सुप्रीम कोर्ट :सलवाजुडुम हॉरर हॉरर ;बीभत्स, बीभत्स।
Himanshu Kumar सलवा जुडूम पर सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ की तुलना अफ्रीका के जंगलों में आदिवासियों के संहार के से करी है और कहा है ' हमने छत्तीसगढ़ के हालात के बारे में प्रतिवादियों द्वारा दिए गए तर्कों को विस्तार से सुना। इससे हमारे सामने यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो गई कि प्रतिवादियों ने राज्य के कार्य करने के ऐसे तरीकों को अपनाया है जिससे संवैधनिक मूल्यों की गंभीर उपेक्षा हुई है। इससे राष्ट्रीय हित को गंभीर नुकसान हो सकता है। खासतौर पर इससे मानवीय गरिमा, समूहों के बीच बंधुत्व तथा राष्ट्रीय एकता और अखंडता सुनिश्चत रखने के इसके लक्ष्यों को गहरी चोट पहुँच सकती है। मानवता के सामूहिक अनुभव से यह बात स्पष्ट होती है कि असीमित सत्ता खुद अपना सिद्धांत बन जाती है। अपनी सत्ता का उपयोग ही इसका मकसद बन जाता है। इसका नतीजा लोगों के अमानवीय बनाने के रूप में सामने आया है। इसके कारण साम्राज्यवादी शक्तियों ने प्राकृतिक संसाधनों के लिए धरती का असीमित दोहन किया है। दरअसल इसी के कारण दुनिया को दो भयानक विश्व युद्धों का सामना करना पड़ा है। असीमित सत्ता के बारे में मानवता के इस सामूहिक अनुभव को देखते हुए आधुनिक संविधानवाद यह प्रावधान करता है कि राज्य की सत्ता का उपयोग करने वाले यह दावा नहीं कर सकते हैं कि राज्य किसी कानूनी रोक-टोक के बगैर किसी के भी खिलाफ हिंसा कर सकता है उन्हें अपने नागरिकों के खिलाफ इस तरह का दावा करने की इजाजत तो बिल्कुल ही नहीं दी जा सकती है। इसके अलावा, आधुनिक संविधानवाद ने इस अवधारणा को भी स्वीकार किया है कि हर नागरिक की स्वाभाविक मानवीय गरिमा होती है। इस केस की सुनवाई से छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों की घटनाओं और परिस्थितियों की एक धुंधली तस्वीर सामने आती है। हम इससे सिर्फ इसी नतीजे पर पहुँच पाए कि प्रतिवादी हमें संवैधनिक कार्रवाई के ऐसे रास्ते की ओर ले जा रहे हैं, जहाँ इन सबके अंत में हमें भी यह कहना पड़ेगा हॉरर हॉरर ;बीभत्स, बीभत्स।
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