दक्षिण बस्तर के अभुझमाड़ [माड ] आज तक कोई बदलाव नहीं आया ,आदिम युग में जी रहे है लोग
[मो इमरान खान]
नारायणपुर। आजाद भारत में अब तक अबुझमाड़ का सर्वे नहीं हो पाया और इसका सीधा असर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संचार पर पड़ा है। सारी दुनिया इंटरनेट युग में पहुंच गई है लेकिन अबुझमाड़ में इसकी सुविधा नहीं पहुंच पाई है। अबूझमाड़ की सेटेलाइट तस्वीरों को आ.ार बनाकर चार साल पहले शुरु किए गए मैदानी सर्वे ठप पड़ गया और सर्वे की टीम लौट गई। सर्वे नहीं होने से यहां के लोगों को आज भी कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है। चुनाव के बाद अबुझमाड़ियों को नई सरकार से सर्वे की उम्मीद थी लेकिन इस उम्मीद पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
राजस्व अमले को एक साल में पांच गांवों का नक्शा भी तैयार करने में भी कामयाबी नहीं मिल पाई जबकि माड़ में 237 गांवों का नक्शा बनना है। इधर नक्सलियों ने गांवों का नक्शा बना लिया है। इसका खुलासा जप्त नक्सली साहित्यों से हुआ है। सूत्रों के मुताबिक अबूझमाड़ का एरियल सर्वे हो गया है और राजस्व अमले को सेटेलाइट तस्वीरें भी मिल गई हैं। राजस्व विभाग ने पहले चरण में पांच गांवों के मैदानी सर्वे के लिए नोटिपिᆬकेशन जारी किया था। इन गांवों में बासिंग, कंदाड़ी, कुरुसनार, जीवलापदर और कुंदला शामिल हैं। सभी गांव जिला मुख्यालय से पंद्रह किमी के दायरे में ही हैं। सर्वे के तहत सबसे पहले गांव जाकर सेटेलाइट तस्वीर से मौके का मिलान करना था। उस इलाके की नंबरिंग (रकबा बरारी)करनी है। इसके अलावा आंशिक खसरा, अधिकार अभिलेख, निस्तार के स्थल का नक्शा बनाना है। गांव की सरहद के लिए चिन्हांकन के लिए एक विशेषज्ञ अमला होता है। इस अमले को तैनात नहीं किया गया है। चार साल पहले स्थानीय राजस्व अमले के अलावा रायपुर, दुर्ग और राजनांदगांव से अधिकारी और कर्मचारियों को काम पर लगाया गया था। बताते हैं कि इस काम के लिए 27 अधिकारी कर्मचारियों को तैनात किया गया था। इनमें से 13 अधिकारी-कर्मचारी यहां आए। 13 कर्मचारी एक साल से यहां काम कर रहे थे लेकिन इनमें से दो चेनमेन गैर हाजिर नहीं हुए।
नक्सलियों ने हालांकि सीधे तौर पर इस काम की मनाही के लिए कोई बात नहीं कही लेकिन राजस्व अमला इस चर्चा से खौपᆬजदा था कि नक्सलियों ने इलाके में कोई भी काम करने से मना किया है। सूत्र बताते हैं कि राजस्व अमला गांव तक तो जाता है लेकिन तुरंत लौट आता था और काम जिला मुख्यालय में आकर ही करता था। नक्सली दहशत के चलते आखिर सर्वे टीम को लौटना पड़ा। सरकार फिलहाल रामकृष्ण मिशन के नक्शे से अपना काम चला रही है।
राशन के लिए दिक्कतः अबुझमाड़ की हांदावाड़ा पंचायत के लोग दंतेवाड़ा जिले के मिचनार गीदम की राशन दुकान से सामान उठा रहे हैं वहीं लंका पंचायत के हितग्राही बीजापुर जिले के बेदरे की दुकान से राशन ले रहे हैं। लंका एवं हांदावाड़ा तक जिला मुख्यालय से राशन भेजने में होने वाली परेशानी को देखते ये व्यवस्था की गई है। इससे दोनों पंचायतों के लोगों को सुविधा हो रही है। इन पंचायतों के लोगों के लिए बारिश ही नहीं दीगर सीजन में भी ओरछा तक राशन लेने आना मुश्किल है। बीच में नदी-नाले हैं और रास्ते पहाड़ी हैं। सड़क नहीं होने से राशन इन पंचायतों तक नहीं पहुंचाया जा सकता है। पहले जिले से खाद्य विभाग ने इन पंचायतों को राशन भेजने की व्यवस्था की थी लेकिन इसमें खर्च काफी आया। ओरछा से आगे वाहनों को भेजना मुश्किल है क्योंकि सड़क मार्ग नहीं हैं। अंदरुनी गांव की राशन दुकानों के संचालक ओरछा से अपनी व्यवस्था से सामान गांवों तक ले जाते हैं। इधर सोनपुर और कंुदला तक वाहन राशन लेकर जाती है। पांच दुकानों का संचालन अबुझमाड़ में रामकृष्ण मिशन आश्रम की ओर से किया जाता है। 21 दुकानों तक नान से आपूर्ति की जाती है। कभी-कभार राशन बैलेंस रहता है। अगले माह खाद्य विभाग इसे कम कर आपूर्ति का आदेश देता है। उन्होंने बताया कि जिले में गेहूं की सप्लाई नहीं की जा रही है। कैरोसिन की आपूर्ति लैम्प्स करता है।
वन विभाग का इस जंगल पर अधिकार नहीं: अबूझमाड़ में सेना का ट्रेनिंग सेंटर खुलने का प्रस्ताव था और यह 625 वर्ग किमी क्षेत्र को इसके लिए चुना गया था। अबुझमाड़ ऐसा जंगल है जहां वन विभाग का कोई अधिकार नहीं है और इसलिए ही सेना को यह जमीन आसानी से मिल गई। सेना का ट्रेनिंग सेंटर खोलने के लिए राज्य सरकार ने अबूझमाड़ के इलाके को दिया है। इसका ना तो राजस्व ने कभी सर्वे किया है और ना ही यह जंगल वन विभाग का है। यह संरक्षित या आरक्षित वन क्षेत्र नहीं है। इसी वजह से सेना को ये जमीन देने से पहले वन विभाग से अनापत्ति नहीं मांगी गई। सेना को ट्रेनिंग सेंटर खोलने के लिए 25 किमी लंबे और 25 किमी चौड़े क्षेत्र को दिया जा रहा था। सूत्रों के मुताबिक इस इलाके में 8 पंचायतें घमंडी, कुतूल,कच्चापाल, कंदाड़ी, झारावाही, नेड़नार, कोहकामेटा एवं गोमाकाल शामिल किया गया था। इनके तहत 51 गांव आते हैं और इनकी आबादी 8850 बताई गई है। परिवारों की संख्या 1511 है। पहले प्रशिक्षण के लिए गांवों को खाली कराने की बात कही जा रही थी। सेना के प्रवक्ता बार-बार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पᆬौज नक्सलियों से लड़ने नहीं आ रही है।
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