Wednesday, May 13, 2015

पोलोवरम बांध के विरोध में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है आदिवासी संघटन



पोलोवरम बांध के विरोध में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है आदिवासी संघटन 



पड़ोसी राज्य सीमांध्र में गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन पोलावरम अंतरराज्यीय बहुउद्देश्यीय परियोजना के खिलाफ अखिल भारतीय आदिवासी महासभा भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। तीन दिन पहले सीपीआई के राज्य सचिव आरडीसीपी राव के साथ सुकमा जिले के महासभा से जुड़े नेताओं की इस मुद्दे को लेकर बैठक हुई है।
महासभा से जुड़े आदिवासी नेता सुप्रीम कोर्ट में वकीलों के एक पैनल के लगातार संपर्क में है। इस पैनल के मार्गदर्शक आम आदमी पार्टी के नेता व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण हैं। आदिवासी महासभा के अध्यक्ष व सीपीआई के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम के अनुसार इसी माह के अंत या फिर अगले माह के पहले पखवाड़े में पोलावरम बांध के डुबान से सुकमा जिले के आदिवासी इलाकों को बाहर रखने की मांग को लेकर याचिका दायर कर दी जाएगी।
 चर्चा में मनीष कुंजाम ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि पोलावरम पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सिविल सूट दायर किया है पर उन्हें संदेह है कि केन्द्र में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार बनने के बाद राज्य सरकार कभी भी यू-टर्न ले सकती है। यही कारण है कि आदिवासी महासभा को अब खुद ही सुप्रीम कोर्ट में जाने का निर्णय लेना पड़ा है।
क्या नुकसान है प्रोजेक्ट से?
प्रोजेक्ट के बनने से दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले के कोंटा सहित 13 गांव सबरी नदी के बैक वाटर से डुबान में चले जाएंगे। इसके साथ ही करीब आठ हजार हेक्टेयर जमीन व सैकड़ों पेड़ों तथा एर्राबोर से कोंटा के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग का 17 किलोमीटर का हिस्सा भी डूब जाएगा। करीब 20 हजार की आबादी विस्थापित होगी जिसमें मुख्य रूप से दोरला जनजाति पर सबसे ज्यादा विस्थापन का खतरा होगा।
तीन याचिकाएं दाखिल हैं सुप्रीम कोर्ट में
सुप्रीम कोर्ट में पोलावरम के खिलाफ तीन याचिकाएं दाखिल की गई हैं। सबसे पहले ओड़िशा शासन ने 2008 में याचिका दाखिल की है। छत्तीसगढ़ शासन ने 20 अगस्त 2011 को और छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने भी 2011 में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर रखी हैं।

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