Wednesday, May 13, 2015

जल प्रबंधन की राह दिखाते आदिवासी

जल प्रबंधन की राह दिखाते आदिवासी






Posted:   Updated: 2015-05-13 10:09:39 ISTRaipur : way Show of water management has tribal
कोरिया जिले के मुख्यालय बैकुंठपुर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा जामझरिया गांव पानी बचाने की परंपरा की एक नई इबारत लिख रहा है।
रायपुर. कोरिया जिले के मुख्यालय बैकुंठपुर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा जामझरिया गांव पानी बचाने की परंपरा की एक नई इबारत लिख रहा है। यहां के ग्रामीणों ने अपने पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल कर न केवल पड़ोस के पहाड़ पर पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित किया, बल्कि गांव की प्यास बुझाने के लिए वे इस पानी को पहाड़ से उतारकर गांव तक लाने की कवायद में भी जुट गए हैं।
पंचायत बुलाकर निकाला रास्ता
पंडो समाज संगठन अगुवा लोगों ने पंचायत बुलाकर बुजुर्गों से इस पानी को उपयोग में लाने लायक बनाने का तरीका पूछा। तय हुआ कि इस स्रोत को पारंपरिक तरीके से रिचार्ज किया जाएगा। माणिकराम पंडो, पुरुषोत्तमराम पंडो, बसंत पंडो, हीरालाल, शिवबालक, प्रेमकुमार, मुन्नाराम, राजकुमारी बाई, इंद्रकुंवर, मुन्नीबाई जैसे लोगों ने यह काम संभाला। गांव के हर परिवार को जोड़कर उस स्रोत के आसपास के क्षेत्र की सावधानीपूर्वक सफाई की गई। जलस्रोत के भीतर की गाद हटाई गई। उनकी कोशिशों से जलस्रोत लबालब हुआ तो वहां एक ढोड़ी (कुंए जैसी संरचना) बांधी गई। उसके बाद इसे नीचे लाने की योजना बनी।
ऐसे हो रहा नाला निर्माण
पहाड़ से गांव की दूरी करीब एक किमी है। गांव के प्रत्येक परिवार का एक व्यक्ति रोजाना पहाड़ से गांव तक नाला बनाने के काम में लगता है। पिछले एक महीने से गांववालों ने पानी से गांव की दूरी लगभग पाट दी है। ग्रामीणों का कहना है कि काफी पहले उनके पुरखे इस पानी का इस्तेमाल करते थे। दूरी की वजह से उन जलस्रोतों को भुला दिया गया था। नाला बन जाने से पानी का यह स्रोत नजदीक हो जाएगा। कोशिश होगी कि मूल स्रोत भी ठीक रहे। सुरेंद्र तिवारी बताते हैं कि अगर यह पानी गांव तक पहुंचता है तो ग्रामीणों के पेयजल और सिंचाई की समस्या का समाधान हो जाएगा।
किल्लत ने दिखाया रास्ता
पंडो आदिवासी समुदाय के 50 घरों से आबाद यह गांव बैकुंठपुर की महारा ग्राम पंचायत का हिस्सा है। गांव में तीन हैंडपंप लगे हैं, जिसमें से दो ही काम कर रहे हैं। गांव की तुलसीबाई बताती हैं कि नल से लाल पानी आता है, जो पीने में अच्छा नहीं लगता। इस किल्लत ने ग्रामीणों को पानी के पारंपरिक स्रोतों को ठीक करने की जुगत करने को प्रेरित किया। पहाड़ पर पानी के प्राकृतिक स्रोत की तलाश हुई। जो मिला वह बेहद खराब स्थिति में था। उससे प्यास बुझनी मुश्किल थी।
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