Tuesday, December 27, 2016

सुकमा पुलिस की थ्योरी में झोल: उठाया खम्मम से और ज़ीरो एफ़आईआर सुकमा में



सुकमा पुलिस की थ्योरी में झोल: उठाया खम्मम से और ज़ीरो एफ़आईआर सुकमा में

राजकुमार सोनी@CatchHindi |
 28 December 2016, 9:06 IST

बस्तर में दो अधिवक्ता, एक पत्रकार सहित सात मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में नया मोड़ आ गया है. मंगलवार को गिरफ्तार किए गए लोगों की जमानत के सिलसिले में हैदराबाद से दंतेवाड़ा पहुंचे वकीलों ने कहा कि जो गिरफ्तार किए गए हैं उन्हें रविवार की सुबह नौ बजे के आसपास सादी वर्दी में कुछ हथियारबंद लोगों ने तेलगांना के खम्मम इलाके के दुगुडम क्षेत्र में रोका था.

रोक-टोक करने वाले खुद को छत्तीसगढ़ का पुलिसकर्मी बता रहे थे. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उन्हें  तेलगांना इलाके में होने की वजह पूछी तो वे जवाब नहीं दे पाए थे। उनके पास अपने पहचान पत्र भी नहीं थे.

तक़रार बढ़ने के बाद आसपास काफी ग्रामीण जमा हो गए और तेलगांना पुलिस भी आ गई थी. तेलगांना पुलिस ने इन सभी लोगों को सभी को जाने के लिए भी कह दिया था, लेकिन छत्तीसगढ़ की पुलिस उन्हें अपने साथ सुकमा ले आई और फिर देर शाम उन्हें जनसुरक्षा अधिनियम के तहत जेल भेज दिया गया.

जीरो एफआईआर पर सवाल

नियम कहता है कि छत्तीसगढ़ पुलिस को एफआईआर खम्मम में ही दर्ज करवानी चाहिए थी लेकिन इसकी बजाय इनकी गिरफ्तारी सुकमा में दिखाई गई है. सवाल यह उठ रहा है कि सुकमा में भी गिरफ़्तारी का क्रमांक ज़ीरो क्यों दर्शाया गया है? तेलांगना हाई कोर्ट के वकील सुरेश कुमार ने कहा कि जब तेलगांना के किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज ही नहीं की गई तो फिर सुकमा पुलिस का जीरो पर अपराध दर्शाना गैर वाजिब ही माना जाएगा.

सुरेश कुमार ने कहा कि पुलिस के नाम पर जो लोग सादी वर्दी में छत्तीसगढ़ की सीमा से बाहर जाकर आम नागरिकों की जांच-पड़ताल कर रहे हैं, वे लूटपाट करने वाले अपराधी या सलवा-जुडूम के कार्यकर्ता भी हो सकते हैं. अधिवक्ता दशरथ ने कहा कि बस्तर के बदतर हालात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई मर्तबा फटकार लगाई है. बस्तर में जब सलवा-जुडूम संचालित था तब माओवादियों से मुकाबले के नाम पर पुलिस ने ग्रामीणों को हथियार थमा दिया था. फिलहाल पुलिस की कार्रवाई को देखकर यही लगता है कि बस्तर में एक बार फिर माओवादी उन्मूलन के नाम पर निजी लोगों की सेवाएं ली जा रही है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता देंगे गिरफ्तारी

अधिवक्ता, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद बस्तर की पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ मानवाधिकार संगठन लामबंद हो गए है. तेलगांना की सिविल लिबट्रीज कमेटी के संयुक्त सचिव मदन कुमार स्वामी ने बताया कि जल्द ही देशभर के मानवाधिकार कार्यकर्ता बस्तर आकर गिरफ्तारी देंगे. स्वामी ने तेलगांना और छत्तीसगढ़ की पुलिस पर सांठगांठ कर संगठित ढंग से अपराधिक गिरोह संचालित करने का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा कि जो लोग हाईकोर्ट में नियमित रुप से प्रैक्टिस कर रहे हैं पुलिस उन्हें माओवादी बता रही है.

पुलिस की झूठी कहानी का आलम यह है कि वह एक लाख रुपए के पुराने नोटों की जब्ती दर्शाकर यह साबित करने में तुली हुई है कि सभी लोग ग्रामीणों के जरिए पैसा बदलवाने आए थे. स्वामी ने कहा कि सात लोगों की गिरफ्तारी से पहले पुलिस ने प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और अर्चना प्रसाद सहित कुछ अन्य लोगों पर भी हत्या का केस दर्ज कर दिया था. हकीकत यही है कि बस्तर की पुलिस यह नहीं चाहती है कि माओवादी उन्मूलन के नाम पर फर्जी मुठभेड़ और फर्जी आत्मसमर्पण की कहानियां सामने आए.

आदिवासी नेता सोनी सोरी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को अलोकतांत्रिक बताते हुए कहा कि एक बार फिर यह साबित हो गया है कि बस्तर में कैसा फर्जीवाड़ा चल रहा है. जब मानवाधिकार के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को पुलिस माओवादी बताकर जेल में डाल सकती है तो फिर किसी ग्रामीण को नई वर्दी पहनाकर माओवादी बता ही सकती है. छत्तीसगढ़ की पीयूसीएल ईकाई के अध्यक्ष लाखन सिंह ने कहा कि बस्तर में असहमति के हर स्वर को कुचला जा रहा है. वहां लोकतंत्र निलंबित हैं, लेकिन कानून का माखौल उड़ाने वाले अफसरों को देर-सबेर जेल जरूर होगी

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