दो बच्चों को माओवादी बताकर हत्या की तो कल्लूरी समर्थकों ने कहा, 'हो गया शतक'
राजकुमार सोनी@
CatchHindi | 30 September
23 सितंबर को बस्तर के एक गांव सांगवेल में दो नाबालिगों की कथित मुठभेड़ पर सवाल उठने लगे हैं. दूसरी तरफ़ आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी के समर्थकों ने ख़ुशी जताते हुए इसे मौत की सेंचुरी करार दिया है.
बस्तर में दो नाबालिग छात्रों सहित तीन महिलाओं को 'माओवादी' बताकर मौत के घाट उतारने की वारदात पर अग्नि संगठन ने आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी को सेंचुरी मारने पर बधाई दी है. समर्थकों ने सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में कहा है कि मिशन 2016 के तहत कल्लूरी साहब ने माओवादियों को मौत के घाट उतारने का जो लक्ष्य रखा था वह शतक बनाकर पूरा कर लिया गया है.
अग्नि के कर्ताधर्ता फारुख अली का कहना है कि सामाजिक कार्यकर्ता और माओवादी समर्थक चिल्लाते रहेंगे और बस्तर के जवान ठोंकते रहेंगे. इधर दो नाबालिगों की मौत के बाद बस्तर में बवाल मच गया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का आरोप है कि पुलिस ने एक बार फिर असल माओवादियों से लोहा लेने के बजाय बेकसूर ग्रामीणों को अपना निशाना बनाया है.
वारदात बीते शुक्रवार 23 सितम्बर की है. बस्तर के थाना बुरगुम के गांव सांगवेल में पुलिस ने अलसुबह दो छात्रों को माओवादी बताकर मौत के घाट उतार दिया था. इस घटना के तुरन्त बाद आईजी कल्लूरी ने जवानों को एक लाख रुपए नगद ईनाम देने की घोषणा की तो गांववालों का यह आरोप सामने आया कि मुरिया आदिवासी सोनकू राम अपने एक दोस्त सोमडू के साथ एक शोक संदेश लेकर अपनी बुआ के घर सांगवेल गया था.
रात होने की वजह से दोनों वहीं ठहर गए. अलसुबह पुलिस ने उन दोनों बच्चों को घर से उठा लिया. घर में मौजूद उनकी बुआ ने पुलिसवालों को रोकने की कोशिश की तो उनके साथ मारपीट की गई. इसके बाद दोनों को पुलिस पास के जंगल ले गई और फिर हत्या कर दी.
फिर उठे सवाल!
दो बच्चों की मौत के बाद बस्तर में एक बार फिर सवालों का पहाड़ खड़ा हो गया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि अगर पुलिस की नज़र में बच्चे किसी तरह की गतिविधियों में शामिल थे तो उन्हें पकड़ने के बाद बाल संरक्षण गृह में रखा जा सकता था.
बघेल ने कहा कि सरकार बस्तर से माओवादियों के खात्मे के नाम पर सिर्फ आदिवासियों की हत्या करने में लगी हुई है. माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा की विधायक देवती कर्मा ने बताया कि जब उन्होंने मौके का मुआयना किया, तब उन्हें उस जगह गोली के खोखे मिले जहां बच्चों की लाश मिली थी.
इससे पता चलता है कि पुलिस ने बच्चों पर बेहद नजदीक से गोलियां दागी हैं. घटना स्थल का मुआयना करके लौटे सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने बताया कि पुलिस जब बच्चों को घर से उठाकर ले जा रही थी, तब उनकी चीख-पुकार सुनकर गांववाले जाग गए थे.
पुलिस ने दोनों बच्चों को पास के एक नाले में ले जाकर पहले तो डूबा-डूबाकर मारा और फिर गोलियां दाग दीं. बच्चों की मौत के बाद पुलिस के जवानों ने लाश के पास बैठकर शराब भी पी. ठाकुर का दावा है कि पुलिस की इस करतूत के कई चश्मदीद हैं, लेकिन वे इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि कहीं पुलिस उन्हें भी माओवादी बताकर न मार डाले.
माओवादी नहीं था मेरा बेटा
कथित मुठभेड़ में मारे गए सोनकू के पिता पायकूराम का दावा है कि उनका बेटा और उसका दोस्त, दोनों माओवादी नहीं थे. उनका माओवादियों से कभी कोई संबंध भी नहीं था. पायकू ने बताया कि घर में बुखार की वजह से एक बच्चे की मौत हो गई थी जिसकी सूचना देने वह अपनी बुआ के घर गया था, तभी पुलिस ने उसे अपना शिकार बना लिया.
पायकू के अनुसार सोनकू हितामेटा के पोर्टाकेबिन में पढ़ाई कर रहा था तो नउगू कश्यप का बेटा बीजलू अनुत्तीर्ण होने की वजह से पढ़ाई छोड़ चुका था. चित्रकोट के विधायक दीपक बैच का आरोप है कि पुलिस फर्जी एनकाउंटर में समर्पण करने वाले माओवादियों का इस्तेमाल कर रही है. आत्मसमर्पित माओवादी असल माओवादियों का पता-ठिकाना बताने की बजाय हमनाम ग्रामीणों को माओवादी बताकर मारा जा रहा है.
