कोयला खदानों की नीलामी से प्रभावित बंद पड़ी कोयला खदानें, श्रमिकों का पलायन शुरू
रायगढ़ (निप्र)। जिले में पांच कोल माइन्स के मालिक क्या बदल गए, यहां के ठेके मजदूरों की हालात भी बदल गई है। हालांकि स्थाई कर्मचारियों को तो कंपनियां बिठाकर पैसे दे रही हैं, लेकि ठेका मजदूरों का कोई ठौर नहीं है। अभी ए खदानें भी सरकारी फाइलों में ऐसी उलझी हैं कि खदानों को शुरू होने में काफी वक्त लग जाएगा। ऐसे में यहां के ठेका मजदूर पलायन करने मजबूर हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रद्द किए जाने के बाद ई-ऑक्शन में यहां की पांचों चालू खदानों का प्रबंधन बदल गया। सरकार ने कहा था कि कर्मचारियों को अपनी कंपनी बदलने की जरूरत नहीं होगी, जो कंपनी प्रबंधन के हिस्से में कोयला खदान आएगा, उसके कर्मचारियों को वहीं कंपनी रखेगी।
हालांकि उस समय यह भी कहा गया था कि कर्मचारियों में ठेका मजदूर भी शामिल होंगे। लेकिन माह भर से ज्यादा बीत जाने के बाद भी नई कंपनियां कर्मचारियों और खासकर ठेका मजदूरों की सुध नहीं ले रही है। कुछ खदान प्रबंधन स्थाई कर्मचारियों का भुगतान तो बिठाकर कर रहे हैं, पर वहां के ठेका मजदूरों का कोई मालिक नहीं है।
वहां के ठेका मजदूर अब अपने घर वापस जाने मजबूर हैं। इन तमाम खदानों में 5 से 7 हजार ठेका श्रमिक कार्यरत हैं। लेकिन कंपनियों को जो लिस्ट दी गई है उसमें वहां के ठेका श्रमिकों का नाम ही नहीं है।
जिंदल खदान के कर्मचारी पशोपेश में
जिंदल के तीन कोयला खदानों के लगभग 25 सौ श्रमिकों को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। हालांकि बाहर के मजदूर पलायन कर गए, लेकिन स्थानीय मजदूर हैं जिनकी आजीविका यहीं से चलती थी वे पूरी तरह बेरोजगार हो गए हैं। उनको भी समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें।
यहां की खदान पर आसपास के ग्रामीण, ट्रांसपोर्टर, छोटे ठेकेदार के अलावा छोटा-मोटा काम कर जीवन निर्वाह करने वाले लोग भी हैं। मामला कोर्ट में होने और असमंजस होने के कारण इन्होंने अपनी उम्मीद छोड़ दी है। हालांकि यहां पर ज्यादातर मजदूर बाहरी थे। यूपी, बिहार और ओडिशा के हजारों मजदूर इस खदान पर निर्भर थे। इनमें से ज्यादातर अब अपने घर लौट चुके हैं, क्योंकि इसके आसपास की खदानें भी अभी बंद हैं।
सरकारी औपचारिकता में उलझी खदानें
यहां के सभी खदान के प्रबंधन के बदल जाने से खदानों को फिर से शुरू करने के लिए नई कंपनियों को फिर से सारी औपचारिकता पूरी करनी होगी। चाहे सरफेस राइट हो या पर्यावरण क्लियरेंस। सभी औपचारिकताएं नए सिरे से पूरी करनी होगी। ऐसे में औपचारिकताओं को पूरी करने में बहुत दिन लगेंगे। हालांकि कहा तो यह जा रहा है कि इस प्रक्रिया में साल भर से ज्यादा का समय लगेंगा। लेकिन यदि तेजी से भी काम हुआ तो भी साल भर से पहले यह खदानें शुरू नहीं हो पाएंगी। ऐसे में यहां से मजदूरों का पलायन जारी रहेगा।
स्थानीय बाजार पर भी फर्क
खदानें चालू नहीं होने से स्थानीय स्तर के आर्थिक हालात भी बिगड़े हैं। चाहे हाट बाजार हों या मंडी यहां के बाजारों में पहले जैसी रौनक नहीं रही। यही कारण है कि स्थानीय व्यापारी भी रोज यह दुआ कर रहे हैं कि जल्दी से खदानें चालू हो जाएं। हालांकि कई स्थाई कर्मचारी तो हैं पर वे भी खदानें चालू न हो पाने की स्थिति में अपना जुगाड़ इधर-उधर लगा रहे हैं। क्योंकि उन्हें लग रहा है कि आखिर कितने दिनों तक बिठाकर कोई कंपनी पैसा देगी।
श्रम विभाग सुस्त
श्रम विभाग इस मसले पर शिकायत का इंतजार कर रही है। लेकिन उनके पास इस बात का भी जबाव नहीं है कि यदि ठेका श्रमिकों ने शिकायत किया भी तो आप क्या करेंगे। ऐसे सवालों के जबाव में अधिकारी बंगले झांकते नजर आते हैं।
ठेकेदार ही नहीं तो ठेका श्रमिक कहां
कं पनियों का यह तर्क होता है कि हमारी संविदा ठेकेदारों के साथ होती है हमें तो उन्हीं से मतलब होता है। वह किस मजदूर से काम ले रहा है और किससे नहीं उससे हमें कोई मतलब नहीं होता है। ऐसे में नई कंपनियों को जो लिस्ट दी जाती है उसमें ठेका श्रमिकों की न तो संख्या होती है और न ही उनके नाम। ऐसे में ठेका श्रमिक न तो इधर के होते हैं और न ही उधर के।
कितने बेरोजगार
वैसे जिंदल खदान के ही करीब 3 हजार ठेका श्रमिक और छोटे-मोटे ठेकेदार बेरोजगार हो गए हैं। इसके अलावा निको जायसवाल, सारडा और मोनेट इस्पात कोयला खदान के भी करीब 2500 ठेका श्रमिक बेरोजगार हुए हैं। इस तरह प्रत्यक्ष तौर पर ही करीब 5500 श्रमिक बेरोजगार हो चुके हैं। यदि परोक्ष को भी जोड़ लें तो यह आंकड़ा और बढ़ जाएगा।
हमारी खदान के उत्पादन के लिए सरकारी कार्यालयों में फाइलें चल रही हैं। जैसे ही औपचारिकता पूरी हो जाएगी, हम काम शुरू करा देंगे। जितने स्थाई श्रमिकों के नाम हमें दिए गए थे हम उन्हें बिना काम के वेतन दे रहे हैं। पर ठेका श्रमिकों का न काम है न ही उनका नाम हमारे पास है।
विवेकानंद लाइजनिंग अधिकारी हिंडाल्को खदान
हमने हिंडाल्को के लीज आर्डर का परीक्षण करके आगे फारवर्ड कर दिया है और मोनेट का परीक्षण का कार्य चल रहा है। यहां का काम तो जल्द ही निबट जाएगा, आगे भी संभवतः जल्द ही हो जाएगा। कंपनियां सभी नार्म्स का पालन करने के लिए बाध्य हैं। हमें श्रमिकों की गाइड लाइन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
एस नाग खनिज अधिकारी
कुछ कं पनियों ने अपने श्रमिकों का रिटैचमेंट कर उनका हिसाब किया है। पर जो लोग हमारे पास तक आ जाते हैं उनका तो हो जाता है पर ज्यादातर लोग बिलासपुर केंद्रीय श्रम कार्यालय जाते हैं। नियमों का पालन करवाया जाना सुनिश्चित किया जाएगा।
यूके कच्छप सहायक श्रमायुक्त
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