऐ है ।
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(लेखक:- राकेश कुमार दर्रो (एम.ए. जनसंचार) महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रिय हिन्दी विश्व विद्यालय वर्धा में अध्ययनरत छात्र है…)
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