कांकेर: साहूकारों के भरोसे किसान!
Wednesday, September 21, 2016
( Cg khabar )
कांकेर | अंकुर तिवारी:
आदिवासी बहुल कांकेर के किसान पैसे के लिये साहूकारों के पास जाने के लिये बाध्य हो रहें हैं.इसका कारण है कि उनमें से कईयों को पिछले साल का सूखा राहत अभी तक नहीं मिल पाया है. कहते है कि कोई मदद तभी कारगार साबित होती है जब मिले समय पर, वक्त पर नहीं मिली मदद किसी काम की नहीं होती. छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के किसानों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है. सूखे की मार झेल रहे किसानों का बुरा हाल है, मुआवजा के इंतज़ार में किसान बेहद परेशान है.
पिछले साल मौसम की बेरूखी के चलते धान की फसल अच्छी नहीं हुई, इसके कारण किसानों का जन-जीवन प्रभावित हुआ है. साथ ही सरकार की ओर से मिल रहे मुआवजे में अनियमितता बरती जा रही है.
नरहरपुर विकासखंड के मावलीपारा गांव के किसानों ने जनदर्शन में पहुंच कर कलेक्टर को ज्ञापन सौप कर शिकायत दर्ज कराई है. किसानों के मुताबिक यह पहली दफा नहीं जब कलेक्टर से सूखा राहत राशि की मांग की गई है.
किसानों का आरोप है कि गांव के सिर्फ गिने चुने लोगों को ही सूखा राहत का मुआवजा दिया गया है. जिन किसानों की फसल सूखे से पूरी तरह बर्बाद हो गई है. उऩ्हें शासन-प्रशासन से फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है. कृषक आज भी मुआवजा पाने के लिए पटवारी के चक्कर लगा रहें हैं. सूखा राहत राशि के वितरण में प्रशासन की तरफ से भेदभाव किया जा रहा है.
प्रभावितों की सूची में नाम होने के बाद भी किसानों को मुआवजा राशि का भुगतान नहीं किया गया है. धान की फसल खराब हो जाने के बाद किसानों की आर्थिक दुर्दशा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. सूखा राहत का मुआवजा पाने के लिए किसान क्षेत्र के पटवारी से लेकर बड़े प्रशासनिक अधिकारियों तक गुहार लगा चुकें है, लेकिन नतीजा सिफर रहा है.
सूखा राहत राशि वितरण में प्रशासनिक सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे एक साल गुजर जाने के बाद भी पैसा पी़ड़ित किसानों तक नहीं पहुंचा है. यह कहना गलत नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से किसानों को सूखा राहत मुहैय्या कराने प्रशासन के किए जा रहें दावों की हवा निकल गई है.
राहत राशि में लेट-लतीफी साहूकारों के लिए वरदान साबित हो रही है, खेतों की जुताई से लेकर बीज बोने तक के लिए किसान साहूकारों के भरोसे है. खेतों में अच्छी फसल होने के बाद भी किसानों की पीड़ा कम नहीं होगी. इसकी वजह उत्पादन से होने वाला लाभ है जो किसानों के घर ना होकर साहूकारों के घर पहुंचेगा, लेकिन शासन-प्रशासन किसानों की इस पीड़ा को नहीं समझ रहा है. राहत राशि से वंचित किसानों की समस्या के समाधान के लिए अंतिम रूप से कौन जिम्मेदार है यह बता पाना मुश्किल है.
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Wednesday, September 21, 2016
( Cg khabar )
कांकेर | अंकुर तिवारी:
आदिवासी बहुल कांकेर के किसान पैसे के लिये साहूकारों के पास जाने के लिये बाध्य हो रहें हैं.इसका कारण है कि उनमें से कईयों को पिछले साल का सूखा राहत अभी तक नहीं मिल पाया है. कहते है कि कोई मदद तभी कारगार साबित होती है जब मिले समय पर, वक्त पर नहीं मिली मदद किसी काम की नहीं होती. छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के किसानों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है. सूखे की मार झेल रहे किसानों का बुरा हाल है, मुआवजा के इंतज़ार में किसान बेहद परेशान है.
पिछले साल मौसम की बेरूखी के चलते धान की फसल अच्छी नहीं हुई, इसके कारण किसानों का जन-जीवन प्रभावित हुआ है. साथ ही सरकार की ओर से मिल रहे मुआवजे में अनियमितता बरती जा रही है.
नरहरपुर विकासखंड के मावलीपारा गांव के किसानों ने जनदर्शन में पहुंच कर कलेक्टर को ज्ञापन सौप कर शिकायत दर्ज कराई है. किसानों के मुताबिक यह पहली दफा नहीं जब कलेक्टर से सूखा राहत राशि की मांग की गई है.
किसानों का आरोप है कि गांव के सिर्फ गिने चुने लोगों को ही सूखा राहत का मुआवजा दिया गया है. जिन किसानों की फसल सूखे से पूरी तरह बर्बाद हो गई है. उऩ्हें शासन-प्रशासन से फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है. कृषक आज भी मुआवजा पाने के लिए पटवारी के चक्कर लगा रहें हैं. सूखा राहत राशि के वितरण में प्रशासन की तरफ से भेदभाव किया जा रहा है.
प्रभावितों की सूची में नाम होने के बाद भी किसानों को मुआवजा राशि का भुगतान नहीं किया गया है. धान की फसल खराब हो जाने के बाद किसानों की आर्थिक दुर्दशा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. सूखा राहत का मुआवजा पाने के लिए किसान क्षेत्र के पटवारी से लेकर बड़े प्रशासनिक अधिकारियों तक गुहार लगा चुकें है, लेकिन नतीजा सिफर रहा है.
सूखा राहत राशि वितरण में प्रशासनिक सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे एक साल गुजर जाने के बाद भी पैसा पी़ड़ित किसानों तक नहीं पहुंचा है. यह कहना गलत नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से किसानों को सूखा राहत मुहैय्या कराने प्रशासन के किए जा रहें दावों की हवा निकल गई है.
राहत राशि में लेट-लतीफी साहूकारों के लिए वरदान साबित हो रही है, खेतों की जुताई से लेकर बीज बोने तक के लिए किसान साहूकारों के भरोसे है. खेतों में अच्छी फसल होने के बाद भी किसानों की पीड़ा कम नहीं होगी. इसकी वजह उत्पादन से होने वाला लाभ है जो किसानों के घर ना होकर साहूकारों के घर पहुंचेगा, लेकिन शासन-प्रशासन किसानों की इस पीड़ा को नहीं समझ रहा है. राहत राशि से वंचित किसानों की समस्या के समाधान के लिए अंतिम रूप से कौन जिम्मेदार है यह बता पाना मुश्किल है.
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