किसके खिलाफ है यह ललकार और हुंकार:, बस्तर में अग्नि की रैली .
** जगदलपुर में कल एक बडी रैली में जनप्रतिनिधियों ने दूरी बनाये रखी.
** रैली की केन्द्रित आवाज़ शांतिकामियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ .
** रैली में अधिकतर पूर्व सामाजिक एकतामंच और सलवाजुडूम नेताओं और पुलिस अधिकारियों का जमघट.
**
किसी भी डेमोक्रेटिक पहल का स्वागत ही किया जाना चाहिए वो भी एसे वक्त में जब बस्तर में सैन्य हल के अलावा कोई पहल नहीं की जा रही हो.
महत्वपूर्ण यह है कि रैली की पहल किसने की, नाम न लिया जाये तोभी सौ फीसदी अगुआ वही है जो लगातार बस्तर में अशांति और आदिवासियों के संवैधानिक हक़ के लिये काम करने वाले कार्यकर्ताओं को धमकाने और मारपीट करते रहे है. सलवाजुडूम और सामाजिक एकता मंच के कारनामों से कौन वाकिफ़ नही है .
सलवा जुडुम को सुप्रीम कोर्ट ने और सामाजिक एकता मंच को समाज में बदनाम होने के डर से केन्द्रीय ग्रहमंत्री के रायपुर प्रवास से एक दिन पहले भंग कर दिया था.
यह कौन नहीं जानता कि यह सारे संगठन पुलिस की पहल पर तैयार किये गये, पुलिस की पहल में कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन जब यह संगठन गैरकानूनी और भयावह काम करेंगे तो उन्हें रोकेगा कौन.
रैली के एक दिन पहले है इनके राष्ट्रीय संयोजक ने पत्रकार प्रभात सिंह के साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया और पुलिस के थाना प्रभारी ने कोई कार्यवाही के बजाये उल्टे प्रभात सिंह को ही धमकाया.
रैली में वक्ताओं ने माओवादियों के खिलाफ कम सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ ज्यादा कहा गया ,उन्हें कहा गया कि इनका केंद्र दिल्ली से संचालित होता है और कहा कि इनका पावर पाईंट दिल्ली में है, जहां से इसका फेसबुक और वाट्सप से संचालन हो रहा है, मानो कि दिल्ली पाकिस्तान की राजधानी हो ,वे अच्छी तरह जानते है कि दिल्ली हो या रायपुर ,बस्तर इसका केन्द्रीय प्रभाव उन पर ही पडता है .
दिल्ली या रायपुर की बात बार बार इसलिए भी कहते है जिससे कि उन्हें बाहरी सिद्ध किया जा सके.
क्या उन्हें यह बताने की जरूरत है कि खुद पुलिस के आला अधिकारी ,बीएसएफ, सीआरपीएफ, स्थानीय प्रशासन और माओवादियों के बड़े नेता कहां से आते है, यह बाहरी अंदर का पाखंड बंद करिए.
अग्नि अगर माओवादियों का विरोध करना चाहता है तो उन्हें जनतांत्रिक संस्थाओं ,संवैधानिक इंस्टीट्यूशन , मानवाधिकार का सम्मान करना चाहिए और हमले की राजनीति बंद करनी होगी.
****
** जगदलपुर में कल एक बडी रैली में जनप्रतिनिधियों ने दूरी बनाये रखी.
** रैली की केन्द्रित आवाज़ शांतिकामियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ .
** रैली में अधिकतर पूर्व सामाजिक एकतामंच और सलवाजुडूम नेताओं और पुलिस अधिकारियों का जमघट.
**
किसी भी डेमोक्रेटिक पहल का स्वागत ही किया जाना चाहिए वो भी एसे वक्त में जब बस्तर में सैन्य हल के अलावा कोई पहल नहीं की जा रही हो.
महत्वपूर्ण यह है कि रैली की पहल किसने की, नाम न लिया जाये तोभी सौ फीसदी अगुआ वही है जो लगातार बस्तर में अशांति और आदिवासियों के संवैधानिक हक़ के लिये काम करने वाले कार्यकर्ताओं को धमकाने और मारपीट करते रहे है. सलवाजुडूम और सामाजिक एकता मंच के कारनामों से कौन वाकिफ़ नही है .
सलवा जुडुम को सुप्रीम कोर्ट ने और सामाजिक एकता मंच को समाज में बदनाम होने के डर से केन्द्रीय ग्रहमंत्री के रायपुर प्रवास से एक दिन पहले भंग कर दिया था.
यह कौन नहीं जानता कि यह सारे संगठन पुलिस की पहल पर तैयार किये गये, पुलिस की पहल में कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन जब यह संगठन गैरकानूनी और भयावह काम करेंगे तो उन्हें रोकेगा कौन.
रैली के एक दिन पहले है इनके राष्ट्रीय संयोजक ने पत्रकार प्रभात सिंह के साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया और पुलिस के थाना प्रभारी ने कोई कार्यवाही के बजाये उल्टे प्रभात सिंह को ही धमकाया.
रैली में वक्ताओं ने माओवादियों के खिलाफ कम सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ ज्यादा कहा गया ,उन्हें कहा गया कि इनका केंद्र दिल्ली से संचालित होता है और कहा कि इनका पावर पाईंट दिल्ली में है, जहां से इसका फेसबुक और वाट्सप से संचालन हो रहा है, मानो कि दिल्ली पाकिस्तान की राजधानी हो ,वे अच्छी तरह जानते है कि दिल्ली हो या रायपुर ,बस्तर इसका केन्द्रीय प्रभाव उन पर ही पडता है .
दिल्ली या रायपुर की बात बार बार इसलिए भी कहते है जिससे कि उन्हें बाहरी सिद्ध किया जा सके.
क्या उन्हें यह बताने की जरूरत है कि खुद पुलिस के आला अधिकारी ,बीएसएफ, सीआरपीएफ, स्थानीय प्रशासन और माओवादियों के बड़े नेता कहां से आते है, यह बाहरी अंदर का पाखंड बंद करिए.
अग्नि अगर माओवादियों का विरोध करना चाहता है तो उन्हें जनतांत्रिक संस्थाओं ,संवैधानिक इंस्टीट्यूशन , मानवाधिकार का सम्मान करना चाहिए और हमले की राजनीति बंद करनी होगी.
****
No comments:
Post a Comment