Friday, November 25, 2016

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भूख से बेहाल जिंदगी..छत्तीसगढ़ में सजी मानव मंडी...

2016-11-25 09:57:30


भूख से बेहाल जिंदगी..छत्तीसगढ़ में सजी मानव मंडी...

रायपुर. छत्तीसगढ़ के गांवों से बड़ी संख्या में मानव तस्करी का खुलासा होने के बाद पत्रिका टीम ने मानव मंडी बने जांजगीर-चांपा, महासमुंद और बिलासपुर जिलों के कई गांवों में गुरुवार को पहुंचकर पड़ताल की। उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में यहां से दलालों के मार्फत पैसों का लालच देकर बड़ी संख्या में ग्रामीणों को भेजने का गोरखधंधा चौंकाने वाला है। भोले-भाले लोगों का गांवों से पलायन सरकारी योजनाएं और सरकार के दावों का माखौल उड़ाती नजर आती है।

जांजगीर-चांपा से राजेन्द्र राठौर/हितेश गौरहा की रिपोर्टिंग

बलौदा ब्लॉक में चारों ओर पहाडिय़ों से घिरे उस्लापुर गांव में रहने वाले करीब 700 ग्रामीणों में से आधे पलायन कर गए हैं। यह स्थिति तब है, जब अभी धान की कटाई पूरी भी नहीं हुई है। यहां वो ही दिखाई दे रहे हैं, जो चल-फिर नहीं सकते या फिर काफी बुजुर्ग हो चुके हैं। पत्रिका टीम दोपहर एक बजे बलौदा विकासखंड के ग्राम पंचायत खोहा में आने वाले उस्लापुर गांव पहुंची तो यहां की कई गलियां वीरान थीं।
टीम को देखकर गांव के बुजुर्ग चौंक गए और उन्हें सर्वे टीम समझ बैठे। कई घरों में पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि ऐसा यहां पहली बार नहीं हुआ है। 60 फीसदी आदिवासी आबादी वाले इस गांव में करीब 200 एकड़ कृषि भूमि है। इसमें से अधिकांश खेतों का मालिकाना हक आसपास के गांव के रसूखदारों का है और आधे से भी कम जमीनें गांव के किसानों की हैं।
यही वजह है कि यहां के लोग भोपाल, कोलकाता, इलाहाबाद सहित अन्य शहरों में ईंट-भ_ों पर काम करने के लिए विवश होते हैं। मानव मंडी के लिए सबसे ज्यादा कुख्यात इस जिले के कई गांव ऐसे हैं, जहां की आधे से ज्यादा आबादी दीपावली के बाद से ही नदारद है। एक अनुमान के अनुसार रोजी-रोटी के लिए हर साल यहां से 40 से 50 हजार लोग देश में लेह लद्दाख से लेकर मलेशिया, सिंगापुर और न्यूयॉर्क तक जाते हैं। हालांकि इसका प्रशासनिक स्तर पर कोई रिकॉर्ड नहीं है। लोगों को यहां से ले जाने के लिए दलाल पैसों का लालच देते हैं और चालाकी बरतते हैं।
गांव के बुजुर्गों के मुताबिक यहां आने वाले दलाल लोगों को एडवांस में कुछ रुपए दे जाते हैं और फिर उनके झांसे में आकर ग्रामीणों का परिवार बच्चों और महिलाओं को लेकर उनके बताए ठिकानों पर चला जाता है। उस्लापुर की उपसरपंच रामकुमारी खैरवार कहती हैं, मनरेगा के तहत गांव में काम कराए जाते हैं, लेकिन समय पर मजदूरी भुगतान नहीं होने से मनेरगा से ग्रामीणों का भरोसा उठ गया है। गांव के कृपाशंकर यादव कहते हैं, गांव में खेती करने के लिए जमीन नहीं है।
इसकी वजह से हर साल यहां से ग्रामीणों को अन्य राज्यों में काम के लिए जाना पड़ता है। उसलापुर के झाडूराम खैरवार ने बताया, पिछले साल गांव में बारिश कम होने से धान की फसल बर्बाद हो गई और किसानों पर हजारों रुपए का कर्ज हो गया। इसको चुकाने के लिए अन्य शहरों में मजदूरी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जांजगीर जिला पंचायत के सीईओ अजीत बसंत ने कहा, केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत ग्रामीणों को लाभान्वित कराया जा रहा है। ग्राम उस्लापुर के संबंध में जानकारी नहीं है।

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