Saturday, November 26, 2016

मानव तस्करी से जूझता छत्तीसगढ़ : दो बाजार.. एक में जन की बोली, दूसरे में तन की2016-11-26 11:08:13

मानव तस्करी से जूझता छत्तीसगढ़ : दो बाजार.. एक में जन की बोली, दूसरे में तन की

2016-11-26 11:08:13


मानव तस्करी से जूझता छत्तीसगढ़ : दो बाजार.. एक में जन की बोली, दूसरे में तन की

जयंत सिंह/रायगढ़. यहां की मानव मंडी के दो बड़े हाथ हैं। धरमजयगढ़ ब्लॉक के 27 गांवों में तन की बोली लगती है तो सारंगढ़ ब्लॉक में जन का सौदा होता है। धरमजयगढ़ में कापू क्षेत्र चाल्हा में फिर से प्लेसमेंट एजेंसियों के दलालों की सक्रियता बढ़ गई है। ये दो से तीन पहाडिय़ों के बीच पहाड़ पर बसा ऐसा गांव है, जहां पुलिस भी दस्तक नहीं दे पाती है। इन दलालों की नजर नाबालिग लड़कियों पर हैं, जिन्हें पांच हजार रुपए तक का प्रलोभन देकर दिल्ली की कोठियों में घरेलू कामकाज के लिए ले जाने आए हैं।

मानव तस्करों के जाल में फंसी आदिवासी युवती, किया 30,000 में नीलाम


धरमजयगढ़ के आसपास 7 और कापू के 20 गांवों में दलालों का जाल फैला हुआ है। पुलिस के आंकड़ों में तीन साल के दौरान मानव तस्करी के करीब दो दर्जन ही मामले दर्ज हो पाए हैं, जबकि हकीकत में यह संख्या बहुत ज्यादा है। रायगढ़ के सारंगगढ़ ब्लॉक के 125 गांवों में से ज्यादातर पलायन की वजह से खाली हो चुके हैं। इन क्षेत्रों में पलायन की एक और प्रमुख वजह कर्ज का बोझ है। 

CG का कापू बना मानव तस्करी का टापू

चिंता की बात यह है कि इन क्षेत्रों में पिछले 10 सालों से पलायन के आंकड़ों में वृद्धि हुई है। गोढिय़ारी ग्राम पंचायत के मामिन कहते हैं, कर्ज लेकर मकान बनाना उनके लिए मुसीबत बन गया। सरकार और साहूकारों के बीच फंस गए हैं। कुछ दिन पहले ही उनके गांव में दलाल आया और पांच परिवारों को लेकर झारखंड चला गया। यहां के लोगों को हिमाचल, हरियाणा, जम्मू और दिल्ली ले जाया जाता है। गोढिय़ारी आधे से ज्यादा खाली हो चुका है।

करीब 35 साल की एक विधवा ने बताया, वह आठ साल पहले परिवार के साथ हरिद्वार गई थी, वहां वह पति के साथ मजदूरी करती थी और एक हादसे में पति की मौत हो गई। मालिक ने 40 हजार रुपए दिए, जिसे लेकर वह गांव आ गई। तब से अब तक उस दिन को वह कोसती है कि वहां गई ही क्यों? बेटा भी 8 साल का हो गया है। 

शहर से एक और नाबालिग लड़की अगवा, मानव तस्करी की आशंका

सरपंच मीना देवी के अनुसार यहां मनरेगा का काम दो साल से लगभग ठप है। मई-जून में जो काम किए गए, उसका भुगतान अब तक नहीं किया गया है। नया काम मिल नहीं रहे हैं। लोगों के पास काफी कम जमीन है, जिससे उनकी रोजी-रोटी नहीं चल पाती है। यदि इन ग्रामीणों को जाने से रोकें तो वे खाएंगे क्या?

जशपुर से अमानुल्ला मलिक की खास रिपोर्ट

कोठियों तक बेटियों को पहुंचाने का कारोबार
आदिवासी बाहुल्य जशपुर मानव तस्करी के लिए कुख्यात रहा है। यहां से महानगरों की हवेलियों, कोठियों में काम करने के लिए नाबालिगों को ले जाने का कारोबार फलता-फूलता रहा। खासकर लड़कियों को घरेलू काम करने के बहाने और
चकाचौंध का सपना दिखाकर रसूखदारों की देहरियों पर बेचने के लिए प्लेसमेंट एजेंसियों के दलाल अक्सर यहां नजर आते हैं। कांसाबेल व बगीचा क्षेत्र में तो कई ऐसे मामले सामने आए, जहां की लड़कियों के साथ बार-बार दुष्कर्म किया गया। मानव तस्करी रोकने के लिए काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता एनी का कहना है, गांवों में रोजगार बड़ी समस्या है। ऐसे भी मामले सामने आए, जिनमें पुलिस ने मानव तस्करों से लोगों को बचाकर यहां लाई, लेकिन उन्हें रोजगार नहीं दिया जा सका।

मानव की तस्करी में बस्तर दूसरे स्थान पर 

इसकी वजह से वे वापस उसी दलदल में चले गए। एसपी गिरजा शंकर जायसवाल कहते हैं, मानव तस्करों पर पुलिस ने काफी शिकंजा कस लिया है। ग्रामीणों, मितानिनों, प्रतिनिधियों के जागरूकता अभियान का असर दिख रहा है। लोग दलालों के झांसे में नहीं आते हैं। कलक्टर प्रियंका शुक्ला बताती हैं, फिलहाल 5000 लोगों को शैक्षणिक योग्यता के आधार पर कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हम बेटियों की सुरक्षा, शिक्षा और रोजगार पर कारगर तरीके से काम करके मानव तस्करी को रोकने की कोशिश करने में जुटे हैं। 

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