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राजकुमार सोनी@
CatchHindi | 30 September
23 सितंबर को बस्तर के एक गांव सांगवेल में दो नाबालिगों की कथित मुठभेड़ पर सवाल उठने लगे हैं. दूसरी तरफ़ आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी के समर्थकों ने ख़ुशी जताते हुए इसे मौत की सेंचुरी करार दिया है.
बस्तर में दो नाबालिग छात्रों सहित तीन महिलाओं को 'माओवादी' बताकर मौत के घाट उतारने की वारदात पर अग्नि संगठन ने आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी को सेंचुरी मारने पर बधाई दी है. समर्थकों ने सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में कहा है कि मिशन 2016 के तहत कल्लूरी साहब ने माओवादियों को मौत के घाट उतारने का जो लक्ष्य रखा था वह शतक बनाकर पूरा कर लिया गया है.
अग्नि के कर्ताधर्ता फारुख अली का कहना है कि सामाजिक कार्यकर्ता और माओवादी समर्थक चिल्लाते रहेंगे और बस्तर के जवान ठोंकते रहेंगे. इधर दो नाबालिगों की मौत के बाद बस्तर में बवाल मच गया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का आरोप है कि पुलिस ने एक बार फिर असल माओवादियों से लोहा लेने के बजाय बेकसूर ग्रामीणों को अपना निशाना बनाया है.
वारदात बीते शुक्रवार 23 सितम्बर की है. बस्तर के थाना बुरगुम के गांव सांगवेल में पुलिस ने अलसुबह दो छात्रों को माओवादी बताकर मौत के घाट उतार दिया था. इस घटना के तुरन्त बाद आईजी कल्लूरी ने जवानों को एक लाख रुपए नगद ईनाम देने की घोषणा की तो गांववालों का यह आरोप सामने आया कि मुरिया आदिवासी सोनकू राम अपने एक दोस्त सोमडू के साथ एक शोक संदेश लेकर अपनी बुआ के घर सांगवेल गया था.
रात होने की वजह से दोनों वहीं ठहर गए. अलसुबह पुलिस ने उन दोनों बच्चों को घर से उठा लिया. घर में मौजूद उनकी बुआ ने पुलिसवालों को रोकने की कोशिश की तो उनके साथ मारपीट की गई. इसके बाद दोनों को पुलिस पास के जंगल ले गई और फिर हत्या कर दी.
फिर उठे सवाल!
दो बच्चों की मौत के बाद बस्तर में एक बार फिर सवालों का पहाड़ खड़ा हो गया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि अगर पुलिस की नज़र में बच्चे किसी तरह की गतिविधियों में शामिल थे तो उन्हें पकड़ने के बाद बाल संरक्षण गृह में रखा जा सकता था.
बघेल ने कहा कि सरकार बस्तर से माओवादियों के खात्मे के नाम पर सिर्फ आदिवासियों की हत्या करने में लगी हुई है. माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा की विधायक देवती कर्मा ने बताया कि जब उन्होंने मौके का मुआयना किया, तब उन्हें उस जगह गोली के खोखे मिले जहां बच्चों की लाश मिली थी.
इससे पता चलता है कि पुलिस ने बच्चों पर बेहद नजदीक से गोलियां दागी हैं. घटना स्थल का मुआयना करके लौटे सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने बताया कि पुलिस जब बच्चों को घर से उठाकर ले जा रही थी, तब उनकी चीख-पुकार सुनकर गांववाले जाग गए थे.
पुलिस ने दोनों बच्चों को पास के एक नाले में ले जाकर पहले तो डूबा-डूबाकर मारा और फिर गोलियां दाग दीं. बच्चों की मौत के बाद पुलिस के जवानों ने लाश के पास बैठकर शराब भी पी. ठाकुर का दावा है कि पुलिस की इस करतूत के कई चश्मदीद हैं, लेकिन वे इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि कहीं पुलिस उन्हें भी माओवादी बताकर न मार डाले.
माओवादी नहीं था मेरा बेटा
कथित मुठभेड़ में मारे गए सोनकू के पिता पायकूराम का दावा है कि उनका बेटा और उसका दोस्त, दोनों माओवादी नहीं थे. उनका माओवादियों से कभी कोई संबंध भी नहीं था. पायकू ने बताया कि घर में बुखार की वजह से एक बच्चे की मौत हो गई थी जिसकी सूचना देने वह अपनी बुआ के घर गया था, तभी पुलिस ने उसे अपना शिकार बना लिया.
पायकू के अनुसार सोनकू हितामेटा के पोर्टाकेबिन में पढ़ाई कर रहा था तो नउगू कश्यप का बेटा बीजलू अनुत्तीर्ण होने की वजह से पढ़ाई छोड़ चुका था. चित्रकोट के विधायक दीपक बैच का आरोप है कि पुलिस फर्जी एनकाउंटर में समर्पण करने वाले माओवादियों का इस्तेमाल कर रही है. आत्मसमर्पित माओवादी असल माओवादियों का पता-ठिकाना बताने की बजाय हमनाम ग्रामीणों को माओवादी बताकर मारा जा रहा है.
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